
रविवारीय गपशप: रौबदार प्रमुख सचिव की सिफारिश और हिकमतअमली से निपटा मामला
आनंद शर्मा
सरकारी नौकरी कैसी भी हो , अफ़सर को सिफारिशों से जद्दोजहद करनी ही पड़ती है , कभी नेताओं की , कभी घरवालों की और कभी ख़ुद के सीनियर अफसरों की , और इन सब सिफारिशों में ना होने वाले कामों को करवाने के दबावों से भी जूझना पड़ता है । मैं राजगढ़ में कलेक्टर था तो एक वरिष्ठ अधिकारी , जो उन दिनों प्रमुख सचिव के पद पर थे , का मुझे फ़ोन आया और उन्होंने कहा कि “ आपके जिले में अधिकारी बड़ी गड़बड़ी कर रहे हैं , मेरे एक रिश्तेदार ने राजगढ़ जिले के खुजनेर शहर कोई जमीन खरीदी है , और उसकी रजिस्ट्री भी कराई है , पर रजिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट वाले रजिस्ट्री नहीं दे रहे हैं और ऊपर से पैसों की माँग कर रहे हैं और इसमें आपका जिला अधिकारी भी शामिल है ।” बात बड़ी गंभीर थी , वे वरिष्ठ तो थे ही , पर उनकी धाकड़ छवि के कारण हम सभी इनका सम्मान करते थे । मैंने उन्हें आश्वस्त किया और उनसे उनके उन परिचित रिश्तेदार का नम्बर ले लिया , ताकि मैं सीधे बात कर समस्या को हल कर सकूँ । इसके बाद मैंने जिला पंजीयक रजनीश सोलंकी को बुलाया और उनसे शिकायत का जिक्र कर वस्तुस्थिति जाननी चाही । रजनीश कहने लगे “ सर इन्होंने जो प्लॉट बता कर रजिस्ट्री कराई है , वह बना बनाया मकान था , और इन्होंने खरीद कर उसे अब तोड़ कर प्लॉट कर लिया है , पर उसकी सेटलाइट इमेज में वह मकान दिख रहा है , और उसकी पुरानी फोटो भी है । दरअसल दीपाली रस्तोगी मैडम , जो कि हमारी रजिस्ट्रार हैं , उन्होंने एक सॉफ्टवेर बनवाया है , जिसमें रेंडम आधार पर कुछ रजिस्ट्री की जांच आती है , उसमें ये गड़बड़ी पकड़ में आई है , अलग से जांच नहीं की है और अब तो ये मामला भी ऊपर तक रिपोर्ट हो चुका है और दीपाली मैडम ख़ुद इसकी निगरानी रखती हैं , तो इनको अतिरिक्त रजिस्ट्रेशन शुल्क जमा करना ही होगा । सोलंकी सीधा सादा अफसर था और उसके बारे में कोई विपरीत किस्म की शिकायत कभी मिली भी नहीं थी । मैंने फ़ाइल देखी , उसका एक एक शब्द सच था ।
मैं सोच में पड़ गया कि अब क्या करूँ ? आख़िरकार मुझे एक उपाय सूझा , मैंने रजनीश सोलंकी जी से फ़ाइल अपने पास रखवा ली और अधिकारी महोदय के उस रिश्तेदार को दूसरे दिन फ़ोन कर ऑफिस आने का निमंत्रण दे दिया । दूसरे दिन वे रिश्तेदार महोदय मेरे दफ़्तर में नियत समय पर आ गए । मैंने उन्हें प्रेम से बिठाया , साथ बैठ कर चाय पी और बताया कि साहब का फ़ोन आया था आपकी तकलीफ़ के बारे में । वे सहज हो गए तो मैंने सामने रखी फाइल उन्हें खोल कर दिखाई और प्रेम से कहा “ देखो मेरे भाई सच्चाई तो ये है , और आपने जिनकी सिफारिश लगवायी है , पूरे प्रदेश में उनकी एक अलग इमेज है , जिसकी लोग मिसालें भी दिया करते हैं । अब इस बारे में लोगों को पता लग गया कि उनके नाम पर आप सरकारी शुल्क बचाना चाहते हो तो बड़ी भद्द पिटेगी । इतना सा शुल्क है और आपके साहब का नाम कई गुना बड़ा है , बताओ क्या आप ऐसा करना चाहोगे ? “ उसे बात तुरत समझ आ गई और उसने कहा “ कोई बात नहीं सर हम पैसे जमा कर रजिस्ट्री छुड़वा लेते हैं ।“ बात बन गई और वे भाईसाहब हमारे अच्छे मित्र बन गए आज भी मुझे उनके दिवाली और होली पर बधाई के संदेश आते हैं ।





