रविवारीय गपशप: मुश्किल समय में जो उपहार मिला, वो आज भी यादों में बसा!                                          

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रविवारीय गपशप: मुश्किल समय में जो उपहार मिला, वो आज भी यादों में बसा!

                               

इस बार त्योहारों की तिथियों में होने वाली गुत्थियों ने दिवाली दो दिन की कर दी , यानी खूब दिवाली मनी , और आश्चर्यजनक रूप से हवाओं में प्रदूषण की मात्रा में भी कमी आयी । हालाँकि होना तो ये चाहिए कि हमारी किसी भी प्रकार के सेलिब्रेशन का प्रकृति पर बुरा असर नहीं आने देना चाहिए । अलबत्ता दिवाली के दिनों के विस्तार ने आपस में एक दूसरे से मिलने और परस्पर उपहार के आदान प्रदान की परंपरा के लिए काफ़ी वक्त दे दिया ।

उपहार की परंपरा के भी कई क़िस्से हैं । जब हम लोगों ने नौकरी शुरू की थी तो छत्तीसगढ़ के सुदूर ग्रामों में जाने पर ग्राम के बाहर ग्रामीण जन गाजे बाजे से स्वागत करते और भेंट में कभी कभी एक दो रुपया देते , जब मै इसे लेने से मना करता तो साथ के पदस्थ तहसीलदार समझाते के रख लें साब ये “मान” का है । ग्वालियर में जब मैं परिवहन विभाग में था तो मैंने कई बार देखा कि हमारे परिवहन आयुक्त श्री एन.के. त्रिपाठी से जब दूर-दराज के लोग तीज त्यौहार के समय मिलने आते तो उन्हें टीका लगा कर दस बीस रूपये देते , जिसे त्रिपाठी जी अपनी जेब में बड़े सम्मान से रख लेते । इसके बाद उन्हें अपनी समस्याएँ सुनाते । त्रिपाठी साहब पुलिस के आला अधिकारी थे तो मुझे लगता वे इन्हें पुलिस से संबंधित तकलीफे बतायेंगे पर वे तो उन्हें डाक्टरी की , पटवारी की और न जाने किस किस से सम्बंधित तकलीफ सुनाते । त्रिपाठी जी धीरज से सुनते और संबंधितों को मदद के लिए फ़ोन भी करते निस्संदेह वे बेहिचक मदद करने वाले अफसर थे ।

कभी कभी अनपेक्षित भी ऐसे उपहार मिल जाते हैं ,जो दिलचस्प होते हैं । बहुत पुरानी बात है तकरीबन 1993 की , तब मैं सीहोर मे पदस्थ था और नरसिंहपुर से ट्रांसफर होकर आये एक बरस हो चुका था । किसी काम से मैं जबलपुर अपनी बहन के यहाँ सपरिवार आया था । मेरे पास मारुती 800 थी , लौटते में सुबह सुबह कार के पेट्रोल टैंक के कांटे पर ध्यान न दिया और जबलपुर निकल कर मेडिकल चौराहे पर ध्यान आया कि गाड़ी में पेट्रोल तो समाप्ति के कगार पर है । सोचा गाड़ी गोटेगांव तरफ से ले लें वहीँ से पेट्रोल डलवा लेंगे । किसी तरह गोटे गाँव आये तो बस स्टैंड चौराहे पर पहले पेट्रोल पम्प पर पहुँचते पहुँचते पेट्रोल लगभग समाप्त हो चला था । मैंने पेट्रोल डालने का पूछा तो पेट्रोल डालने की मशीन के पास नियुक्त कर्मी ने बताया की लाइट नहीं है पेट्रोल हाथ से चला कर देना होगा । मैंने कहा ठीक है पांच लीटर ही डाल दो , तभी केबिन से निकल के पेट्रोल पम्प का मालिक जो हमारी बातें सुन रहा था , बाहर आया और बोला अरे नहीं साहब को पूरा पेट्रोल दो जितना मांगें , तुम इन्हे पहचानते नहीं ये हमारे एस.डी.एम. रह चुके हैं । मैंने हाथ से हैंडल चला कर पेट्रोल भरने की परेशानी और उसकी प्रेम पूर्ण पेशकश के बीच का रास्ता निकाल दस लीटर पेट्रोल डलवा लिया । इसके बाद मैंने पर्स ने निकाल जैसे ही पैसे देने चाहे उस सज्जन ने हाथ जोड़ कर कहा नहीं साहब पैसे तो मैं न लूँगा । मैंने कहा भाई मेरे ये तो उचित नहीं है , पर मेरी बहुतेरी कोशिशों के बाद भी उसने मुझसे पैसे न लिए , एक आखिरी कोशिश जब मैंने फिर करनी चाही तो उसने मुझसे कहा साहब आप इतने दिन हमारे एस.डी.एम. रहे कभी हमें अनावश्यक परेशान नहीं किया , अब मेरा आपसे कोई स्वार्थ भी नहीं है जो इसे आप अन्यथा समझो , बस इसे हमारी याद हमारा सम्मान समझ कर भूल जाओ । मैंने उसकी ओर बेबसी से देखा और धन्यवाद देकर गाड़ी में बैठ कर अपने गंतव्य को चल दिया । ये भी एक उपहार ही था जो इतने दिनों बाद मुझे आज भी याद है ।