
अजीबोगरीब चुनाव, सबसे ज्यादा वोट पाने वाला जरुरी नहीं युवा कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बने
भोपाल. युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सहित अन्य पदों पर हुई वोटिंग के बाद, नेताओं के समर्थक को एडजस्ट करने के लिए दिल्ली ने नया तरीका खोज लिया है। चुनाव में जिसे सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं उसे विजेता माना जाता है, लेकिन युवा कांग्रेस का चुनाव के परिणाम में जरुरी नहीं की ऐसा हो, कांग्रेस अजीबोगरीब तरीके से परिणाम घोषित करेगी। इसमें सबसे ज्यादा वोट पाने वाले को अध्यक्ष की कमान दिए जाने में दिल्ली ने पेंच फंसा दिया है।
चुनाव में सबसे ज्यादा वोट पाने वाले के साथ ही दूसरे और तीसरे नंबर पर वोट पाने वाले को भी यह पद दिया जा सकता है। इन चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, पीसीसी चीफ जीतू पटवारी, नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार, पूर्व मंत्री लखन घनघोरिया और जयवर्धन सिंह के समर्थकों के बीच में मुकाबला है।
मध्य प्रदेश युवा कांग्रेस में 20 जून से 19 जुलाई तक सदस्यता अभियान चला। आॅन लाइन चले सदस्यता अभियान के साथ ही हर सदस्य को प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश महामंत्री, जिला अध्यक्ष, जिला महामंत्री, विधानसभा अध्यक्ष और ब्लॉक अध्यक्ष के लिए मतदान भी करना था। इसमें दावा किया जा रहा है कि 16 लाख के लगभग युवाओं ने युवा कांग्रेस की सदस्यता ली है।
ऐसे फंसा दिया पेंच
चुनाव के लिए वोटिंग खत्म होते ही युवा कांग्रेस ने यह तय किया कि प्रदेश अध्यक्ष के लिए प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान पर आने वाले उम्मीदवारों को दिल्ली बुलाया जाएगा। उनका इंटरव्यू लिया जाएगा। इसके बाद इनमें से जो बेहतर होगा उसे प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी जाएगी।
त्रिकोणीय मुकाबला में उलझे नेता समर्थक
इस चुनाव में प्रदेश कांग्रेस के दोनों दिग्गज नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के साथ ही पीसीसी चीफ जीतू पटवारी, उमंग सिंघार के समर्थक मैदान में हैं। इन नेताओं के समर्थक उम्मीदवार को एनएसयूआई की वर्तमान टीम ने कड़े मुकाबले में डाल दिया है। कमलनाथ और उमंग सिंघार इस चुनाव में पूर्व मंत्री लखन घनघोरिया के बेटे यश घनघोरिया का समर्थन कर रहे हैं। जबकि दिग्विजय सिंह, जयवर्धन सिंह और जीतू पटवारी भोपाल के अभिषेक परमार का समर्थन कर रहे हैं। एनएसयूआई ने इस चुनाव में अपने प्रदेश उपाध्यक्ष शिवराज यादव को भी मैदान में उतारा है। शिवराज यादव के समर्थन में एनएसयूआई के छात्रों ने युवा कांग्रेस के लिए कई युवाओं को सदस्यता दिलाई। इसके चलते यह मुकाबला त्रिकोणियों हो गया है। ऐसे में किसे अध्यक्ष बनाया जाए, इसकी कमान चुनाव करवाने के बावजूद दिल्ली ने अपने हाथ में रखी है।




