सारागढ़ी युद्ध: 124 साल पहले की वीरता व ओजपूर्ण घटना को क्यों नज़रंदाज़ किया वाम पंथी(glorious history of india) इतिहासकारों ने

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भारत के गौरवशाली इतिहास(glorious history of india) में ऐसी अनेक घटनाएं हैं जिन्हें आज की पीढ़ी जाने और समझे तो उन्हें खुद के भारतीय होने पर असीम संतुष्टि का भाव मिलेगा और वे गर्व से अपना सिर उठाकर दुनिया के सामने खड़े हो सकते हैं। पर हमारा दुर्भाग्य यह रहा कि मुस्लिम और वामपंथी इतिहासकारों ने गौरवशाली भारतीय इतिहास (glorious history of india)को तोड़ मरोड़ कर अपने नज़रिए से लिपिबद्ध किया।भारतीयों की बहादुरी, वीरता, ईमानदारी, कर्तव्य निष्ठा आदि अनेक सद्गुणों से अटी कहानियों को जानबूझकर इन संकुचित व बीमार मानसिकता वाले इतिहासकारों ने सात पर्तों में दबा कर रखा ताकि भारतीय जनता को रंचमात्र गर्व की अनुभूति न हो कि वे किस वीर गौरवशाली परंपरा के ध्वजवाहक हैं।
ऐसी ही एक घटना है सारागढी की लड़ाई जो आज से 124 साल पहले 12 सितम्बर, 1897 को 36वीं सिख रेजिमेंट के 21 सिपाहियों और 10,000 अफगान कबाइलियों के बीच लड़ी गई थी।सारागढ़ी एक उस समय के भारत के नार्थ वेस्ट फ़्रंटियर प्रांत (वर्तमान में पाकिस्तान) में अंग्रेजों की एक सैनिक पोस्ट थी।अफगानिस्तान से लगने वाले इलाकों पर कब्जा बनाए रखने के लिए अंग्रेज सेना यहां तैनात की गई थी।इस इलाके में कब्जे को लेकर अफगानों और अंग्रेजों के बीच लगातार लड़ाइयाँ होती रहती थी।

कम लोगों को पता होगा कि पंजाब के अमृतसर में सारागढ़ी गुरुद्वारा भी है।सारागढ़ी गुरुद्वारा अमृतसर के टाउन हाल और स्वर्णमंदिर के पास ही बना है।गुरुद्वारा इतना छोटा है कि आपकी नजर शायद ही इस पर पड़े।लेकिन इस छोटे से गुरुद्वारे से सिखों की दिलेरी की अमिट कहानी जुड़ी है।यह कहानी है सारागढ़ी की लड़ाई और उसमें सिख सैनिकों की बहादुरी की।खास बात यह है कि इस गुरुद्वारे को सन् 1902 में खुद अंग्रेजों ने अपने 21 बहादुर सिख सैनिकों की याद में बनवाया था।इन सैनिकों ने सारागढ़ी पोस्ट को बचाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी।
उल्लेखनीय है कि 12 सितम्बर, 1897 के दिन अफ़रीदी और औरकज़ई कबीले के 10,000 से 12,000 अफगानों ने सारागढ़ी पोस्ट पर हमला किया।सारागढ़ी पोस्ट आसपास के किलों के बीच सिगनल देने का काम करती थी।सारागढ़ी किले को दो किलों लॉकहर्ट और गुलिस्तान के बीच में एक पहाड़ी पर बनाया गया था।सारागढ़ी की सुरक्षा के लिए हवलदार ईशर सिंह के साथ 20 सिपाहियों का दस्ता तैनात था।अफगानों का घेरा ऐसा था कि पास के किलों से मदद भी नहीं भेजी जा सकती थी।

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कहा जाता है कि अफगानों के हमले के बाद इन सिपाहियों से पोस्ट खाली करके पीछे हटने के लिए भी कहा गया था, लेकिन इन सिपाहियों ने सिख परंपरा अपनाते हुए मरते दम तक दुश्मन से लड़ने का फैसला किया।ईशर सिंह और उनके सिपाहियों ने बहादुरी से हमले का सामना किया।21 सिपाही पूरे दिन हजारों की संख्या में आए अफ़ग़ानों से लड़ते रहे।गोली-बारूद खत्म होने पर उन्होंने हाथों और संगीनों से आमने-सामने की लडाई लड़ी।आखिरकार अफगानों ने सारागढ़ी पर कब्जा तो कर लिया, लेकिन इस लडाई में अफगानों को बहुत जान का बहुत नुकसान उठाना पड़ा।इस लड़ाई के कारण मदद के लिए आ रही अंग्रेजी फौज को समय मिल गया और अगले दिन आए अंग्रेजों के दस्ते ने अफगानों को हराकर फिर से सारागढ़ी पर कब्जा कर लिया।अंग्रेजों के फिर से कब्जे के बाद सिख सैनिकों की जांबाजी दुनिया के सामने आई।अंग्रेज सैनिकों को वहां करीब 1400 अफगानों की लाशें मिली थीं।
सारागढ़ी पर बचे आखिरी सिपाही गुरमुख सिंह ने सिगनल टावर के अंदर से लड़ते हुए 20 अफगानों को मार गिराया।जब अफगान गुरमुख पर काबू नहीं पा सके तो उन्होंने टावर में आग लगा दी और गुरमुख जिंदा ही जल कर शहीद हो गए।

भारतीय इतिहास की यह गौरवशाली घटना(glorious history of india) केसरी फ़िल्म के कारण आम भारतीय जनता के बीच चर्चा का कारण बनी।’केशरी’ अनुराग सिंह द्वारा लिखित और निर्देशित 2019 की एक भारतीय हिंदी भाषा की एक्शन-वॉर फिल्म है।इसे करण जौहर, अरुणा भाटिया, हीरू यश जौहर, अपूर्व मेहता और सुनीर खेत्रपाल द्वारा संयुक्त रूप से धर्मा प्रोडक्शंस, केप ऑफ गुड फिल्म्स, एज़्योर एंटरटेनमेंट और ज़ी स्टूडियो के बैनर तले निर्मित किया गया है। फिल्म में अक्षय कुमार मुख्य भूमिका मे नज़र आये हैं, जबकि परिणीति चोपड़ा, मीर सरवर, वंश भारद्वाज, जसप्रीत सिंह, विवेक सैनी और विक्रम कोचर ने सहायक भूमिकाओं का निर्वहन किया है। फ़िल्म कि कहानी सारागढ़ी की लड़ाई में घटी घटनाओं का अनुसरण करती है, जो 1897 में ब्रिटिश भारतीय सेना की 36वीं सिख रेजिमेंट के 21 सैनिकों और 10,000 से ज़्यादा अफरीदी और ओरकजई पश्तून आदिवासियों के बीच लड़ी गयी थी।