

रविवारीय गपशप: जब मां ने कहा कि ‘सच के लिए किसी से क्या डरना’
आनंद शर्मा
प्रशासनिक जीवन के हर मोड़ पर अनेक अड़चनें और असीमित दबाव आते हैं , जिन्हें हम शायद ही सार्वजनिक रूप से व्यक्त कर पाते हैं । अलबत्ता उन दबावों को सहन करने का माद्दा सबका अलग अलग होता है । मुझे ये सहन शक्ति मिली अपनी माँ की समझाईश से जो किशोरावस्था में एक प्रसंग से अनायास मेरे मन में पैठ गई थी । उन दिनों मैं कटनी में रहता था और जी.एस. कॉलेज में पढ़ने के लिए रोज़ाना अपने मित्रों के साथ ट्रेन से जबलपुर जाया करता था । मेरे जैसे अनेक छात्र इसी तरह अपडाउन किया करते थे तो हम सबने यह निश्चय किया कि ऐसे छात्रों का एक संघ बना लिया जाए ताकि मुसीबतों का मिलजुलकर सामना कर सकें ।जल्द ही ये संगठन बड़ा लोकप्रिय हो गया , इतना कि अगले वर्ष के इसके चुनाव में , जिसमें मैं चुनाव अधिकारी था , वोटों की गिनती के बाद एक स्थानीय गुण्डा चाकू लेकर मेरे सामने आ गया और मुझे धमकाते हुए कहा कि हारे हुए हुए उम्मीदवार को विजेता घोषित करना वरना ठीक न होगा । मैंने जीवन में पहली बार खुला चाकू देखा था , सो इतना सहम गया कि चुपचाप घर आकर सो गया । दूसरे दिन सुबह मैं असमंजस से भरा उठा तो मुझे कुछ सूझ ना रहा था । मेरा अभिन्न मित्र पल्लू सोनी विजेता था और मुझे किसी और को विजेता घोषित करना था , मित्रता और ईमानदारी दोनों पर एक साथ भय का आघात था । अम्मा चूल्हे के पास बैठी चाय बना रही थीं , मुझे ध्यान से देखा और बोलीं क्या बात है ? मैंने पूरी घटना बताई और पूछा क्या करूँ । अम्मा बोलीं “ सच के लिये किसी से क्या डरना ? जो सही हो उसे करने में कभी झिझकना नहीं । बस मैं बेझिझक गया और जो सही परिणाम था उसे घोषित कर दिया , चाकू और उसका डर न जाने कहाँ तिरोहित हो गया ।
यह भी पढ़ें…
रविवारीय गपशप: कम्प्यूटराइजेशन का शुरुआती दौर और कानूनी दांव-पेंच की समझाइश!
नौकरी और जीवन में ये मन्त्र हमेशा मुझमें पैवस्त रहा आया । उज्जैन में मैं जब मुख्यालय एस.डी.एम. था , तब उज्जैन जनपद के अध्यक्ष के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव आया , और मुझे रिटर्निंग अधिकारी बनाया गया । अविश्वास प्रस्ताव की वोटिंग के बाद जब मतगणना की बारी आई तो मैंने पाया , अविश्वास के पक्ष में दो मत ऐसे थे जिसमें निशान उल्टे लगे थे , पर स्पष्ट दिख रहा था कि वे अध्यक्ष को हटाने के लिए लगाए गए हैं । मेरे समक्ष इन मतों को संदिग्ध मतों की श्रेणी में पेश किया गया और उस पर मुझे निर्णय लेना था । मैं कुछ लिखित में आगे दूँ , उसी वक्त मेरे मोबाइल पर सत्ता पक्ष के एक विधायक जी का फ़ोन आया । मैंने फ़ोन उठाया तो उन्होंने कहा शर्मा जी सुना है आपके समक्ष कुछ डाउटफुल वोट्स फ़ैसले के लिए आए हैं । मैंने कहा जी सही कह रहे हैं । वे आगे बोले “ देख लेना अध्यक्ष हमारी पार्टी का ही है , और आपकी नौकरी अभी बड़ी लम्बी है , तो ऐसा फैसला करना जिससे आगे कोई परेशानी न हो । मैं इशारा समझ गया , मैंने ससम्मान उनको जवाब दिया “ सर मुझे पता है कि अभी नौकरी लम्बी है तो आप निश्चिंत रहें ऐसा कोई काम न करूँगा कि मेरी नौकरी पर कोई उँगली उठा सके । इसके बाद मैंने उन मतों को मान्य किए जाने का निर्णय दिया और अध्यक्ष को पद पर बने रहने के अयोग्य घोषित कर दिया ।