
Strict Action Of Jhabua Collector Neha Meena: संयुक्त कलेक्टर को सर्किट हाउस में 132 दिन रहने का 79 हजार रुपए जमा करने का थमाया नोटिस
झाबुआ से कमलेश नाहर की रिपोर्ट
झाबुआ: झाबुआ कलेक्टर नेहा मीना लगातार अपने निर्णयों व नवाचारो की वजह से चर्चा में बनी हुई है।चुनाव सुधार व कुपोषण से लड़ाई के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार तक पहुंच कर जिले को राष्ट्रीय स्तर पर चमका दिया।वहीं अपने कुछ सख्त निर्णयों से वे चर्चा में बनी हुई हैं।
पहले अपनी कार पर टक्कर के बाद रेत कारोबारी पर सख्त कार्रवाई ,दूसरी बार एन त्यौहार के वक्त ध्वनि विस्तारक यंत्रों पर प्रतिबंध के बाद अपने ही संयुक्त कलेक्टर को नोटिस थमाकर वे चर्चा में आ गई है।
सत्ता और पद की कुर्सी पर बैठे कुछ अफसर खुद को कानून से ऊपर समझ बैठते हैं। लेकिन जब उनकी लापरवाही जनता के पैसों पर भारी पड़ने लगे, तो फिर कार्रवाई की गाज गिरना तय है। संयुक्त कलेक्टर अक्षयसिंह मरकाम पर अब वैसा ही तूफ़ान टूट पड़ा है। करीब 132 दिन तक सरकारी सर्किट हाउस में बिना भुगतान ऐशो-आराम की ज़िंदगी गुजारने और 79,200 रुपए का बकाया हजम करने पर आखिरकार कलेक्टर ने नोटिस थमाते हुए कड़ी चेतावनी दी है। यह मामला सामने आते ही जिलेभर में प्रशासनिक भूचाल मच गया है। अफसरशाही की साख पर बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है कि जब सीनियर अफसर ही नियम ताक पर रखेंगे, तो अधीनस्थ कैसे अनुशासन का पालन करेंगे…?
कलेक्टर के नोटिस में गिनाए गए गंभीर आरोपः कलेक्टर द्वारा जारी नोटिस में मरकाम के खिलाफ कई हैरान करने वाले आरोप दर्ज किए गए हैं। जिसमें पहला प्रधानमंत्री आवास योजना माह के दौरान ज़िले में मॉनिटरिंग पूरी तरह ठप रही। दूसरा जिला स्तरीय समीक्षा और निगरानी समिति (DLRMP) की बैठक कार्यवाही बिना अनुमोदन के भेज दी गई। तीसरा मेघनगर नगर परिषद में जमीन उपलब्ध न होने के बावजूद प्रस्ताव वरिष्ठ कार्यालय को भेज दिया गया। चौथा RTI मामले में 2,500 रुपए क्षतिपूर्ति राशि जमा नहीं की गई, जबकि बार-बार निर्देश दिए गए थे और सबसे बड़ा घोटाला – 28 जुलाई 2024 से 26 जून 2025 तक कुल 132 दिन तक सर्किट हाउस पर कब्जा जमाए रखा गया और 79,200 रुपए की राशि अब तक जमा नहीं की गई।
कलेक्टर का सख्त रुख – “नियमों की धज्जियाँ उड़ाना बर्दाश्त नहीं”:
कलेक्टर ने अपने आदेश में साफ शब्दों में कहा है कि ये सभी कृत्य म.प्र. सिविल सेवा आचरण नियम 1965 का खुला उल्लंघन हैं। यह न सिर्फ घोर लापरवाही और अनुशासनहीनता है बल्कि जिले की छवि को धूमिल करने वाला कृत्य भी है। इसी कारण म.प्र. सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण तथा अपील) नियम 1966 के तहत अनुशासनात्मक कार्यवाही की सिफारिश की गई है।
जिले में मचा प्रशासनिक भूचालः
इस नोटिस के बाद प्रशासनिक गलियारों में हड़कंप मच गया है। अफसरों के बीच खुसर-फुसर तेज हो गई है “जब एक संयुक्त कलेक्टर ही सरकारी नियमों को ताक पर रखकर मुफ्तखोरी करता है, तो आम कर्मचारी से नियम पालन की उम्मीद कैसे की जा सकती है?” जनता के बीच भी चर्चा गर्म है कि आखिर मरकाम पर अब अगला कदम क्या होगा – नोटिस के बाद सख्त कार्रवाई, पद से हटाना या निलंबन…?
सवालों के घेरे में अफसरशाहीः
यह पूरा मामला अफसरशाही पर कड़े सवाल खड़े कर रहा है-
क्या सरकारी सुविधाएँ बड़े अफसरों के लिए ‘निजी ऐशगाह’ बन चुकी हैं?
क्या आम जनता के टैक्स का पैसा इसी तरह मुफ्तखोरी पर उड़ाया जाएगा?
और सबसे अहम – अगर सीनियर लेवल अफसर ही नियम तोड़ेंगे, तो बाकी सिस्टम से ईमानदारी की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
अब पूरे जिले की नज़रें इस बात पर टिकी हैं कि संयुक्त कलेक्टर मरकाम पर आगे क्या कार्रवाई होती है क्या नोटिस के बाद “डिसिप्लिनरी एक्शन” की गाज गिरेगी या मामला फाइलों में दबा दिया जाएगा।





