
रविवारीय गपशप: कलेक्टर-कमिश्नर और सरकारी बंगला
आनंद शर्मा
नौकरी में तबादला होने पहली चिंता मकान की होती है , कि नई जगह कहाँ रहेंगे । संयोग से मुझे इस मामले में ज़्यादा परेशानी नहीं झेलनी पड़ी । कुछ न कुछ करके मकान मिल ही जाता था पर कई बार मकान मिलने की सुविधा दूसरी परेशानियां भी ले आती हैं । मेरा तबादला जब सीहोर से सागर हुआ तो मैंने अपनी कलेक्टर श्रीमती विजया श्रीवास्तव से मकान के लिए सिफारिश करने को कहा । उन्होंने फोन पर बात की और मुझसे कहा कि क्वॉर्टर के लिए कमिश्नर साहब से जाकर मिल लेना । जिले में जॉइनिंग देने के दूसरे ही दिन कमिश्नर साहब मिला और संयोग से की गयी सिफ़ारिश की बदौलत मुझे एक मकान भी आबंटित हो गया | मैं बड़ा ख़ुश हुआ , पर जब एक सप्ताह तक कार्य आवंटन आदेश जारी नहीं हुए और मैं एक सप्ताह तक बिना काम के जिले में बैठा रहा तब सिटी मजिस्ट्रेट श्री एन.एस. परमार ने कहा कि ”कलेक्टर साहब तुमसे नाराज़ हैं।” मैं हैरान हुआ कि मुझे तो आए हुए कुछ ही दिन हुए हैं और अभी तो मुझे कोई काम ही नहीं मिला तो नाराज़ कैसे हो गए ? परमार जी ने मुझसे पूछा ”क्या आप बिना कलेक्टर की इजाज़त से कमिश्नर से मिलने गए थे ?” मैंने कहा हाँ , बोले ”बस यही कारण होगा , यहाँ ये आदेश हैं कि बिना कलेक्टर की अनुमति के कोई अधिकारी सीधे कमिश्नर से नहीं मिलेगा।” मैं थोड़ा चकित हुआ , फिर उन्होंने मुझे समझाया गया कि कुछेक कारण से यहाँ दोनों अधिकारियों के मध्य कुछ खींचतान है ।
बहरहाल अब क्या हो सकता था ? मैंने निश्चय किया कि बजाए जुबानी सफ़ाई देने के वक़्त को मौक़ा देना चाहिए । कुछ दिनों बाद ही कामकाज देखने पर अपने आप कलेक्टर की नाराजगी दूर हो गयी और मुझे उन्होंने सागर मुख्यालय का अनुविभागीय अधिकारी बना दिया । मुख्यालय का एस.डी.एम. होने के नाते तिवारी साहब को नज़दीक से जानने का मौक़ा मिला और मैंने पाया कि तिवारी साहब ग़ज़ब की दृढ़ संकल्प शक्ति के अधिकारी थे । क़ानून की जानकारी और ड्राफ़्टिंग में वे बेमिसाल थे और जनप्रतिनिधियों में उनके लिए आदर का भाव होता था । तत्कालीन प्रभारी मंत्री उन्हें सम्मान से पंडित जी कहा करते थे । मैंने उन्हें कभी भी कामकाज के दौरान विचलित होते नहीं देखा । अपने साथी अधिकारियों के प्रति वे कितने संवेदनशील रहा करते थे, इसका एक उदाहरण आज भी मुझे याद है |
उन दिनों सागर के एस.पी.श्री सुदर्शन कुमार थे । कम बोलने वाले सुदर्शन कुमार का कामकाज साफ़ सुथरा था, पर इसी वजह से उनके विरोधी भी बहुत थे । राहतगढ़ क्षेत्र के एक कुख्यात बदमाश राजू मुण्डा की पुलिस मुठभेड़ में मृत्यु हो गयी, लाश जब कटरा थाने लायी गयी तो भीड़ उसे देखने जुटने लगी। किसी अति बुद्धिमान व्यक्ति ने उसके शव को खाट से बाँध सीधा खड़ा कर दिया । अख़बारों में सुर्ख़ियो के साथ ये ख़बर भी छपी कि ”मानव अधिकार का हनन हुआ है, मुठभेड़ को भी प्रश्नवाचक लहजे में छापा गया “। सुदर्शन कुमार के प्रति ज़बरदस्त माहौल बन गया, यहाँ तक कि विधानसभा की विशेष कमेटी जाँच के लिए आयी । मुझे याद है तिवारी साहब ने बड़ी बेबाक़ी से प्रशासन का पक्ष रखा और श्री सुदर्शन कुमार की निष्पक्षता और मुठभेड़ में मारे हुए व्यक्ति के आपराधिक रिकार्ड के बड़े पुष्ट प्रमाण दिए । किसी संकट की घड़ी में अपने सहकर्मी के साथ किस तरह कंधे से कंधा मिला कर खड़े होते हैं, ये मैंने तभी उनसे सीखा । एक और वाक़या है, तब मैं सागर से स्थानांतरित हो उज्जैन जिले के खाचरोद अनुविभाग का एस.डी.एम. हो चुका था । पास के ही धार जिले में श्री एन.एस. परमार भी स्थानांतरित हो कर आ गए थे और संयोग से श्री ओ.आर. तिवारी साहब भी बतौर कलेक्टर धार पदस्थ हो चुके थे । एक सप्ताहांत के अवकाश में, मैं धार श्री परमार साहब से मिलने गया तो तिवारी साहब से भी मिलने का मौक़ा मिला। मुझे याद है उन्होंने जिले में पदस्थ मुख्यालय के सभी डिप्टी कलेक्टर्स को बुलाया और हम सबने साथ में बैठ कर चाय पी । जब मैं चलने लगा तो उन्होंने कहा ”जहाँ कहीं भी जाओ अपनी बिरादरी वालों से मिलते जुलते रहना चाहिए।” ये सबक़ भी मैंने गाँठ में बांधा और आज तक पालन करता हूँ |





