रविवारीय गपशप : भावी अफसरों के प्रोबेशन पीरियड की फ़जीयत

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रविवारीय गपशप : भावी अफसरों के प्रोबेशन पीरियड की फ़जीयत

नौकरी चाहे कोई भी हो , परिवीक्षा काल यानी ट्रेनिंग का समय बड़ा कठिन हुआ करता है । प्रशासन की हमारी नौकरी में अब हो सकता है कि समय के साथ कुछ बदलाव हुआ हो , पर जब मैं भर्ती हुआ था तब प्रोबेशनर्स की बड़ी तगड़ी रगड़ाई हुआ करती थी । राजनांदगाँव में , जो मेरा पहला जिला था , जब मैंने ट्रेनिंग लेनी आरम्भ की तो दोस्त यार भले ही सोच रहे हों की लड़का डिप्टी कलेक्टर होकर गाड़ी में घूम रहा होगा , पर वहाँ तो रेस्ट हाउस से कलेक्ट्रेट तक , मैं पैदल ही जाया करता था । ट्रेनिंग के बाद बनाये गए नोट्स की जाँच ख़ुद ए.डी.एम. मिश्रा जी किया करते थे । जब पटवारी ट्रेनिंग का मौक़ा आया तो मेरे लिए तहसील का सुदूर हल्का चुना गया । मिश्रा जी से जाने के पहले मैंने पूछा “ सर रहने खाने का क्या होगा “? ए.डी.एम. साहब बोले रहने की व्यवस्था कहीं स्कूल वैगरह में पटवारी जी करायेंगे और खाना तो गाँव में मिल ही जाता है , बस ध्यान रखना वहाँ पटवारी ही आपका ए.डी.एम. है , सो जैसे यहाँ मेरी सुनते हो वहाँ उसकी भी वैसी ही सुनना ।

हम तो खैर राज्य प्रशासनिक सेवा की भर्ती थे , पर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के भी यही हाल हुआ करते थे । मैं सागर पदस्थ हुआ तो वहाँ मनोहर अगनानी जी सहायक कलेक्टर हुआ करते थे । मैं सागर मुख्यालय के अनुविभाग का एस.डी.एम. बना तो हमारी अच्छी जमने लगी । कलेक्टर का फरमान था कि प्रोबेशनर को ट्रेनिंग के दौरान कोई जीप या अन्य वाहन नहीं मिलेगा सो वे अपनी सायकल से कलेक्ट्रेट आ जाया करते थे । मुझे वे कलेक्ट्रेट के अधीक्षक लौंडे साहब के पास बैठे मिल जाया करते जहाँ वे अपने ट्रेनिंग के नोट्स जमा करवाने जाते थे । उनकी शादी तब हुई नहीं थी , अकेले रहते थे , तो कई बार छुट्टी के दिनों में वे मेरे घर भी आ जाते तो चाय और नाश्ते की महफ़िल जम जाती । एक दिन वे सुबह सुबह घर आए और मुझसे कहने लगे “ यार एक समस्या है , कल सुबह दो दिन के लिये जयपुर से मेरे माता पिता आ रहे हैं , आपको तो पता ही है कि वे ख़ुद बड़े बिज़नेस मेन हैं और मैं उनको स्टेशन लेने सायकल पर जाऊँ तो वो क्या सोचेंगे ? मुझे ये पता था कि कलेक्टर ने प्रोबेशनर को वाहन देने से मना कर रखा था , पर दोस्ती का सवाल था । उन दिनों मैं एस.डी.एम. के साथ साथ कृषि उपज मण्डी सागर का प्रशासक भी था , सो मैंने कहा ये मण्डी वाली एंबेसडर आप ले जाओ , और जब अंकल लोग चले जाएँ तो वापस कर देना ।

उनदिनों हर अफ़सर ट्रेनिंग के दौरान ग्वालियर ज़रूर जाता था , जहाँ उसे भू अभिलेख की परीक्षा भी देनी पड़ती थी । सन 2002 की बात होगी मैं ग्वालियर में भू अभिलेख आयुक्त पुखराज मारू साहब के अधीन संयुक्त आयुक्त हुआ करता था और अन्य जिम्मेदारियों के साथ साथ राजस्व निरीक्षक संस्थान , जहाँ ये ट्रेनिंग और परीक्षा हुआ करती थी , का प्राचार्य भी था । परम्परा के अनुसार उस वर्ष भी दो आय.ए.एस. प्रशिक्षु अधिकारी भू अभिलेख की ट्रेनिंग के लिए ग्वालियर आए । अब तो खैर वे प्रमुख सचिव हो चुके हैं पर तब वे एकदम कालेज से निकले नौजवान जैसे ही थे लेकिन मारू साहब भी पुराने जमाने के ही अफ़सर निकले । उन्होंने पहले ही दिन की मुलाकात में उनके सामने ही हम सभी को ये फरमान सुना दिया कि इन नए लड़कों को प्रोबेशनर की तरह ही रखना है , कोई व्ही.आई.पी. ट्रीटमेंट नहीं । हॉस्टल में सामान्य कमरों में रहेंगे , खाना सादा और ट्रेनिंग कड़क होनी चाहिए । फिर क्या था ट्रेनिंग स्कूल के बंदे उत्साह में आकर , ग्वालियर की कड़ी धूप में उन्हें दिन भर जरीब , चाँदा, गुनिया और परकाल जैसी बारीकियां सिखाने लग गए । तीन चार दिन बाद वे दोनों मोतीमहल में मेरे कमरे में आए और मायूस स्वरों में कहने लगे “साहब बड़ी कड़ाई हो रही है “। मैंने कहा यार भाई क्या करें , सी.एल.आर. साहब ने आपके सामने ही तो कहा था । वो बोले कम से कम कमरे तो ए.सी. वाले दिलवा दें । मैंने उप प्राचार्य जैन साहब को फ़ोन पर कहा कि इनको गेस्ट हाउस वाले दो कमरे दे दो ।सामने बैठे नवजवान बोले , खाने का भी बोल दें , मैंने कहा भाई खाना भी गेस्ट हाउस में ही बनवा दो , पेमेंट ये कर देंगे । अब वे बोले , यहाँ तक हम टेम्पो में आये हैं कम से कम कहीं आने जाने के लिए तो गाड़ी करवा दो , मैंने अपने ड्राइवर को कहा कि इन्हें महलगांव के ट्रेनिंग सेंटर तक छोड़ आओ और जैन साहब को कहा जब आवश्यकता पड़े तो सप्ताह में एकाद दिन इन्हें अपनी सरकारी जिप्सी दे दिया करो । दोनों अफसर बड़ी कृतज्ञता जताते वहाँ से चल दिए और मैंने उनके जाते ही सबसे पहला काम ये किया कि मारू साहब के पास जाकर उन्हें निवेदन कर लिया कि नौजवान अफ़सर बड़े डिप्रेस हो रहे थे तो मैंने कुछ ढील दे दी है ।

भावी अफसरों की प्रोबेशन पीरियड की फ़जीयत