रविवारीय गपशप:Good Governance यानी सामने वाले की पीड़ा समझने के लिए टेबल के दूसरी तरफ बैठना!
पिछले सप्ताह मध्यप्रदेश शासन ने सुशासन सप्ताह का आयोजन किया था । सुशासन दिवस अथवा ‘गुड गवर्नेंस डे’ 25 दिसंबर को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व श्री अटल बिहारी बाजपेयी के जन्मदिवस पर आयोजित किया जाता है और इस वर्ष तो अटल जी के जन्म दिवस का शताब्दी वर्ष है। अटल जी जैसे महापुरुष के जन्मदिवस को याद करने के लिए इससे अच्छी श्रद्धांजलि नहीं हो सकती कि आमजन की तकलीफों को दूर करने के अभियान के साथ इसे जोड़ा जाए।
जिलों में इस अवसर पर पूर्व कलेक्टर्स को भी आमंत्रित किया गया और इसी संदर्भ में मुझे राजगढ़ से जिले के कार्यक्रम में आने का न्यौता मिला। राजगढ़ के कलेक्टर श्री गिरीश मिश्रा मेरी सागर की पदस्थापना में मेरे साथ रह चुके हैं और राजगढ़ से आने के बाद दुबारा मेरा जाना नहीं हुआ था, सो माँ जालपा के दर्शन की लालसा भी थी इन कारणों से उनका अनुरोध मैं अस्वीकार न कर सका। बहरहाल राजगढ़ में सुशासन दिवस पर शामिल होकर मुझे ये जान कर बड़ी प्रसन्नता हुई कि गिरीश राजगढ़ जिले की जनता की सच्चे मन से, सहज भाव के साथ सेवा कर रहे हैं, जो हमारे प्रदेश के मुखिया मोहन यादव जी का मंतव्य भी है।
बतौर मुख्य अतिथि जब मेरे संबोधन का अवसर आया तो मैंने कलेक्टर और एसपी दोनों युवा अधिकारियों के साथ आयोजन में उपस्थित सभी अधिकारियों को एक ही बात कही और वो ये कि अधिकारियों को सामने वाले की पीड़ा समझने के लिए टेबल के उस तरफ़ बैठकर सोचना होगा, तभी सुशासन सही अर्थों में फलीभूत होगा। मैंने अपने कलेक्टर के कार्यकाल का एक किस्सा भी सबसे साझा किया जो आप सबसे भी साझा कर रहा हूँ।
हुआ यूँ कि एक दिन जब मैं अपने कार्यालय में बैठा आम जनता से मिल रहा था। एक नवजवान कमरे के अंदर आया और कहने लगा कि वह मुरैना से आया है और कई सालों की मशक्कत के बाद भी उसे अनुकंपा नियुक्ति नहीं मिल सकी है। मैं उन दिनों शासन के निर्देशों के अनुरूप अनुकंपा नियुक्ति के पेंडिंग प्रकरणों को निपटाने का अभियान चला रहा था। मैंने संबंधित विभाग के अधिकारी को संदर्भ बताकर बुलवा भेजा, तो उसने आकर कहा कि इनको तो नियुक्ति दे दी गई थी, ये ख़ुद ही नौकरी छोड़ कर चले गए और अब पुनः नियुक्ति माँग रहे हैं। मैं कुछ सोच में पड़ा तो विभागीय अधिकारी ने आगे कहा कि सर इनका केस तो वैसे भी हाईकोर्ट में पेंडिंग है इसलिए अब हम कुछ नहीं कर सकते, कोर्ट के आदेश के बाद ही कुछ किया जा सकेगा। मैंने उस नवजवान से कहा देखिए मामला कोर्ट में है, तो वो कहने लगा आप मेरी बात तो सुनिये ‘मेरे पिता आदिम जाति विभाग में लिपिक के पद पर थे, पक्की नौकरी थी और नौकरी में रहते हुए ही उनकी मृत्यु हुई। मुझे इन लोगों ने अनुकंपा के नाम पर कंटिंजेंसी पद के विरुद्ध अस्थायी रूप से हॉस्टल में मज़दूर के रूप में नियुक्त कर दिया, जब मुझे समझ आया कि ये तो नियमित नियुक्ति नहीं है तो मैंने लिखित में आपत्ति दर्ज करते हुए पद से इस्तीफ़ा दिया।’ मैंने फ़ाइल पढ़ी, नवजवान सही कह रहा था।
स्थानीय विभागीय अधिकारियों ने तत्समय स्थानीय स्तर पर पद न होने से कंटिनजेंसी पद पर नियुक्ति कर दी थी, जबकि निर्देश तो पक्की नौकरी देने के थे। उस पर जब आवेदक ने आपत्ति की तो ये कह दिया कि नौकरी तो एक बार ही देने का नियम है। शासन को भी प्रतिवेदन दे दिया कि आवेदक पात्रता नहीं रखता और हाईकोर्ट में शासन की ओर से इसी बात के साथ मुकदमा लड़ रहे थे। मैंने विभागीय अधिकारी से कहा ये सरासर आप लोगों को गलती है और शासन को भी आप लोगों ने अंधेरे में रखा है, इसे नियुक्ति देनी ही होगी, बताइए कितने पद रिक्त हैं?
विभागीय अधिकारी थोड़ी देर बाद पदों का विवरण तो ले आए पर नोटशीट में टीप लिख लाए कि आवेदक को नौकरी सात वर्षों तक ही दी जा सकती है और आवेदक के पिता की मृत्यु को ग्यारह साल हो गए हैं। अब मुझे उनकी हठधर्मिता पर क्रोध आया पर मैंने अपने आप को जब्त करते हुए कहा कि समय सीमा तब है, जब ये सात सालों तक बिना आवेदन दिए घर बैठा हो, ये तो लगातार गुहार लगा रहा है।
मैंने विभाग के कमिश्नर श्री उमाकांत उमराव को फोन लगा कर पूरी स्थिति बतायी और निवेदन किया कि हम बेवजह के कारणों से मुकदमा लड़ रहे हैं , आवेदक पात्र है और मेरे सामने पदों के विवरण के अनुसार पद रिक्त है , तो मैं प्रतिवेदन भेज देता हूँ। आवेदक मुकदमा वापस लेगा इसी शर्त पर मैं इसे नियुक्ति दे देता हूँ। उमराव साहब मेरी बात से तुरंत सहमत हुए और कहा तुम प्रस्ताव भेज दो और समझ लो कि मंजूर हो गया है । मैंने विभागीय अधिकारी के द्वारा प्रस्तुत नोटशीट पर विस्तृत आदेश लिखा और उस दिन शाम को वो नवजवान नियुक्ति पत्र लेकर अपने घर रवाना हुआ।