रविवारीय गपशप: दिवाली के कुछ रोचक किस्से: कमिश्नर साहब का कुत्ता और डीडीए साहब का दारू-शारु प्रोग्राम

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रविवारीय गपशप: दिवाली के कुछ रोचक किस्से: कमिश्नर साहब का कुत्ता और डीडीए साहब का दारू-शारु प्रोग्राम

आनंद शर्मा

दिवाली का त्यौहार हमारे देश का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है । इसे सभी धर्मों के लोग मानते हैं , एक दूसरे से मिलना जुलना , ख़ुशियाँ बाँटना और जगमग रौशनी के साये में अपने परिवार के साथ उत्सव मनाना ।दिवाली में कोई कहीं भी काम करता हो , उसका मन होता है कि वो इस त्योहार अपने घर परिवार के लोगों के साथ रहे । कल शाम हम इंदौर के फीनिक्स मॉल में बच्चों के साथ दिवाली की खरीददारी कर रहे थे तो मेरी पत्नी ने कंप्यूटर पर बिल बना रहे नौजवान से पूछा , “ तुम्हारी भाषा से लगता है बुंदेलखंडी हो “? । नवयुवक खुश होकर बोला हाँ मैम सागर के हैं । पत्नी बोलीं दिवाली पर घर नहीं जा रहे ? नवयुवक मुस्कुराया और कहने लगा मैम पुलिस और हमारी ड्यूटी एक जैसी है , त्योहारों पर और ज़्यादा काम करना पड़ता है , पर कोशिश रहेगी कि एक दिन के लिए ही सही , दिवाली पर घर चले जाएँ । सरकारी नौकरी की ज़िम्मेदारी के चलते शासकीय सेवक अपने पैतृक घर की दिवाली बहुत कम मना पाते हैं , लेकिन इसके फायदे भी हैं , कि सरकारी नौकरी में अनेक जगहों पर पदस्थ होने से कुछ स्थानीय परम्पराओं से भी परिचय होता रहता है । छत्तीसग़ढ़ के राजनांदगाँव ज़िले में पदस्थापना के दौरान पता चला कि पटकने वाले बम भी होते हैं जो ज़मीन में ज़ोर से पटकने पर बड़ी आवाज़ कर के फ़ूटते हैं । राजगढ़ में इस त्योहार के समय नेवज मैय्या को चुनरी चढ़ाते हैं और उज्जैन में महाकाल मंदिर में सबसे पहले गर्भ-गृह में जाकर भगवान महाकाल के सामने फुलझड़ी जलाते हैं ।

दिवाली के अवसर पर उपहारों के अदान प्रदान की परंपरा भी है , हमारे सरकारी महकमे में छोटे अफ़सर अपने वरिष्ठ अधिकारियों से अक्सर दिवाली में भेंट के लिए जाते हैं । एक पुरानी दिलचस्प घटना मेरे वरिष्ठ साथी ने बताई थी । हुआ यूँ कि वे तब टीकमगढ़ जिले के निवाड़ी सब डिवीजन में पदस्थ थे और संभागीय मुख्यालय में कमिश्नर से दिवाली मिलने आए हुए थे । कमिश्नर साहब से मिल कर और आशीर्वाद लेकर वे प्रसन्न मन से बाहर निकल अपनी जीप में बैठे वापस जाने को निकले ही थे , कि जीप के नीचे छिप कर बैठा साहब के विदेशी नस्ल के छोटा सा कुत्ता टायर के नीचे आ जाने से स्वर्ग सिधार गया । एस.डी.एम. साहब ने पूरे शहर में घूमकर वैसी ही नस्ल का दूसरा “पपी” तलाश कर वापस मेमसाहब को भेंट किया तब कहीं दिवाली की ख़ुशी हासिल हो पाई ।

एक और मजेदार प्रसंग याद आ रहा है , तब मैं सीहोर का एस.डी.एम. हुआ करता था और ए.डी.एम. थे श्री अरुण तिवारी; वहीं पर ग्रामीण अभियांत्रिकी विभाग में पदस्थ एस.डी.ओ. थे श्री पी०एस तोमर । हम तीनो की बहुत बनती थी और सीहोर से सप्ताहांत भोपाल घूमने जाना और नए नए रेस्टोरेंट ढूँढ कर पार्टी करना हमारा सहकारी मिशन रहा करता था । दिवाली के एक दिन पहले जंगली अहाते में तोमर साहब के आवास में जब हम सब शाम को बैठे चाय पी रहे थे , तो तिवारी जी ने कहा कि दिवाली का समय है, आज तो रमी का खेल होना चाहिये । मैंने कहा हम तो तीन ही हैं, कुछ और मित्र हो जायें तो अच्छा रहेगा । तोमर साहब ने सुझाव दिया कि पड़ोस में रहने वाले कृषि विभाग के उपसंचालक को भी शामिल कर लिया जाए । तिवारी साहब ने सहमति दी तो तोमर साहब ने पड़ोसी को फ़ोन लगाया और डी.डी.ए. साहब से पूछा कि क्यूँ भई, दिवाली मनाते हो ? वे बोले क्यू नहीं , तोमर साहब ने कहा, तो फिर आ जाओ, हम लोग आपका इंतज़ार कर रहे हैं। थोड़ी देर बाद डी.डी.ए. साहब लुंगी  पहनकर पधार गए । मैंने तिवारी जी से फुसफुसा कर कहा “ये रुपये पैसे तो लाए नहीं लुंगी बनियान में रमी कैसे खेलेंगे ?” तोमर साहब ने ताश की गड्डी सामने रखी तो वो सज्जन कुछ सकपकाए, कहने लगे, कि मुझे तो ताश खेलना आता नहीं है। तोमर साहब ने कहा, अरे मैंने पूछा तो था कि  दिवाली मनाते हो या नहीं ? डी.डी.ए. साहब बोले, भय्या मैं तो समझा था कुछ दारू शारू का प्रोग्राम होगा। हम लोग खूब हंसे और हमारी वो दिवाली बिना सेलब्रेशन के ही समाप्त हो गई ।