रविवारीय गपशप: बैचमेट्स में प्रेम भी- प्रतिस्पर्धा भी और कई बार शह-मात का खेल भी!

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रविवारीय गपशप: बैचमेट्स में प्रेम भी- प्रतिस्पर्धा भी और कई बार शह-मात का खेल भी!

आनंद शर्मा

सरकारी नौकरी में एक साथ भर्ती हुए लोग सहोदर भाई की तरह होते हैं । इन बैचमेट्स में आपसी प्यार भी होता है , तो परस्पर प्रतिस्पर्धा और कभी कभी जलन भी । भर्ती के बाद मेरी पहली पोस्टिंग राजनांदगांव जिले में हुई थी । राज्य प्रशासनिक सेवा के सदस्यों की अनुविभागीय अधिकारी बनने की वैसी ही चाहत होती है , जैसी सीधी भर्ती के आई.ए.एस. की कलेक्टर बनने के लिए होती है । जिले में तब बी.पी.एस. नेताम सीनियर डिप्टी कलेक्टर थे जो उन दिनों खैरागढ़ सबडिवीजन के एस.डी.ओ. /एस.डी.एम. हुआ करते थे । कलेक्टर श्री नेताम को हटाना चाहते थे , और विकल्प ढूँढ रहे थे तभी श्री जी.एस. धनंजय , जो नेताम साहब के बैचमेट थे , राजनांदगांव में स्थानान्तरित होकर आए । कलेक्टर ने धनंजय साहब का आदेश खैरागढ़ अनुविभाग में एस.डी.एम. के पद पर कर दिया । धनंजय साहब ने कलेक्टर के चेम्बर में जाकर जाकर विनम्रतापूर्वक कहा “ कि नेताम को हटा कर मैं उसकी जगह एस.डी.एम. नहीं बनूँगा , भले ही उसके अलावा आप मुझे कहीं भी कर दो मैं जाने को तैयार हूँ “। कलेक्टर क्या करते , एक अग्रवाल साहब जो तभी स्थानांतरित होकर पधारे थे , और बस रिटायर होने वाले ही थे , वे खैरागढ़ गए , और श्री धनंजय ने जिले में ही ओ.आई.सी. बन कर अपना कार्यकाल पूरा किया । लगभग यही स्थिति मेरे बैचमेट श्री महेश चौधरी और श्री जे.के. जैन के बीच तब हुई जब वे दोनों देवास जिले में पदस्थ थे । कलेक्टर जे.के. से किसी बात पे नाराज हो गए और महेश को बंगले में बुला कर कहा कि मैं जे.के. की जगह तुम्हें एस.डी.एम. बना रहा हूँ आज ही चार्ज ले लो । महेश चौधरी में उन्हें कहा जे. के. को हटा कर मुझे एस. डी. एम. नहीं बनना है, वो मेरा बैटमैट है , पद तो कुछ दिनों के हैं , संबंध वर्षों के होते हैं , आपके ऑफर के चक्कर में मैं अपने संबंध नहीं बिगाड़ूँगा ।

ये तो रही दोस्ती की पर प्रतिस्पर्धा के किस्से भी कम नहीं हैं । मैं जब इंदौर में अपर कलेक्टर के रूप में पदस्थ हुआ तो उन दिनों प्रशासन और पुलिस ने मिलकर वादा ख़िलाफ़ कॉलोनाइजर और सोसायटी को कब्जा किए माफियाओं के विरुद्ध मुहिम छेड़ रखी थी । श्री बी.पी. सिंह जो बाद में हमारे प्रदेश के मुख्य सचिव भी हुए , तब इंदौर के कमिश्नर हुआ करते थे । हमारे बहुत से प्रस्तावों में राज्य शासन की सहमति भी आवश्यक थी तो उसके लिए भोपाल प्रस्ताव भेजे गए । कलेक्टर की ओर से इस बावत संभाग कमिश्नर की बैठकों में मैं ही जाया करता था , सो एक दिन मैंने कहा कि सर प्रमुख सचिव तो आपके बैटमेट ही हैं तो अब तो समय नहीं लगना चाहिए । सिंह साहब बोले अरे भाई तुम उसको जानते नहीं हो गजब का बारीक आदमी है , बैचमेट्स आर बेस्ट राइवल्स और सच में भोपाल से सहमती लेने में हमारे पसीने छूट गए ।

ऐसा ही एक और किस्सा है ग्वालियर का जहाँ मैं परिवहन विभाग में उपायुक्त प्रशासन था और विभाग के आयुक्त थे श्री एन के त्रिपाठी । एक दिन सुबह सुबह त्रिपाठी जी का फ़ोन आया और उन्होंने कहा कि मुझे शासन से आत्मरक्षार्थ रिवॉल्वर का लाइसेंस मिला है और उसे ख़रीदने मैं कानपुर की स्मॉल आर्म्स फ़ेक्ट्री आया हुआ हूँ , परंतु ख़रीदने की अवधि कल ही समाप्त हो गई है तो क्या तुम इसकी अवधि बढ़वा सकते हो ? ग्वालियर में हम थे ही प्रशासनिक पैरोकारी के लिए और ए.डी.एम. मेरा बैचमेट था सो मैंने तुरंत हाँ कर दी । फ़ोन रखते ही मैंने अपने मित्र ए.डी.एम. साहब को फ़ोन लगाया और वांछित अनुरोध किया । ए.डी.एम. साहब बोले तुम्हें कुछ पता नहीं है , इसके लिए तो उन्हें ख़ुद ग्वालियर कलेक्ट्रेट आकर आवेदन देना होगा , ओरिजिनल लाइसेंस लगाना होगा , शपथ पत्र देना होगा , तभी कुछ हो सकेगा । मैंने लाख समझाया कि भाई मेरे लाइसेंस तो शासन जारी कर चुका है , कलेक्ट्रेट के रजिस्टर में दर्ज है , तभी तो रिवॉल्वर खरीदने की अवधि दी गई है , और अब तो अवधि में केवल एक सप्ताह की वृद्धि ही करनी है , पर वे ना माने । मुझे कुछ सूझा नहीं , इसी दोस्त के कारण मैं अपने बॉस को वादा कर चुका था तो निराश हो मैंने कलेक्टर श्री राकेश श्रीवास्तव को फ़ोन लगाया और उन्हें पूरी बात बता कर अनुरोध किया कि वे मदद करें । राकेश श्रीवास्तव जी बोले अरे इसमें कौन सी अवैध बात है , आप मेरे पास कागज भेजिए मैं आपको अवधि वृद्धि का पत्र भेजता हूँ । मैंने संतोष की सांस ली और तुरंत अपने स्टेनो के हाथों सारे संबंधित दस्तावेज आवेदन सहित पहुँचाए और घण्टे भर के भीतर ही मेरे पास अवधि वृद्धि का पत्र पहुँच गया । मैंने त्रिपाठी जी को उनके बताए नंबरों पर इसे फ़ेक्स किया और राकेश श्रीवास्तव की बदौलत किए गए वायदे को पूरा किया ।