

रविवारीय गपशप: Traffic: तुलना इंदौर और वियतनाम के शहरों की!
आनंद कुमार शर्मा
इन दिनों मैं अपने बचपन के मित्रों के साथ वियतनाम आया हुआ हूँ । सैकड़ों सालों के युद्ध और विदेशी हस्तक्षेप से पिसा ये देश आज अपनी एक अलग उड़ान भर रहा है । हज़ारों बरस चीन के प्रभुत्व में रहने के बाद सन 968 में वियतनाम में किंग ली ने अपनी सत्ता स्थापित की , और यूरोपीय प्रभुत्व के दौर में हमारे देश की तरह यहाँ भी पुर्तगाली और फ्रांसीसी आये और जल्द ही फ़्रांस ने इस पर अपना कब्ज़ा कर लिया । लगभग सौ सालों तक फ्रांसीसी क़ब्ज़े में रहने के बाद वियतनाम के हीरो हो ची मिन्ह ने सन 1945 में संघर्ष के बाद इसकी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी । जल्द ही वैश्विक ताक़तों की जोर आज़माइश का खामियाजा इसे भुगतना पड़ा और अमेरिका ने रूस के प्रभाव रोकने के लिए इस पर क़ब्जा कर लिया । बीस वर्षों तक चले इस युद्ध में जिसका सबसे ज़्यादा विरोध ख़ुद अमरीकियों ने किया इसे 1975 में जीत हासिल हुई और पूरे देश को संगठित कर इसकी अपनी लोकतांत्रिक सरकार बनी , हालाँकि हो ची मिन्ह तब तक स्वर्ग सिधार चुके थे , पर इस देश में एक बड़े शहर के नाम के साथ हजारों स्मारकों और करोड़ों वियतनामियों के दिलों में वे आज भी ज़िंदा हैं । पिछले कुछ बरसों से पर्यटन में इस देश ने ग़ज़ब की तरक्की की है ।
हनोई और हो ची मिन्ह सिटी में घूमने के दौरान हर समय मेरे मित्र इन शहरों के ट्रैफ़िक की तुलना हमारे देश के ट्रैफ़िक से करने लगते हैं । आज जब हो ची मिन्ह सिटी में , जिसे पहले साईगोन कहा करते थे , शाम के वक्त हम भ्रमण कर रहे थे तो हमारे टूरिस्ट गाइड ने हमसे कहा “ यहाँ तो शाम के वक्त बड़ा “रश” रहा करता है , आपके देश में भी क्या ऐसा ही “रश” है ? जवाब देने से पहले हम सोचने लगे कि इससे क्या कहें ? हिंदुस्तान के हमारे शहरों दिल्ली और मुंबई में ट्रैफ़िक इस दौरान जाम सा रहा आता है , बाक़ी बड़े शहरों में चाहे वह बैंगलोर हो या पूना ट्रैफ़िक की बदहाली का आलम बड़ा परेशानी का सबब रहा करता है । जहाँ तक इंदौर जैसे मझौले शहर का आलम सोचें , जहाँ मैं रह रहा हूँ , तो ट्रैफ़िक के नाम पर यहाँ के लोग अब तौबा करने लगे हैं । वियतनाम में हनोई और हो ची मिन्ह सिटी को उनका दिल्ली-मुंबई भी कह सकते हैं । हनोई यहाँ की राजधानी है और हो ची मिन्ह सिटी वाणिज्यिक केंद्र और दोनों शहरों के मौसम भी दिल्ली मुंबई जैसे ही हैं , पर ट्रैफ़िक का फ़र्क़ देखें , तो हमने दो बातों में इन्हें हमसे आगे पाया । पहला तो ये कि बहुत बड़ी संख्या में दुपहिया वाहनों के होते हुए भी , हमने किसी को बिना हेलमेट पहने नहीं देखा और दूसरा ये कि तमाम “रश” के बावजूद कहीं भी कोई हॉर्न नहीं बजा रहा था । जबकि हमारे इंदौर में तो बिना बात हॉर्न बजाने की होड़ सी मची रहती है । ट्रैफ़िक का क्या कहें , सिग्नल ग्रीन होने पर निकलते समय ये डर लगा रहता है कि कोई कहीं से आकर भिड़ ना जाए क्योंकि रेड लाइट जम्प करने में कोई भी कोताही नहीं करता है , चाहे वह दुपहिया हो या चौ पहिया और हाँ , रेड लाइट वही सबसे ज़्यादा जम्प करते हैं , जिन्हें प्रशासन या पुलिस का सबसे ज़्यादा डर होना चाहिए , मसलन ऑटो रिक्शा , जमेटो और स्विगी जैसी कंपनियों के चालक जिन्हें यदि अपने लाइसेंस छिनने का डर हो जाए तो उनकी नौकरी ही पूरी ना हो सके । लेकिन ये सभी बेधड़क ट्रैफ़िक तोड़ते हैं । जबकि वियतनाम जैसा देश जिसने सदियों युद्ध और भूख की जंग लड़ी है इन व्यवस्थाओं में बेहतर है ।
मुझे एक बड़ा पुराना वाक़या याद आ रहा है , सन 1995 के आसपास मैं उज्जैन जिले के खाचरोद में एस.डी.एम. हुआ करता था और किसी काम से इंदौर आया हुआ था । मेरा ड्राइवर नंदू एकदम भोलाभाला था , ट्रैफिक पर खड़े सिपाही का इशारा रुकने का था , पर नंदू सीधे गाड़ी निकालने लगा । चौराहे पर करने के पहले ही ट्रैफ़िक के सिपाही ने हमारी गाड़ी रोक ली । उसने पास आकर नंदू को डाँटने वाले स्वरों में कहा मैं जब हाथ से रोकने का इशारा कर रहा था तो तुम निकल कैसे रहे हो ? नंदू ने मासूम स्वर में कहा “ मैं समझा आप हमारे साहब को नमस्कार कर रहे हो”। हम एक साथ हँसे पर उस दिन नंदू के ट्रैफिक जम्प के चालान के सौ रुपये जमा करने के बाद ही मैं आगे जा पाया ।
तुलना इंदौर और वियतनाम के शहरों की!