रविवारीय गपशप : ऐसे बचा इंदौर ADM बनने से

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रविवारीय गपशप : ऐसे बचा इंदौर ADM बनने से

आनंद शर्मा 

जब मेरी पदस्थापना इंदौर में अपर कलेक्टर के पद पर हुई तो इंदौर के कलेक्टर थे , श्री राकेश श्रीवास्तव । राकेश जी से मेरा परिचय पुराना था पर इंदौर आने पर कुछ निकट मित्रों से बातचीत में उन्होंने कहा कि ये तो कुछ ही दिनों के लिए आए हैं , जल्द ही कहीं और पोस्टिंग हो जाएगी । मैंने श्रीवास्तव साहब से मिल कर उनकी गलतफहमी दूर की और उन्हें कहा कि मैं तो बच्चों की पढ़ाई के वास्ते इंदौर में रुकना चाहता हूँ । खैर प्रारंभिक गलतफहमियाँ दूर होने के बाद जल्द ही हमारी अच्छी बनने लगी और मुझे ढेर सारे महत्वपूर्ण काम दिए जाने लगे । बीच बीच में कभी राकेश श्रीवास्तव साहब कहा करते “ यार तुम ए.डी.एम. इंदौर का चार्ज भी ले लो “, पर हर बार मैं विनम्रता से उन्हें मना कर देता । इसमें कोई शक नहीं कि इंदौर में किसी अपर कलेक्टर के लिए ए.डी.एम. का पद सबसे ज़्यादा महत्व का होता है पर मेरे इंकार करने के दो कारण थे ।

पहला तो ये कि उन दिनों इस पद पर श्री नारायण पाटीदार कार्यरत थे , जो मेरे पुराने परिचित थे और सीधे सरल अफ़सर थे , सो ऐसे मित्र को हटा कर ए.डी.एम. बनना मुझे पसंद नहीं था और दूसरी वजह थी , निकट भविष्य में आई.ए.एस. के लिए पदोन्नति समिति की बैठक मेरा नाम आने की संभावना , जिसकी वजह से इस दौरान मैं इस समय ऐसी किसी पदस्थापना में नहीं रहना चाहता था जिसमें कुछ विवाद होने की संभावना रहे । सो हर बार मैं कन्नी काट जाता , पर एक दिन रात को जब मैं भोजन उपरांत अपनी पत्नी के साथ बाहर टहल रहा था तो अचानक मेरे मोबाइल पर कलेक्टर साहब का फोन आया । मैंने फ़ोन उठाया तो वो न जाने किस बात पर झल्लाए हुए थे , कहने लगे यार मैं अब तुम्हारी एक न सुनूँगा , अगले सोमवार तुम्हें ए.डी.एम. बनाने का आदेश जारी कर रहा हूँ तुम्हें ये जिम्मेवारी लेनी ही होगी , और फ़ोन काट दिया । पत्नी ने मुझे चिंतित देखा तो पूछा क्या हुआ ? मैंने उसे कहा मुझे कलेक्टर जबज़स्ती ए.डी.एम. बनाने पर तुले हैं । उसने कहा जो होगा अच्छा होगा ज़्यादा ना सोचो । वह शुक्रवार का दिन था और अगले दो दिन छुट्टी के थे ।


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इंदौर में तो सातों दिन कलेक्ट्रेट के अफ़सर काम करते हैं , तो मैं दफ्तर में बैठा फाइलें देख रहा था तो एक शिकायत मेरे हाथ लगी जिसमें लिखा था कि साँवेर में एस.डी.एम. ने एक निजी कॉलोनी के नक्शे को मंज़ूरी देते हुए सरकारी गोहे (रास्ते) का स्थान ही बदल दिया है । मैंने फ़ोन कर पूछा तो एस.डी.एम. साहब ने कहा कि उन्होंने कलेक्टर की मंज़ूरी ले ली थी । मैंने कहा वे तुरंत फाइल समेत इंदौर आ जाएँ और घंटे भर बाद ही फ़ाइल और एस.डी.एम. दोनों सामने थे । मैंने पूरा मामला देखा तो एस.डी.एम. ने कालोनाइजर के आवेदन पर कालोनी के नक्शे में बीच से गुजर रहे सरकारी रास्ते को कॉलोनी के एक तरफ़ बाहर से गुजार दिया था , और फाइल में ही इस आदेश की पुष्टि पर कलेक्टर से अनुमोदित लिखवा लिया था । मैंने अनुविभागीय अधिकारी से अपने कमरे में बैठने को कहा और फाइल लेकर कलेक्टर के चेम्बर में पहुंच गया । श्रीवास्तव साहब बैठे थे , मैंने फाइल दिखाई और कहा एस.डी.एम. साहब का आदेश अधिकारिता रहित है , और उसे इसे तो आपको सीधे फाइल भेजनी भी नहीं थी ।

ऐसे आदेश पर आपके अनुमोदन की परम्परा और कानून दोनों ही नहीं हैं । श्रीवास्तव साहब बोले यार मैंने तो भलमनसाहत में पुष्टि कर दी , तुम सही कह रहे हो , अब क्या करें ? मैंने कहा सर भू राजस्व संहिता में ऐसी त्रुटियाँ रिव्यू में दूर की जा सकती हैं और कलेक्टर को ख़ुद के आदेश को पुनः जांचने की शक्ति क़ानून में दी है । आप इसी शिकायत के आधार पर प्रकरण को रिव्यू में लेकर आदेश को रद्द कर सकते हैं और एस.डी.एम. को इस लापरवाही के लिए जवाबतलब भी कर सकते हैं । उन्होंने हामी भरी और फाइल देकर कहा यथोचित कार्यवाही करो । मैंने छुट्टी के दिनों में सभी कार्यवाहियां पूरी कीं, और फाइल में शुद्धि आदेश सहित एस.डी.एम. को दिए जाने वाले कारण बताओ सूचना पत्र आदि को लेकर सोमवार को सुबह कलेक्टर के बँगले पर पहुँच गया ।

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श्रीवास्तव साहब तैयार होकर कलेक्ट्रेट के लिए निकल ही रहे थे बोले “बैठो कार में रास्ते में दस्तख़त कर देंगे “।

रास्ते में उन्होंने फाइल पढ़ी सभी जरूरी जगहों पर हस्ताक्षर किए फिर बोले आनंद तुमने अच्छा ध्यान से पढ़ कर सुधार कर लिया वरना अनावश्यक विवाद होता । मैंने मुस्कुरा कर कहा “सर तभी तो मैं कह रहा हूँ , मुझे यही काम करने दो , ये ज़्यादा जरूरी है , ए.डी.एम. बन कर डंडा तो कोई भी चला लेगा” । राकेश श्रीवास्तव बोले कह तो तुम सही रहे हो चलो फिर ऐसा ही चलने दो , और फिर इंदौर कलेक्ट्रेट में आई.ए.एस. में पदोन्नत होने तक मैं अपर कलेक्टर ही रहा आया ।