रविवारीय गपशप: जीवन की उलझने और उन्हें सुलझाने की जुगत!
जीवन का क्रम ही कुछ ऐसा है कि गुजरा हुआ कल सुहाना लगता है , पर सच्चाई तो ये है कि आप जीवन की उलझनों से कहीं भी भागो वे पीछे पीछे आपके पास आ ही जायेंगी । पिछले महीने ही हम लोग भोपाल से इंदौर शिफ्ट हुए , और आते ही लगा “ अरे बाबा ट्रेफ़िक की क्या अव्यवस्था है , सिग्नल पर लंबे लंबे जाम हैं , और रेड लाइट की तो कोई परवाह ही नहीं कर रहा है , भोपाल में कम से कम ऐसा तो नहीं था । फिर पिछले सप्ताह बेटे के के पास पूना आ गये । रेलवे स्टेशन से टैक्सी में बैठे तो बताया गया कि गंतव्य पर आधा घंटे में पहुँच जाएँगे , जबकि दूरी पंद्रह मिनट की भी नहीं थी , पर ऐसा अव्यवस्थित ट्रैफ़िक कि पहुँचते पहुँचते एक घंटा लग गया । रास्ते भर कहते रहे “ अरे इससे तो इंदौर ही अच्छा था “।
मैं ग्वालियर में पदस्थ था तो ज़िला पंचायत के सी.ई.ओ. श्री एस.के.मिश्रा थे , उनसे सहज कौन होगा , पर कुछ जनप्रतिनिधि तब भी दुखी थे । सरकार में शिकायत हुई कि बातों पर पूरा ध्यान नहीं देते हैं , कुछ दिनों में उनका तबादला हो गया । इसके बाद आहूजा साहब आये , वे और सीधी सपाट कार्यप्रणाली वाले । ज़िला सरकार की बैठकों में कुछ दिनों बाद फिर असंतोष के स्वर उठने लगे , अंततः कुछ महीनों की मशक़्क़त के बाद उनका भी तबादला हो गया और फिर सी.ई.ओ. बनीं एम. गीता । असंतुष्ट रहने वाले जनप्रतिनिधियों की टोली की चर्चा मैंने सुनी तो आपस में कह रहे थे , भाई अब मत बोलना कि ट्रांसफ़र करो , वरना न जाने अब कौन आ जाये ।
ऐसी ही एक और पुरानी घटना है , तब मैं सीहोर में मुख्यालय में अनुविभागीय अधिकारी राजस्व के पद पर पदस्थ था , और मेरे पड़ोस के अनुविभाग इछावर में एस.डी.एम. थे श्री प्रकाश चंद्र प्रसाद । दुर्भाग्य से अब प्रसाद साहब नहीं हैं , पर थे वे बड़े मस्तमौला तबियत के इंसान , जब जैसा मन आ जाये वैसा कर बैठें । मेरी उनसे अच्छी जमती थी , सो वे अक्सर अपनी मन की बातें मुझसे साझा करते थे । एक बार उन्होंने कहा कि “ये फ़लाँ फ़लाँ दो पटवारी उनके विभाग में बड़े ही बदमाश क़िस्म के कर्मचारी हैं , कितनी भी कोशिश करो बदमाशी से बाज़ नहीं आते हैं , कभी नक़्शे में हेराफेरी कभी नपती में , जब देखो शिकायतें आती हैं और बेवजह मैं परेशान होता रहता हूँ ।मैं चाहता हूँ कि इनका मेरे अनुविभाग से कहीं दूर तबादला हो जाये , इसलिए इस बार कलेक्टर साहब से मैं इनके तबादले का प्रस्ताव दूँ तो आप भी ज़ोर लगा देना तो बला टल जाएगी । श्री आर.सी. सिन्हा उन दिनों सीहोर के कलेक्टर थे , और मुझ पर स्नेह भी रखते थे । मैंने कहा ठीक है आप बात रखना मैं तुरंत समर्थन कर दूँगा । अगले सप्ताह ही टी.एल. बैठक में प्रसाद साहब ने मसला उठाया , मैंने उनकी बात का तुरंत समर्थन किया कि हाँ सर मैंने भी इन कर्मियों की बदमाशियों के बारे में सुना है , और कलेक्टर ने भू अभिलेख के प्रभारी अधिकारी को नाम नोट कर प्रस्ताव प्रस्तुत करने को कह दिया । दो-तीन दिन बाद ही प्रसाद मेरे चेंबर में आये और ख़ुशी से मुझे गले लगा कर बोले भाई काम हो गया , दोनों का तबादला नसरुल्लागंज हो गया है । नसरुल्लागंज सीहोर मुख्यालय की सुदूर तहसील थी और किसी इछावर पदस्थापना वाले के लिए पनिशमेंट पोस्टिंग जैसी थी । बहरहाल प्रसाद जी ने टी क्लब में सबको ख़ुशी ख़ुशी चाय पिलाई । अगले सप्ताह सोमवार को जब हम टी.एल. बैठक में उपस्थित हुए तो बैठक के बाद हम सभी को नया कार्यविभाजन आदेश प्राप्त हुआ । मैं पढ़ ही रहा था कि मेरी बग़ल में बैठे प्रसाद साहब ने मुझे कोहनी मारी और मेरी ओर कातर निगाहों से देखा । मैंने कार्यविभाजन आदेश में प्रसाद साहब का नाम पढ़ा तो पाया , प्रसाद साहब बुधनी के नये एस.डी.एम. बन गये थे और ये तो सबको पता ही होगा कि नसरुल्लागंज तब बुधनी अनुविभाग की ही तहसील थी ।
*जीवन की उलझने और उन्हें सुलझाने की जुगत!*