
रविवारीय गपशप : जीवन के सपोर्ट सिस्टम होते हैं दोस्त
आनंद शर्मा
कहते हैं दुनिया के और रिश्ते आपकी मर्जी से तय नहीं होते पर दोस्त आप ख़ुद चुनते हो इसलिए यदि आपके पास साथ निभाने वाले दोस्त हैं तो आप ख़ुशक़िस्मत हो , क्योंकि दोस्त आपके जीवन का सपोर्ट सिस्टम होते हैं ।
नौकरी के शुरुआती दौर की बात है , तब मैं राजनांदगाँव जिले की डोंगरगढ़ तहसील में एस.डी.एम. हुआ करता था । छोटी से जगह थी , तो रेस्ट हाउस के समीप एक बैडमिंटन कोर्ट में सभी विभाग के अधिकारी शाम को इकट्ठा हो जाया करते थे । सिंचाई विभाग में एस.डी.ओ. मिश्रा जी अच्छे खिलाड़ी बड़े विनोदी स्वभाव के इंसान थे । शीघ्र ही हम मित्र बन गए । एक दिन वे सुबह सुबह घर पधारे और बोले आज ईद का दिन है चलिए इरशाद भाई के यहाँ ईद की मुबारकबाद दे आएँ । इरशाद भाई भले मानुष थे और डोंगरगढ़ के जनपद अध्यक्ष हुआ करते थे । मैंने सहमती दी और उनकी कार से हम इरशाद भाई के गांव जा पहुँचे । ईद की मुबारक बाद देने के बाद हम बैठक में बैठे तो मिठाइयाँ , ड्राई फ्रूट्स आदि तश्तरियों में पेश किए जाने लगे । थोड़ी देर में इरशाद भाई ने एक प्लेट मिश्रा जी के सामने रखी जिसमें गर्मागर्म आमलेट था । मिश्रा जी ने भवें तरेरीं और जोर से बोले “ये क्या है ?” इरशाद भाई थोड़ा घबराए और कहने लगे “ कुछ नहीं आमलेट था , आप नहीं लेते तो कोई बात नहीं हटा देता हूँ “। मिश्रा जी बोले “नहीं भाई , मैं तो ये पूछ रहा हूँ कि इसका बाप कहाँ है ? इसके बाद हम सब खूब हँसे और थोड़ी ही देर में इरशाद भाई ने लंच के लिए मुर्ग़े की तैयारी करा दी ।
डोंगरगढ़ में माँ बम्लेश्वरी के मंदिर होने के कारण व्ही.आई.पी. आवागमन खूब होता था । एक दिन की बात है , किसी कार्यक्रम के सिलसिले में प्रदेश के दो मंत्री क्रमशः श्री बंशीलाल धृतलहरे और श्री चरणदास महंत को एक साथ डोंगरगढ़ आना था । उनदिनों ऐसे अवसर पर व्ही.आई.पी. के लिए कार रायपुर से आया करती थी । दोनों मंत्रियों के लिए कारें आ गई थीं , पर बंशीलाल जी एक दिन पहले परिवार सहित आ पधारे और दोनों कारें ये कह के ले लीं कि दूसरे दिन रायपुर से एक्स्ट्रा कार आने पर गाड़ी छोड़ देंगे । शाम तक दूसरे मंत्री श्री महंत जी अपनी कार से ही डोंगरगढ़ आ पधारे , तो मैं थोड़ा निश्चिंत हो गया कि शायद अब कार का झंझट समाप्त हो गया है । दूसरे दिन सुबह सुबह मैं रेस्ट हाउस पहुंचा तो हमारे तहसीलदार साहब के साथ महंत जी का पी.ए. मेरे पास आया और कहने लगा , “हमारे लिए जो रायपुर से गाड़ी आई है वो हमें दिलाइए”। मैंने तहसीलदार की तरफ़ देखा तो वो कहने लगे “ सर बंशीलाल जी का परिवार अभी भी उसी कार में घूम रहा है , उनकी एक्स्ट्रा कार रायपुर से आई ही नहीं है ।” मैंने मंत्री जी के पी.ए. को समझाना चाहा तो वो रौब दिखाने लगा और कहने लगा कि “ आप तो परिवार से गाड़ी ख़ाली करवा के हमें दिलवाइए वरना मैं मंत्री जी की ओर से आपकी शिकायत शासन को कराऊँगा ।” मेरी कुल जमा छह महीने की नौकरी थी , अभी प्रोबेशन पीरियड ही चल रहा था , और थोड़ी चूक तो मेरी तरफ़ से भी हुई ही थी , सो मैं कुछ घबराया सा खड़ा विचार कर ही रहा था कि क्या करूँ तभी मिश्रा जी मेरे पास आए और बोले “ क्या बात है , क्यों चिंतित लग रहे हो ? “ मैंने स्थिति बताई तो मिश्रा जी कहने लगे “अरे आप मेरे साथ आओ , महंत जी मेरे पुराने परिचित हैं “ और मेरा हाथ पकड़ वे महंत जी के पास उनके कमरे में जा पहुंचे । मैंने स्थिति बताई तो मंत्री जी ने अपने उस पी.ए. को बुलाया और उसकी ग़ज़ब झाड़ लगाई कहने लगे “ बंशीलाल जी मेरे बड़े भाई के समान हैं , मैं उनकी पत्नी को भाभी कहता हूँ और तुम इनको गाड़ी से उतरवा कर मेरे नाम पर कार हासिल करना चाह रहे हो , चलो दफ़ा हो तुमको मैं रायपुर चल कर इस बदतमीजी की सजा दूँगा “। मुझसे बोले आप जाइए निश्चिन्त रहिए मुझे किसी गाड़ी की ज़रूरत नहीं है । मैंने चैन की सांस ली और और बाहर आकर मिश्रा जी को कहा “ यार तुमने आज बचा लिया “।





