
रविवारीय गपशप: सही बात मनवाने के लिए पुलिस का रुतबा झाड़ना भी जरूरी!
आनंद शर्मा
यूँ तो प्रशासनिक अफसरों के लिए पुलिस का रुतबा झाड़ना अच्छा नहीं माना जाता , पर कई बार सही बात मनवाने के लिए ऐसा करना जरूरी होता है । बात पुरानी है तब मैं विदिशा में कलेक्टर हुआ करता था । ठंड के दिन थे और अचानक हुई ओला वृष्टि ने ग्रामीण क्षेत्रों में फसलों और खासकर गरीबों के कच्चे मकानों को बड़ी क्षति पहुंचाई थी । मैं अपने अधिकारियों के साथ ऐसे नुकसान वाले क्षेत्रों में ख़ुद भी गया था ।
राजस्व के हमारे अमले ने नुक़सान से हुई क्षति के लिए नियमों में अनुरूप मुआवज़ों के प्रकरण तुरंत तैयार किये और आबंटन की कमी थी नहीं , सो तत्काल प्रकरणों में मुआवजा राशि भी हितग्राहियों के खाते में हस्तांतरित कर दी गई । घटना के करीब एक सप्ताह बाद की बात है , मैं अपने ऑफिस में बैठा था कि ग्रामीण क्षेत्र से एक बूढ़ी अम्मा मुझसे मिलने आयीं । मैंने उन्हें ऑफिस में समक्ष में बुला कर सुना तो उन्होंने याद दिलाया कि मैं ओलों से हुई क्षति देखने उनके गाँव आया था और उनकी झोपड़ी के बुरे हाल भी देखे थे । मुझे बेशक याद था तो मैंने पूछा आज आप क्यों आई हो कोई और परेशानी है क्या ? मुआवजा तो हमने आपके खातों में ट्रांसफर कर दिया है । वे बोलीं उनके मुआवजे की रकम उन्हें बैंक वाले निकालने नहीं दे रहे हैं । मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ और थोड़ा गुस्सा भी आया । मैंने तत्काल लीड बैंक ऑफिसर और संबंधित बैंक के मैनेजर को ऑफिस में बुलाया और उन अम्मा को बैठने को कहा ।
थोड़ी ही देर में दोनों अफसर मेरे कक्ष में उपस्थित हो गए । मैंने उन अम्मा की शिकायत बैंक के उन अफसरों को बताई और वजह पूछी । बैंक के मैनेजर साहब ने अपने ब्रांच में बात की और मुझसे कहा सर इनका के.वाय.सी. अपडेट नहीं है इसलिए ये रकम नहीं निकाल पायीं हैं । मैंने कहा जब इनका के.वाय सी. अपडेट नहीं था तो खाते में रकम कैसे जमा कर ली ? मैनेजर साहब बोले सर राशि जमा करने में समस्या नहीं होती , निकालने में होती है । मैंने कहा खाते खोलते वक़्त ही के.वाय.सी. हुई थी या नहीं ? मैनेजर बोले सर वो समय समय पर नवीनीकृत होती है । मैंने बैंक ऑफिसर को कहा “ देखिए ये गंभीर विषय है , एक ओर तो हम ग्रामीण लोगों के बैंक खाते खोलने का अभियान चला रहे हैं ताकि सीधा हितग्राही के खाते में रकम डाली जा सके और दूसरी ओर इन नियमों की आड़ में उनके साथ परेशानी का माहौल बनाया जा रहा है , अब आप अपनी गाड़ी में इन्हें साथ लेकर जाइए और इनकी राशि इन्हें देने की व्यवस्था करिये “, और घंटी बजा कर दरवाजे के बाहर खड़े अपने पुलिस के गार्ड को बुला कर कहा कि इनके साथ चले जाओ और इन माताराम के पैसे आज ना मिलें तो इनको साथ में थाने लेकर आ जाना । थोड़ी देर बाद ही वह वृद्ध महिला वापस मेरे चेम्बर में आईं और आशीष देकर अपने गांव रवाना हो गईं ।
विदिशा के बाद मेरा तबादला राजगढ़ हो गया , वहाँ जाने पर मुझे पता लगा कि श्री उपेंद्र जैन , जो वरिष्ठ आई.पी.एस. अधिकारी है और उन दिनों प्रदेश के खेल संचालक थे, राजगढ़ के ही रहने वाले है । उपेंद्र परिवहन विभाग में मेरे साथ रह चुके थे , तो मैंने थोड़ा अधिकार पूर्वक उनसे कहा कि सर राजगढ़ तो आपका गृह जिला है और आप खेल विभाग के मुखिया हो , तो राजगढ़ में एक टेनिस कोर्ट और वुडन फ्लोर वाला एक बैडमिंटन कोर्ट बनवा दो । आवश्यकता भी थी और अनुरोध ऐसा भावनात्मक था कि कुछ ही दिनों में दोनों कामों को स्वीकृति भी हो गई । ऑफिसर्स क्लब के परिसर में ही दोनों चीजें होनी थीं , सो कुछ दिनों में लकड़ी के पटिये और सीमेण्ट रेत आदि सामग्री भी मौके पर डल गई । मैं रोज़ाना क्लब जाता तो नज़र रखता था , पर सामग्री डालने के बाद कोई हलचल नहीं हुई । एक रात क्लब के मैनेजर क़ुरैशी जी का फ़ोन आया कि ठेकेदार ट्रक लेकर आया है और मटेरियल उठवा रहा है । मैंने उनसे कहा कि मेरी उससे बात कराओ । फ़ोन पर ठेकेदार से बात हुई तो वो कहने लगा क्या बतायें साहब टेंडर तो मिल गया है पर वर्क ऑर्डर जारी नहीं हो पाया है तो मैंने ये सामान दूसरी साइट पर शिफ्ट कर रहा हूँ । मैंने समझाया कि मैं कल बात करता हूँ अभी सामान मत उठाओ , पर वो बंदा मानने को हो तैयार नहीं हुआ । मैंने फ़ोन काटा और टी.आई. साहब को फ़ोन लगा कर कहा तुरंत क्लब पहुँचो और ध्यान रखना एक भी कील वहाँ से उठनी नहीं चाहिए और जो जबरदस्ती करे उसे थाने में बिठा लो । टी.आई.तुरंत ही क्लब पहुँच गए और सामग्री सुरक्षित रखी रही । दूसरे दिन उपेन्द्र जैन साहब से अनुरोध कर मैंने वर्क ऑर्डर जारी करवा लिया और आज राजगढ़ में बैडमिंटन और टेनिस कोर्ट दोनों विद्यमान हैं ।





