रविवारीय गपशप :जब महाकाल ने मेरी मनचाही पोस्टिंग की कामना पूरी की

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रविवारीय गपशप :जब महाकाल ने मेरी मनचाही पोस्टिंग की कामना पूरी की

आनंद शर्मा

श्रावण मास प्रारंभ हो चुका है और कल से सम्पूर्ण श्रावण मास में प्रति सोमवार को उज्जैन में श्री महाकालेश्वर की सवारी निकलेगी । वैसे तो शिव ब्रह्मांड के स्वामी हैं , पर उज्जैन में वे राजाधिराज हैं , जो श्रावण सोमवार को जन साधारण को आशीर्वाद देने और उनका हाल जानने पालकी में निकलते हैं । मैं जब उज्जैन में पदस्थ हुआ तो अपने शासकीय कर्तव्यों के साथ मुझे श्री महाकालेश्वर मंदिर की समिति के प्रशासक का दायित्व भी मिल गया । ये किन परिस्थितियों में हुआ इसका विस्तृत वर्णन मैंने अपनी पुस्तक “ महाकाल के अद्भुत प्रसंग “ में विस्तार से किया है । बहरहाल मंदिर में निकलने वाली सवारी के बारे में यह धारणा थी कि भगवान महाकाल अपने भक्तों का हाल जानने निकलते हैं , और ये कितनी पक्की थी , ये मुझे तब पता लगा जब सवारी निकलने के बाद गर्भगृह में इक्का दुक्का दर्शनार्थी ही जाते दिखते थे । घनश्याम गुरु, जिन्हें शासकीय पुजारी का दायित्व था , कहते थे भगवान तो शहर भ्रमण में निकल गए हैं , अब मंदिर में तो लौट आने पर ही मिलेंगे । महाकाल की सवारी में तब उतनी भीड़ नहीं होती थी , जितनी इनदिनों होने लगी है । उस समय परम्परा के अनुसार रवाना होने से पहले प्रथम सवारी का पूजन उज्जैन के कलेक्टर किया करते थे और आख़िरी , जिसे प्रमुख सवारी या शाही सवारी भी कहते थे , का पूजन कमिश्नर उज्जैन किया करते थे । यह व्यवस्था आज भी कायम है , पर अब सवारी की पूजा में विशिष्ट व्यक्तियों की संख्या कई गुना बढ़ गई है । सवारी का मार्ग सालों से निर्धारित है , इसमें तभी परिवर्तन होता है , जब शिप्रा नदी में बाढ़ आ जावे और निर्धारित मार्ग में जाना संभव ना हो । केवल कोरोना काल में जनसामान्य के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिहाज़ से मार्ग परिवर्तित हुआ था और संयोग से उस समय मैं ही उज्जैन संभाग का कमिश्नर था । उज्जैन में मैं जब तक पदस्थ रहा , मंदिर के कामकाज का प्रभार मेरे पास ही रहा आया । सवारी में मैं पूरे रास्ते साथ चलता और व्यवस्था देखने के लिए आगे से पीछे और पीछे से आगे के चक्कर अपने साथी पुलिस अधिकारी के साथ लगाता रहता । पूरे रास्ते भर श्रद्धालु पुष्पांजलि से महाकाल महाराज का स्वागत करने के लिए सवारी की बाट जोहते रहते थे । कई जगह रुक कर पालकी की पूजा का भी रिवाज था और मैं देखता लोग अपनी अर्ज पालकी के पास आ आ कर महाकाल को सुनाते । ये देखते सुनते मुझे अजीब लगता कि क्या सचमुच लोगों की व्यथाएँ सुन कर प्रभु दूर करते होंगे ?

उज्जैन से आख़िरकार मेरा तबादला नीमच हो गया और इसके साथ ही मंदिर का प्रभार भी मेरे पास से हट गया पर जब कभी संभव होता मैं किसी न किसी सवारी में जरूर आता । वक्त चलता रहा और मेरा तबादला रतलाम सी.ई.ओ. जिला पंचायत के पद पर हो गया । रतलाम में मुझे शासकीय मकान नहीं मिला , पुराने सी.ई.ओ. का मकान मेरे पहुँचने के पहले ही किसी और को आबंटित हो चुका था । कुछ ऐसा संयोग बना कि उसी समय नए डी.आई.जी. , नए सी.सी.एफ़. के पद निर्मित हुए और आने वाले अधिकारियों को हर ख़ाली होने वाला मकान वरिष्ठ अधिकारी होने के नाते आबंटित होता गया । इंतिजार करते करते मैं तंग आ गया । मेरा परिवार ग्वालियर में ही था और ग्वालियर का शासकीय आवास मेरे पास अभी भी था । तभी मेरे मित्र बी. एम. शर्मा जी का फोन आया कि परिवहन विभाग में उपायुक्त प्रशासन का पद उनके हटने से रिक्त हो गया है , चाहो तो वापस आने के लिए प्रयत्न कर लो । मैंने भोपाल में अपने विभागीय अधिकारियों को निवेदन किया तो प्रस्ताव में मेरा नाम जुड़ गया , पर उसके बाद वो नस्ती कहाँ गई पता ही न चल रहा था । मैं इंतिजार करते करते परेशान हो गया , तभी श्रावण मास की सवारी प्रारंभ हुईं । उज्जैन में तब अजातशत्रु कलेक्टर हो चुके थे , मैंने उनसे अपनी परेशानी कही और पूछा कि आज सवारी में दर्शन की इच्छा है मैं कहाँ आ जाऊँ? अजातशत्रु जी ने ने कहा तुम रामघाट पर पहुँच जाओ मैं वहीं मिलूँगा । मैंने छुट्टी ली और रतलाम से सीधा रामघाट पर पालकी तक पहुँच गया । पूजा के बाद पालकी उठी और मैंने पालकी के पास सिर झुका कर मनोकामना माँगी और अजातशत्रु साहब से मिल कर ग्वालियर के लिए ट्रेन से निकल पड़ा । रात को ग्यारह बज रहे होंगे , तभी ट्रेन में मुख्यमंत्री उमा भारती जी के उप सचिव अतुल सिंह का मेरे पास फोन आया और उसने कहा “ अभी थोड़ी देर पहले ही माननीय मुख्यमंत्री जी ने आपके ग्वालियर परिवहन विभाग में पदस्थापन की फ़ाइल को अप्रूव कर दिया है ।

जब महाकाल ने मेरी मनचाही पोस्टिंग की कामना पूरी की

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए mediawala.in उत्तरदायी नहीं है।