Stem Cells Donation : अपना बेटा खो दिया, अब दूसरी बच्ची की जान बचाई

किशोर ने बेंगलुरु की एक बच्ची को स्टेम सेल्स दिए, अब कैंपेन में शामिल

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 Ahmedabad : दान कैसा भी हो, वह दान प्राप्त करने वाले के लिए नियामत ही होता है। खासकर जान बचाने वाला शरीर का कोई अंग! ये कहानी स्टेम सेल दानदाता की है, जिन्होंने इसे एक मिशन बना लिया! गुजरात के किशोर पटेल 2004 का वो दिन अभी तक नहीं भूले, जब उनका बेटा इस दुनिया में उनकी आंख के सामने चला गया। महज 1 साल 9 महीने के बेटे मोहित की मौत ल्यूकोमिया से हो गई।

एक दिन वो मासूम पिता किशोर की गोद में ही हमेशा के लिए सो गया। ब्लड कैंसर से हुई बच्चे की मौत ने किशोर को अंदर तक हिला दिया। मोहित उनका पहला बच्चा था और उसकी जान न बचाने की लाचारी उनके जहन में है। बेटे को न बचा पाने के गम में डूबे किशोर ने बीते दिनों बेंगलुरु की एक बच्ची को स्टेम सेल्स देकर जान बचाई।
कच्छ और बेंगलुरु के लकड़ी के कारोबारी किशोर ने बताया कि उन्होंने बेटे के इलाज के लिए बहुत कोशिश की। वह उसे इलाज के लिए अमेरिका ले जाना चाहते थे। डॉक्टरों से परामर्श किया। कैंसर तीसरे चरण में था और दवाओं ने असर करना बंद कर दिया था। आखिर वह दुनिया छोड़कर चला गया। अपने बेटे की मौत के बाद वह दुखी रहने लगे कि अपने बेटे को नहीं बचा पाए।

17 साल बाद किशोर पटेल एक दूसरे परिवार की बेटी को बचाने का जरिया बने। उन्होंने बताया कि मैंने 2021 में ल्यूकेमिया से जूझ रही एक किशोरी के जीवन को बचाने के लिए स्टेम सेल दान किया। मैं इसे भगवान की कृपा मानता हूं कि उन्होंने मुझे अन्य बच्चों के जीवन को बचाने के लिए स्टेम सेल दान के लिए एक योद्धा बनने के लिए भी प्रेरित किया। पटेल ने दिसंबर 2020 में इस उद्देश्य के लिए अपने स्टेम सेल दान कर दिए थे, जब कोविड महामारी का खतरा मंडरा रहा था।

आध्यात्मिकता में एकांत की तलाश ने राह दिखाई
दक्षिण भारत में कदवा पाटीदार एसोसिएशन के सचिव किशोर ने बताया कि मेरा परिवार नखतराना, कच्छ में है। 2003 से मैं लकड़ी के कारोबार के लिए बेंगलुरु और कच्छ के बीच चक्कर लगा रहा हूं। जब 2003 में मेरे बच्चे का जन्म हुआ तो मुझे बहुत खुशी हुई। अगले साल उनके असमय निधन के साथ, मैंने खुद को काम में डुबो दिया और आध्यात्मिकता में एकांत की तलाश की। उसके बाद मुझे दो बेटे हुए, लेकिन किसी जरूरतमंद के लिए कुछ करने की ललक थी।

स्टेम सेल दान करने का फोन आया, वे राजी हो गए
2017 में DKMS-BMST के एक कार्यक्रम में, उन्हें स्टेम सेल डोनेशन के बारे में पता चला और उन्होंने अपने ब्लड सैंपल के साथ खुद का रजिस्ट्रेशन कराया। उन्हें दिसंबर 2020 में फाउंडेशन की और से स्टेम सेल डोनेट करने का फोन आया और वह तुरंत राजी हो गए। वे कहते हैं कि जैसे ही मुझे पता चला कि दान ने किसी की जान बचाई है, मैंने तुरंत भगवान को धन्यवाद दिया। मुझे यकीन है कि यह सर्वशक्तिमान की इच्छा है कि मैं एक छोटे बच्चे के जीवन में बदलाव लाने का माध्यम बनूं।

स्टेम सेल डोनेशन के लिए कैंपेन
DKMS BMST फाउंडेशन के CEO पैट्रिक पॉल ने कहा कि पटेल ने अपने स्टेम सेल को परिधीय रक्त स्टेम सेल (PBSC) विधि के माध्यम से दान किया, जो ब्लड प्लेटलेट डोनेशन की तरह ही है। जरूरत में अधिक रोगियों की मदद करने के लिए, हमें संभावित दाताओं के रूप में पंजीकरण करने के लिए अधिक भारतीयों की आवश्यकता है। किशोर जैसे लोग एक प्रेरणा हैं और हमें उम्मीद है कि उनकी कहानी कई अन्य लोगों को प्रेरित करेगी।