शिवराज सरकार में संघर्ष किया…मोहन सरकार में रातापानी बन पाया टाइगर रिजर्व…

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शिवराज सरकार में संघर्ष किया…मोहन सरकार में रातापानी बन पाया टाइगर रिजर्व…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

रातापानी अभयारण्य की बड़ी दास्तान है। 48 साल पुराने रातापानी वन्यजीव अभयारण्य को 16 साल का संघर्ष करने के बाद आखिरकार टाइगर रिजर्व बनने में सफलता मिल ही गई। इसने टाइगर रिजर्व बनने का पूरा संघर्ष भाजपा की शिवराज सरकार के समय किया। हालांकि बीच में 15 माह की कांग्रेस की कमलनाथ सरकार का समय भी रहा। और अंतत: मुख्यमंत्री बतौर डॉ. मोहन यादव ने पहले साल में 2 दिसंबर 2024 को रातापानी टाइगर रिजर्व बनाने की घोषणा कर दी। और मुख्यमंत्रित्व काल का दूसरा साल शुरू होने के पहले दिन ही प्रदेश के आठवें टाइगर रिजर्व के रूप में रातापानी को नई पहचान दिला दी। तो इसमें आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे के योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकेगा। दरअसल यह डॉ. मोहन यादव का यह फैसला मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में चल रही एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान आया है। यह याचिका वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दुबे ने दायर की थी। इसमें केंद्र सरकार और एनटीसीए से मंज़ूरी मिलने के बावजूद रिजर्व की अधिसूचना में देरी को चुनौती दी गई थी। हालांकि सरकारें चाहें तो कोर्ट उन्हें बाध्य नहीं कर सकता, क्योंकि कानूनी दांवपेंच मामले को उलझाये रख सकते हैं। वन्यजीवों के इतिहास में गुजरात के गिर शेर सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भी मध्यप्रदेश को नहीं मिल पाए हैं। इस संघर्ष को तीन दशक बीतने के बाद शेरों के लिए तैयार कूनो पालपुर आखिरकार अफ्रीका के चीतों का आशियाना बन गया। तो इसमें बड़ा दिल मोहन यादव का है कि रातापानी को टाइगर रिजर्व का तमगा हासिल हो ही गया। इसके लिए मोहन यादव बधाई के हकदार हैं।

13 दिसंबर 2024 को लोकार्पण करने के बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि प्रदेश के रातापानी टाइगर रिजर्व का नाम विश्व विख्यात पुरातत्वविद डॉ. विष्णु वाकणकर के नाम से जाना जाएगा। रातापानी टाइगर रिजर्व में स्थित विश्व धरोहर भीमबेटका को डॉ. वाकणकर के अथक परिश्रम के परिणाम स्वरुप ही पहचान प्राप्त हुई है। और मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने प्रदेश की वन्य-जीव संपदा को और अधिक संपन्न करने के लिए रातापानी टाइगर रिजर्व की अनुमति प्रदान करने पर प्रदेशवासियों की ओर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आभार भी व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि देश के समस्त राज्यों की राजधानियों में भोपाल ही एकमात्र ऐसी राजधानी है, जिसके आँगन में टाइगर रिजर्व विद्यमान है। इस सम्मान के लिए भोपालवासी और प्रदेशवासी बधाई के पात्र हैं। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने झिरी गेट से रातापानी टाइगर रिजर्व का लोकार्पण किया। मुख्यमंत्री ने टाइगर रिजर्व संबंधी जागरूकता के लिए आरंभ “विरासत से विकास” की अनूठी बाईक रैली को कोलार रोड स्थित गोल जोड़ से झंडी दिखाकर रवाना किया। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने स्वयं भी बाइक चला कर रैली की अगुवाई की। डॉ. यादव ने कहा कि सरकार का एक वर्ष पूर्ण होने पर रातापानी टाइगर रिजर्व जैसी सौगात मिलने से क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। यह आनंद और उत्साह का अवसर है। मध्यप्रदेश टाइगर स्टेट है। देश के सभी राज्यों की तुलना में सर्वाधिक टाइगर मध्यप्रदेश में है। विश्व में भी सर्वाधिक टाइगर की संख्या भारत में ही है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने टाइगर रिजर्व में सभी आवश्यक विकास कार्य करने, रोजगार गतिविधियों के संचालन, स्थानीय निवासियों की सहायता और उन्हें आवश्यक मार्गदर्शन उपलब्ध कराने के लिए गतिविधियां संचालित करने के निर्देश दिये। उन्होंने कहा कि रातापानी टाइगर रिजर्व को श्रेष्ठ टाइगर रिजर्व बनाने के लिए टीम भावना से कार्य करें। डॉ. यादव ने कहा कि राज्य सरकार विकास का नया कीर्तिमान स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

तो रातापानी हमेशा से बाघों का घर रहा है। रातापानी अभयारण्‍य को रातापानी टाइगर रिज़र्व में अपग्रेड किया जा रहा है। इससे भारत में ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में भोपाल को टाइगर की राजधानी के रूप में एक नई पहचान मिलेगी। रातापानी अभयारण्‍य में बाघों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है, जिससे यह क्षेत्र बाघों का एक महत्वपूर्ण बसेरा बन गया है। वर्ष 1976 में रातापानी को वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था। रातापानी न केवल बाघों बल्कि कई अन्य वन्य जीवों का भी घर है। यह एक ऐसा स्थान है, जहां लोग प्रकृति की विविधता को करीब से देख सकेंगे। रायसेन एवं सीहोर जिले में रातापानी अभयारण्‍य का कुल क्षेत्रफल लगभग 1272 वर्ग किलोमीटर पूर्व से अधिसूचित है। अभी रिजर्व के कुल क्षेत्रफल में से 763 वर्ग किलोमीटर को कोर क्षेत्र घोषित किया गया है। यह वह क्षेत्र है, जहां बाघ बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के स्वतंत्र रूप से विचरण कर सकेंगे। शेष 507 वर्ग किलोमीटर को बफर क्षेत्र घोषित किया गया है। यह क्षेत्र कोर क्षेत्र के चारों ओर स्थित है और इसका उपयोग कुछ प्रतिबंधों के साथ स्थानीय समुदायों के लिए किया जा सकेगा। रातापानी वन्यजीव अभ्यारण में करीब 90 बाघ रहते हैं।

दरअसल 2008 में नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथोरिटी से सैद्धांतिक मंजूरी मिलने के बाद भी राज्य सरकार ने टाइगर रिजर्व बनाने में देरी की थी। मोहन यादव के रातापानी को टाइगर रिजर्व घोषित करने के फैसले पर खुशी जाहिर करते हुए अजय दुबे ने कहा था कि मैं सरकार के फैसले से बहुत खुश हूं। इस अधिसूचना को खनन माफिया और क्षेत्र में निहित स्वार्थ रखने वाले लोग रोक रहे थे। 2007 में रातपानी और सिंघोरी अभ्यारण्यों को टाइगर रिजर्व घोषित करने की प्रक्रिया शुरू हुई थी और 2008 में रिजर्व के लिए एनटीसीए की सैद्धांतिक मंज़ूरी मिलने के बाद मामला अटका पड़ा था। राज्य वन विभाग को रिजर्व की सीमाओं और कोर क्षेत्रों के लिए विस्तृत प्रस्ताव प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था। इसके बावजूद, अंतिम अधिसूचना प्रक्रिया में 16 साल लग गए।

तो शिवराज सरकार में संघर्ष करने के बाद आखिरकार रातापानी को डॉ. मोहन यादव सरकार में टाइगर रिजर्व बनने में सफलता मिल ही गई। इसके साथ ही रातापानी को नई पहचान मिल गई, तो भोपाल को टाइगर रिजर्व वाली राजधानी की पहचान मिल गई। और डॉ. मोहन यादव मध्यप्रदेश को आठवां टाइगर रिजर्व देने वाले मुख्यमंत्री बन गए…।