Story of a Silent Revolution: PM के मन की बात तक ऐसे पहुंची फुटबॉल क्रान्ति
संचार क्रान्ति की कृपा से मोबाइल फ़ोन और इंटरनेट दुर्गम पहाड़ों और घाटियों में बसे दूरदराज़ के गाँवों तक पंहुच चुके है .कलेक्टर रहते हुए 2015 में मैंने पहली बार अनुभव किया कि आप प्रत्येक पल असंख्य कैमरों की नज़र में हैं .
आयुक्त शहडोल के रूप में मैं यह देखकर दंग था कि सुदूर ग्रामीण इलाकों में भ्रमण के समय नई पीढ़ी हर कही मोबाइल में डूबी दिख रही थी .कथित सोशल मीडिया पर परोसी जा रही सनसनी और उत्तेजना के चक्रव्यूह में फँसे इन अभिमन्युओं को खेल के मैदानों में कैसे खींचा जाये ?अल्पायु किशोर पोर्न और पबजी जैसे जाल में उलझ कर नष्ट हों तो भारत का भविष्य अन्धेरी गलियों के सिवा क्या होगा .मैंने समाज शास्त्रियों,चिकित्सकों ,समाज सेवियों,मनोविज्ञानियों सब से इस मुद्दे पर विचार विमर्श किया .
मध्य प्रदेश के शहडोल में फुटबॉल क्रांति नाम के एक कार्यक्रम ने यहां के युवाओं की जिंदगी बदल दी है। इसने न सिर्फ उन्हें नशे के चंगुल से बाहर निकाला है, बल्कि देश को कई प्रतिभावान खिलाड़ी भी दिए हैं। pic.twitter.com/AVSeAVcTs2
— Narendra Modi (@narendramodi) July 30, 2023
गहन विचार विमर्श से हमने यह जाना कि युवा मन को रोमांच चाहिये .शारीरिक गतिविधि चाहिये जो उसकी ऊर्जा और आयु के सहज हार्मोन उत्साह को सकारात्मक कार्य से जोड़ सके .
समाज को बाँटने वाली राष्ट्र द्रोही शक्तियों के हाथ पड़कर ये युवा अपने ही राष्ट्र के विरुद्ध षड्यंत्रों का औज़ार ना बनें यह चिंता भी काल्पनिक नहीं थी .
सोचते सोचते हम लोग किसी ऐसे कार्यक्रम की तलाश में थे जिसमें युवाओं की सहज रुचि हो और जिसे स्थानीय संसाधनों से संचालित किया जा सके .यह भी महत्वपूर्ण था कि ग़रीब से ग़रीब परिवार के युवा उस गतिविधि में शामिल हो सकें .
गहन विचार मंथन में मुझे बँगाल याद आया जहाँ शाम होने के पहले लाखों युवा खेल के मैदानों में रोज़ उतरते हैं और फुटबॉल खेलते हैं .वहाँ हर गाँव हर गली में फुटबॉल क्लब हैं .
आर्कमिडीज़ की तरह मेरा मन यूरेका भाव से भर गया .मैंने गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता श्री संतोष द्विवेदी से यह निर्णय साझा कर तय किया कि पहली टीमें उमरिया ज़िले के आकाशकोट इलाक़े में बनाई जाकर वहीं से फुटबॉल क्रांति का प्रारंभ किया जाये .स्थानीय सीमेंट डीलर ने इसके प्रायोजन की ज़िम्मेदारी भी सहर्ष ले ली .
अनूपपुर ज़िले का बीजापुरी गाँव कलाकारों का गाँव है .वहाँ के आदिवासी अष्ट सिद्धि नवनिधि में इतने निपुण हैं कि साक्षात् गणपति और माँ शारदा की पूर्ण कृपा बीजापुरी में ही बरसी लगती है .गायन ,वादन ,नर्तन ,अभिनय ,खेती ,जैव विविधता ,जड़ी बूटी ,काष्ठ शिल्प ,चित्र कला हर विधा में वे बेमिसाल हैं.बीजापुरी के युवा सरपंच आयुक्त कार्यालय में अपने ग्राम वासियों सहित कुछ समस्या लेकर आये साथ ही गाँव आने का आमंत्रण भी दे गये .फुटबॉल को बढ़ावा देने में मेरी रुचि को देखते हुए उन्होंने अपने गाँव में कमिश्नर कप फुटबॉल टूर्नामेंट आयोजित किया .उसका उदघाटन करने अमरकंटक के निकट नर्मदा किनारे के बीजापुरी में मैं और हमारे एडीजीपी साहब पंहुचे तो वहाँ लोक उत्सव सा दृश्य देखकर मुग्ध हो गये .हज़ारों ग्रामीण नर नारी प्रकृति की नयनाभिराम गोद में एक विशाल और सुंदर मैदान में अपनी अपनी टीमों का जोश बढ़ा रहे थे . बीजापुरी और आसपास के ग्रामीणों की गर्मजोशी ने मुझे बता दिया था कि फुटबॉल क्रान्ति के बीज बोने के लिये सबसे उर्वर भूमि यही थी .उसके बाद तो हर गाँव ,हर नगर में फुटबॉल क्लब गठित हुए और भारत के माननीय प्रधान मंत्री जी के मन की बात तक फुटबॉल क्रान्ति की कथा तो आप सबको पता है .