
रविवारीय गपशप: जब ICU में कमिश्नर और कलेक्टर के छूट रहे थे पसीने
आनंद शर्मा
अब तो वो समय गुज़र गया , पर जब कोविड की महामारी आरंभ हुई थी तो ऐसा लगा था कि न जाने अब क्या होने वाला है । मैं उन दिनों उज्जैन में सम्भाग आयुक्त के पद पर पदस्थ हुआ ही था और राज्य में उसी दौरान सरकार का परिवर्तन हो गया । प्रदेश में कोरोना से पहली मौत भी उज्जैन की एक 65 वर्षीय महिला की ही हुई , जो उज्जैन के जिला अस्पताल से हालत बिगड़ने पर एम.वाय. अस्पताल इंदौर रेफर की गई थी । उज्जैन इस वजह से सुर्खियों में आ गया और उज्जैन के प्रशासनिक अमले पर एक विशेष जिम्मेदारी इस मुसीबत से निबटने की आ गई । इसमें कोई शक़ नहीं कि नई सरकार ने बिना देर किए इससे निबटने के सभी उपाय खुले दिल से अपनाने शुरू कर दिए थे पर ये परीक्षा की कठिन घड़ी थी और हम सभी सशंकित थे कि इस भयानक महामारी से हम कैसे पार पायेंगे ।
आरंभ में ऐसी मुसीबतें और ऐसी समस्याएँ थीं , कि उपाय ही नहीं सूझते थे , मसलन पहले पहल जिन मरीजों को गंभीर होने पर इन्दौर शिफ्ट किया गया , उनके वाहनों के ड्राइवर पीपीई किट के बिना वाहन ले गए , नतीजतन वापस आने पर वे ख़ुद कोविड पॉजिटिव हो गए । मरीजों की परिचर्या में लगे डाक्टर्स तो यथासंभव सावधानी बरत रहे थे पर परिचारक कोविड पॉजिटिव होने लगे । ड्राइवर्स , परिचारक या डाक्टर्स ऐसे लोग थे जिनका विकल्प आसानी से उपलब्ध नहीं था । शुरुआत में पीपीई किट की हमेशा कमी रहती , मैं इंदौर के पुराने मित्र गोविंद पसारी जी से बात कर के इंदौर से किट उज्जैन बुलवाया करता था । रेमडेसिविर इंजेक्शन जो दुर्लभ वस्तु की श्रेणी में आ गए थे और जिसकी राशनिंग होने लगी थी , वह भी पसारी जी के माध्यम से मैं उज्जैन बुलवा लिया करता ।
इस बीच शासन स्तर पर ये रिपोर्ट पहुँची कि मरीजों की देखभाल करने कुछ कोविड सेंटर में आईसीयू वार्ड में अंदर जाने से मेडिकल स्टाफ कतरा रहा है । सम्भवतः सबका उत्साह बढ़ाने और डर दूर करने के लिए , वीडियो कांफ्रेंसिंग में प्रमुख सचिव सुलेमान साहब ने ये निर्देश दिये कि सभी सम्भागों के कमिश्नर स्वयं पीपीई किट पहन कर कोविड वार्डों में इंतज़ामात की देखभाल करने जाएँगे । उज्जैन संभाग में आरडी गार्डी मेडिकल कॉलेज उज्जैन और रतलाम मेडिकल कॉलेज तो मैं अक्सर जाया करता था तो इस दायित्व के लिए मैंने देवास स्थित अमलतास मेडिकल कॉलेज को चुना । दूसरे दिन सुबह देवास के कलेक्टर चंद्रमौली शुक्ल को मैंने फ़ोन पर देवास आने की जानकारी दी तो वे ख़ुद भी अमलतास मेडिकल कॉलेज पहुँच गए और साथ में अन्दर जाने को तैयार हो गए । हम सभी पीपीई किट पहन कर जब वार्डों का दौरा कर रहे थे तो हमें पसीने छूट रहे थे । एक तो भारीभरकम किट और वार्डों के अंदर ख़ालिस कोविड के मरीज़ और कोविड के विषाणु , पसीने आने का पूरा माहौल था । जब हम आईसीयू में पहुँचे तो कुछ ही मरीज़ होश में नज़र आ रहे थे , अधिकांश तो वेंटिलेटर पर बेहोशी सी हालत में थे । डाक्टर और नर्स उनकी हालत के बारे में हमें ब्रीफ़ कर रहे थे , तभी मैंने देखा एक नवयुवक मरीजों के बिस्तर के पास जा जा कर उनकी मदद कर रहा है , किसी को पानी दे रहा है , किसी का तकिया ठीक कर रहा है । मुझे आश्चर्य हुआ हम यहाँ दोहरे परिधानों में सिर से पैर तक ढके घूम रहे थे और ये जवान निखालिस हाफ़ पेंट और टी शर्ट में बिना मास्क के घूम घूम कर मरीजों को छू रहा था और उनकी साज सँवार कर रहा था । मैंने आश्चर्य से चंद्रमौली की तरफ़ देखा तो वे कहने लगे सर ये तो वार्ड में साफ़ सफ़ाई करने वाला नवयुवक है , इसकी अन्तर्शक्ति ने कोविड की विषाणु क्षमता पर विजय पा ली है , ये हर दिन ऐसे ही निर्भीक मरीजों की सेवा करता रहता है , इसे किसी वायरस से ख़तरा नहीं है ।
मुझे अहमद नदीम क़ासमी का ये शेर याद आ गया-
कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा
मैं तो दरिया हूँ समुंदर में उतर जाऊँगा ।।
मैंने उसे पास बुलाकर शाबाशी दी और बाहर जाकर अपनी विजिट रिपोर्ट बनाने लगा।





