रविवारीय गपशप :तबादले का नाटकीय प्रसंग
आनंद शर्मा
मेरी नौकरी की शुरुआत राजनांदगाँव से हुई थी, जो अब छत्तीसगढ़ में है , और इसके बाद मैं प्रदेश के लगभग हर क्षेत्र में पदस्थ रहा , पर कभी भी किसी एक ज़िले की पदस्थापना में उसी हैसियत से दुबारा पदस्थ नहीं रहा सिवाय एक अपवाद के जो ग्वालियर में घटा । मालवा के शांत इलाक़े से जब मेरा तबादला ग्वालियर हुआ , चाहने वालों ने बड़ी नसीहतें दीं । अशांत क्षेत्र है , लोग गरम मिज़ाज के हैं , आदि आदि । हालाँकि शिद्दत से काम करो तो कहीं तकलीफ़ नहीं होती है , पर ग्वालियर में यही अपवाद घटित होने का इन्तजार कर रहा था ।
ग्वालियर विकास प्राधिकरण के सी.ई.ओ. के रूप में जब मैंने पदभार ग्रहण किया तो पाया परिस्थितियाँ बड़ी प्रतिकूल हैं , प्राधिकरण में योजनाओं में पलीता लगा हुआ था और स्थानीय अधिकारियों ने मनमानी कर प्राधिकरण के हित के विपरीत निर्णय कर रखे थे । प्राधिकरण के कामकाज के बारे में मेरे मित्र विनोद शर्मा ने मुझे पहले ही सतर्क कर दिया था , तो मैं भी फूंक-फूंक कर कदम रख रहा था । मैंने कोशिश की कि पहले परेशान हितग्राहियों की सुनवाई की जाए और निष्प्रोयोजित पड़ी संपदाओं का सही निपटान हो। ज़ाहिर है बाधा बरसों से जमे कर्मी ही थे पर प्राधिकरण में कुछ अधिकारी ऐसे भी थे जिनके ख़याल प्राधिकरण के हित में थे । ऐसे अधिकारी और कर्मचारियों को भरोसे में लेकर जब प्रमाण के साथ मैंने सारी जाँच प्राधिकरण के अध्यक्ष और सम्भाग के आयुक्त बिमल जुल्का के सम्मुख रखी तो वे भी चौंक गए । उन्होंने गड़बड़ियों की रिपोर्ट गोपनीय रूप से शासन को भेज दी । पर शासन में कहाँ कुछ गोपनीय रह पाता है । विरोधियों को तुरंत पता लग गया कि उनके कारनामों की खबर ऊपर तक कर दी गयीं हैं और वे मुझसे निजात पाने की जुगत में जुट गये ।
इस बीच प्राधिकरण में राजनीतिक नियुक्तियाँ हो गयीं और बिमल जुल्का जी ने अध्यक्ष का पदभार नई अध्यक्ष को सौंप दिया । अध्यक्ष सीधी सादी महिला थीं , मैंने उन्हें प्राधिकरण के उद्देश्य और जनहित में लिये जाने वाले विषयों पर ब्रीफ़ भी किया पर जल्द ही उन्हें विपरीत धाराओं वाले स्थानीय अधिकारियों ने अपनी गिरफ़्त में ले लिया । एक दिन मैं भोपाल से किसी मीटिंग में भाग लेकर वापस आ रहा था कि मुझे पता लगा कि मेरा तबादला कर दिया गया है । मुझे आश्चर्य हुआ कि भोपाल में मुझे इसके बारे में कुछ पता ही नहीं चला ।
ग्वालियर वापस आकर दूसरे दिन सुबह मैंने अपने निवास में रखे फ़ैक्स संदेश को देखा तो उसमें पाया कि आवास पर्यावरण विभाग ने मेरी सेवाएँ सामान्य प्रशासन विभाग को वापस करते हुए मेरी जगह जबलपुर के संपदा अधिकारी के स्तर को सी.ई.ओ. के पद पर नियुक्त कर दिया था , पर मुझे कहाँ पदस्थ किया गया ये स्पष्ट नहीं था । आदेश कुछ विचित्र था , सामान्यतः बिना सामान्य प्रशासन विभाग की मर्ज़ी के इस तरह सेवाएँ वापस नहीं की जा सकती थीं और नियुक्त अधिकारी दर्जे में स्तर का भी नहीं था । मुझे अजीब लगा , पर मैं तैयार होकर चार्ज देने के लिए ऑफ़िस की ओर चल पड़ा । ऑफ़िस पहुँचने पर मैंने पाया कि मेरे चेंबर में ताला पड़ा हुआ था , बाहर बैठे चपरासी ने सलाम ठोकते हुए कहा की ये नये सी.ई.ओ. साहब लगा गये हैं । मुझे ग़ुस्सा आया , अभी तो मैंने चार्ज दिया ही नहीं था । मैंने अकाउंट अफ़सर को बुलाया तो उसने कहा , नये साहब ने एकतरफ़ा चार्ज ग्रहण कर लिया है । ये निहायत ही बेहूदगी थी , और ऐसी परंपरा नहीं है । मैंने अध्यक्ष महोदया से बात की तो वे बोलीं मैं क्या कर सकती हूँ ये तो शासन के आदेश ही होंगे कि ऐसा किया जाये । मैं समझ गया कि इनकी मौन सहमति ही है । मैंने आवास विभाग के उपसचिव श्री संतोष मिश्रा जी को फ़ोन लगा कर पूरी स्थिति बतायी । संतोष जी अब दुनिया में नहीं हैं , पर वे ग़ज़ब के निर्भीक अधिकारी थे । उन्होंने कहा यार ये तो मुझे भी नहीं पता कि ऐसे आदेश हो गये हैं और आज ही पी.एस. भी छुट्टी चले गये हैं पर तुम चिंता न करो सत्यानंद मिश्र साहब पी.एस. के चार्ज में हैं , मैं उनसे बात करता हूँ , ये आदेश तो ग़लत है ।
मैं घर वापस आ गया , दूसरे दिन दोपहर संतोष मिश्रा साहब का फ़ोन आ गया और उन्होंने कहा कि सत्यानंद मिश्रा साहब ने इस आदेश को निरस्त कर दिया है तुमको थोड़ी देर में फ़ैक्स मिल जाएगा । नये आदेश का फ़ैक्स कुछ समय बाद मेरे सामने था , उसमें लिखा था कि पुराना आदेश निष्प्रभावी घोषित किया जाता है और आनन्द शर्मा को पुनः यथापूर्व सी.ई.ओ. के पद पर पदस्थ किया जाता है । मैं अपनी सरकारी मारुति वैन में बैठ कर ऑफ़िस गया , नये आदेश को अकाउण्ट अफ़सर को दिया , और चपरासी से कहा कि हथौड़े से ताले को तोड़ दे । इसके बाद ऑफ़िस में वापस बैठ मैंने चार्ज रिपोर्ट शासन को फ़ैक्स की और फ़ोन पर सत्यानंद मिश्र जी और संतोष मिश्र जी का शुक्रिया अदा किया । दो दिन बाद रविवार को मैं अपने बँगले में बैठा था , तो जबलपुर प्राधिकरण के वही संपदा अधिकारी मिलने आये जो एक तरफ़ा चार्ज ग्रहण किए थे । उसने आते ही मेरे पैर पड़े और माफ़ी माँगी कि उसे ऐसा व्यवहार नहीं करना था । मैंने कहा चलो कोई बात नहीं । उसने फिर हाथ जोड़ कर कहा “ सर आप लोग तो ऐसी पोस्टिंग पाते ही रहते हो , पर मैंने बड़ी मुश्किल और जतन से ना जाने क्या क्या करके ये पोस्टिंग कराई थी , अब मैं वापस गया तो मैं कहीं का ना रहूँगा । कृपा करके मुझे सी.ई.ओ. बन जाने दो । मेरे सारे प्रयोजन पूर्ण हो चुके थे , अपमानजनक तरीक़े से हुए ट्रांसफ़र का बदला पूरा हो चुका था और मैं इतना तो समझ ही गया था कि राजनीतिक शक्तियाँ नहीं चाहतीं कि मैं प्राधिकरण में रहूँ , तभी तो ये सब हुआ था । मैंने कहा चलो ठीक है , शासन का आदेश हो जाने दो , मैं चार्ज दे दूँगा । संपदा अधिकारी फिर बोला कि अब तो साहब वो आप ही करा पाओगे । मैं हँसा और बोला ठीक है , अगले ही दिन मैंने सामान्य प्रशासन विभाग की उप सचिव सीमा शर्मा मैडम को मोबाइल पर निवेदन कर लिया कि अब मुझे प्राधिकरण की पोस्टिंग में नहीं रहना है , कहीं अन्यत्र और संभव हो तो ग्वालियर में ही किसी और विभाग में मुझे पदस्थ कर दिया जाये ।