Aditya L1 Surya Mission ने सफलतापूर्वक लगाया पृथ्वी का पहला चक्कर, ISRO ने दी जानकारी
Aditya L1 Surya Mission: आदित्य-L1 मिशन ऑब्जर्वेटरी क्लास मिशन है. ये पहली भारतीय अंतरिक्ष आधारित ऑब्जर्वेटरी (वेधशाला) होगी. अब तक हम जो भी अध्ययन सूरज को लेकर करते आए हैं, वो सभी दूरबीन की मदद से किए हैं. ये दूरबीनें कोडईकनाल या नैनीताल के ARIES जैसी जगहों पर लगी हैं, लेकिन हमारे पास स्पेस में टेलीस्कोप नहीं हैं. धरती पर रहकर दूरबीन की मदद से सूरज की सतह को देख पाना मुमकिन नहीं हो पाता है. सूरज के वातावरण को नहीं समझा जा सकता, जो कि धरती से एकदम अलग है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने रविवार (03 सितंबर 2023) को कहा कि देश का पहला सौर मिशन आदित्य-एल1 स्वस्थ है और संचालन कर रहा है। इसरो ने ट्वीट किया कि पहला अर्थ-बाउंड मैन्युवर (EBN#1) ISTRAC बेंगलुरु से सफलतापूर्वक पर्फॉम किया गया है।
प्राप्त की गई नई ऑरबिट 245 किमी x 22459 किमी है। अगला मैन्युवर (EBN#2) 5 सितंबर 2023 को भारतीय समयनुसार करीब 03:00 बजे के लिए निर्धारित है। इसरो ने एक्स (ट्विटर) पर पोस्ट करके यह जानकारी दी। भारत का पहला सौर मिशन आदित्य-एल1 शनिवार को श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया। इसरो ने कहा कि आदित्य-एल1 सूर्य का अध्ययन करने वाली पहली अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला है। 125 दिनों में पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर की यात्रा करने के बाद अंतरिक्ष यान को सूर्य के सबसे निकट माने जाने वाले लैग्रेंज पॉइंट L1 के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित किया जाएगा।
इसरो ने कुछ दिन पहले चंद्रमा पर सफल ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने के बाद एक बार फिर इतिहास रचने के उद्देश्य से शनिवार को देश के पहले सूर्य मिशन ‘आदित्य एल1’ का यहां स्थित अंतरिक्ष केंद्र से सफल प्रक्षेपण किया। इसरो ने बताया कि आदित्य-एल1 यान पीएसएलवी रॉकेट से सफलतापूर्वक अलग हो गया है। भारत का यह मिशन सूर्य से संबंधित रहस्यों से पर्दा हटाने में मदद करेगा। इसरो के अनुसार, ‘आदित्य-एल1’ सूर्य का अध्ययन करने वाली पहली अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला है। यह अंतरिक्ष यान 125 दिन में पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर लंबी यात्रा करने के बाद लैग्रेंजियन बिंदु ‘एल1’ के आसपास एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित होगा, जिसे सूर्य के सबसे करीब माना जाता है। यह वहीं से सूर्य पर होने वाली विभिन्न घटनाओं का अध्ययन करेगा।
कोलकाता स्थित भारतीय अंतरिक्ष भौतिकी केंद्र के निदेशक ने बताया कि आदित्य की संकल्पना 15 साल से भी पहले की गई थी, शुरू में यह सौर कोरोना के आधार पर प्लाज्मा वेग का अध्ययन करने के लिए था। बाउ में यह यह आदित्य-एल1 और फिर आदित्य एल1+ के तौर पर विकसित हुआ, अंततः उपकरणों के साथ आदित्य-एल1 में वापस आ गया। मिशन के उपकरणों और क्षमताओं के बारे में भी जानकारी दी। उनके अनुसार, पेलोड “थोड़ा निराशाजनक रहा है और उपग्रह निश्चित रूप से खोज श्रेणी एक का नहीं है। उन्होंने कहा कि लगभग सभी उपकरण लगभग 50 साल पहले नासा द्वारा भेजे गए थे, उदाहरण के लिए 1970 के दशक की शुरुआत में पायनियर 10, 11 आदि में। साथ ही सुरक्षित रहने के लिए, ताकि सूर्य के प्रकाश के सीधे संपर्क में आने से उपकरण क्षतिग्रस्त न हों, ब्लॉकिंग डिस्क का आकार बहुत बड़ा है, जो सौर डिस्क से लगभग पांच प्रतिशत बड़ा है। इसलिए यह सौर सतह से केवल 35,000 किलोमीटर की दूरी पर ही वेग माप सकता है। इन चुनौतियों के बावजूद वैज्ञानिक ने कहा कि आदित्य-एल1 मिशन में अपार संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि विज्ञान के मामले में नासा की बराबरी करने के लिए भारत को अभी लंबा रास्ता तय करना है। वैज्ञानिकों को आदित्य-एल1 को क्रियाशील देखने और मिशन की समग्र सफलता का आकलन करने के लिए लगभग चार महीने इंतजार करना होगा।