किस्सा बस्तर की सल्फी के मंद का ….!
अनिल तंवर की खास रिपोर्ट
जब भी मानव मन थक जाता है तब कुछ ऐसे ऊर्जावान पेय की आवश्यकता पड़ती है कि, तन मन तंदरुस्त हो जाए, इसलिये किसी को पानी की, तो किसी को चाय की, और किसी को ज्यादा ही थकान हो तो शराब की तलब जाग उठती हैं।
देव दानवों ने तो अपने लिए सोम रस की व्यवस्था कर ली तो उन्होंने इंसानों के लिए कुछ ऐसे वृक्ष लगा दिये कि साल आधा साल के लिए उनके पीने की व्यवस्था हो गई।
बस्तर के प्रोफेसर ओम सोनी के अनुसार पीने पिलाने का काम सदियों से आज तक बदस्तूर जारी है। मनुष्य ने पीने की शुरुआत पेड़ के रस से ही की। आज भी बस्त र जैसे जगहो में पेड़ के रस से नशे की पूर्ति की जाती रही है। सल्फी, छिंद, ताड़ी और महुआ ऐसे ही प्राकृतिक शराब है। इन प्राकृतिक रसो का नशा भी मंद मंद किंतु लंबे समय तक होता है इसलिए यहां शराब यह मंद कहलाती है और इसके शौकीन मंदहा की उपाधि धारण करते हैं।
यहां सबसे पसंदीदा मंद है सल्फी का रस। सल्फी का यह पेड़ होता तो ताड़ की तरह ही है , किंतु इसका रस ताड़ से अधिक असरदार होता है। सल्फी के पेड़ में पुंगार (फूल) को काटकर उसके पास हांडी बांध दी जाती है। इस हांडी में सल्फी रस बूंद बूंद कर भरती है। बूंद बूंद से घड़ा भरता है, यह कहावत बुजुर्गो ने इसी सल्फी पेड़ को देखकर बनाई होगी, ऐसा मेरा अनुमान है।
इसके रस को निकालने के लिए एक ही व्यक्ति निर्धारित होता है। वही हांडी से रस निकाल कर सभी सुरा प्रेमियों को बांटता है। इस 40 फीट के पेड़ में चढ़ने के लिए भी कलेजा मजबूत चाहिए । पतले बांस के सहारे चढ़ कर मंद निकालने का दु:साहस असली मंदहा ही कर सकता है। इस पेड़ से रस निकलने में लगभग दस साल का वक्त लगता है। माना जा सकता है कि बड़े बुजुर्गो ने एक कहावत “सब्र का फल मीठा होता है” इसी सल्फी पेड़ को देखकर तैयार की होगी।
यह सल्फी का पेड़ एक कमाऊ पूत से कम नहीं है। साल के पचास हजार तो कहीं नहीं गए। यहां दहेज में यह पेड़ देने का रिवाज बस्तर में है। कभी कोई बीमारी आ जाती है तो सारे के सारे सल्फी पेड़ मर जाते हैं।
यह सल्फी का पेड़ मंदहा मित्रो का सबसे पसंदीदा पेड़ है। शराबी फिल्म भी कुछ ऐसे मंदहा मित्रो को देखकर बनाई गई है। कभी आए तो जरुर चखने के साथ सेवन कीजिए। बस्तर में यह बात सोलह आने सच है कि जो एक बार सल्फी पी ले वो सारी मदिरा त्याग कर सल्फी का दीवाना बन जाता है |