गंभीर विषय पर सतही फिल्म : बस्तर द नक्सल स्टोरी

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गंभीर विषय पर सतही फिल्म : बस्तर द नक्सल स्टोरी

द केरल स्टोरी वाली टीम की उसी तर्ज की फिल्म है बस्तर। अभिनेत्री अदा शर्मा, निर्देशक सुदीप्तो सेन और निर्माता विपुल शाह  की तिकड़ी मूल  विषय यानी नक्सल समस्या को ठीक से दिखाने में कमजोर रही।  इस बार विषय सांप्रदायिकता नहीं, सामाजिक न्याय है, इसलिए हिंसा का अतिरिक्त सहारा लिया गया। द कश्मीर फाइल्स में महिला को आरा मशीन पर चीरते हुए और दो दर्जन लोगों को एक एक करके गोली मारते दिखाया गया था, इसमें हिंसक नक्सलियों द्वारा राष्ट्रध्वज फहरानेवाले को बावन टुकड़ों में कुल्हाड़ी के काटते हुए वीभत्स तरीके से दिखाया गया है। एक दूसरे दृश्य में नक्सली महिला छोटी बच्ची को जलती आग में जिन्दा फेंकती दिखाई गई है।  फिल्म नक्सलियों को इंसान नहीं, दरिंदा साबित करने की कोशिश करती है और पुलिसिया जुल्मों को छुपाती है। फिल्म सतही और उबाऊ तरीके से एकतरफा नजरिये से बनाई गई है। अखबारों की कतरनों को फिल्मा देने से ही फिल्म महान नहीं बन जाती, हर पहलू को देखना होता है।

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फिल्म शुरू होते ही डिस्क्लेमर आता है कि यह फिल्म कई घटनाओं  से प्रेरित है और फिर अगली लाइन में कहा गया कि यह एक काल्पनिक फिल्म है। दूसरी फिल्म में ही निर्देशक मेहनत से जी चुराने लगा है। जैसे विवेक अग्निहोत्री की कश्मीर फाइल्स सुपरहिट हुई और उन्होंने आर्टिकल 370 में वे ही फार्मूले अपनाये और फिल्म पिटी, वैसे ही केरल स्टोरी के बाद नक्सल स्टोरी भी बनाने वालों का हाल है।  दर्शक ढूंढे नहीं मिल रहे। धन्यवाद आइनॉक्स वालों का, कि केवल हम दो दर्शकों के होते हुए भी उन्होंने फिल्म का शो केंसल नहीं किया!

इमोशनलेस हैं यह फिल्म ! एनिमल फिल्म जैसी हिंसा का वीभत्स चित्रण है।  केवल राज्यों और जगहों के नाम सही हैं, बाकी एकतरफा कहानी का एकांगी चित्रण! नक्सली समस्या सामने सलवा जुडूम आंदोलन चित्रण भी है और प्रतीकों में अरुंधति रॉय, कुछ पत्रकारों, वकीलों, प्रोफेसरों का नक्सल प्रेम दिखाया गया। लेकिन कहीं भी पुलिस की एट्रोसिटी का जिक्र तक नहीं। फिल्म में महिला आईजी को थानेदार की तरह दिखाया गया है,जो खुद हरेक मिशन को अंजाम तक पहुंचाती है। फिल्म में घटनाओं का चित्रण केवल ब्लैक और व्हाइट में किया गया है, ग्रे एरिया अनदेखा है। समस्या को हल करने के राजनीतिक प्रयासों पर सवाल है।  कई गंभीर मामलों में फिल्म एकतरफा कहानी कहती है। सरकारी तंत्र और न्यायपालिका के कुछेक लोगों पर केंद्रित है। भवानाओंरहित यह  फिल्म कई तकनीकी  कसौटियों पर भी यह फ़िल्म खरी नहीं उतरती।

लोकसभा चुनाव के ठीक पहले आई यह फिल्म चुनाव प्रचार का हिस्सा लगती है। इसीलिए प्रभावहीन है।

डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी

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योद्धा का केवल ‘यो’ शानदार, बाकी भंकस

देशप्रेम की चाशनी में लिपटी है योद्धा ! देशभक्ति वाली इस  एक्शन थ्रिलर फिल्म में ”मैं रहूं न रहूं, देश हमेशा रहेगा” जैसा देशभक्ति से ओतप्रोत डायलॉग हैं और शेरशाह फिल्म की अगली कड़ी जैसी कहानी भी। रोमांस थोड़ा कम है और निर्देशक सागर ऑम्ब्रे और पुष्कर ओझा एक्टर सिद्धार्थ मल्होत्रा को ‘योद्धा’ बनाकर लाये हैं लेकिन योद्धा का ‘यो’ यानी पूर्वार्द्ध ही जोरदार है, इंटरवल  के बाद  फिल्म रबर की तरह खींची गई है। प्लेन हाईजैक पर पहले ही हाईजैक, जमीन, कंधार, नीरजा, बेल बॉटम जैसी फिल्में बन चुकी हैं।

इसमें एक्शन है, देशभक्ति है, कहानी में टर्न, ट्विस्ट और कन्फ्यूजन हैं! इसमें सिद्धार्थ मल्होत्रा के साथ राशि खन्ना  की जोड़ी है और दिशा पाटनी का रोल अलग है। रोनित रॉय,तनुज विरवानी आदि-इत्यादि भी हैं। बहुत सारे संगीतकार हैं जिनके दो ही गाने सुनना अच्छा लगता है। इस फिल्म में  कश्मीर, पाकिस्तान, शांति वार्ता, हाईजैक, आतंकवादियों से  मुठभेड़, विमान में फाइटिंग, बहादुर फौजी का बहादुर फौजी बेटा, नौकरशाही की तकलीफें जैसी बातें यानी सभी कुछ है। अचार में चाशनीवाला मुरब्बा मिलाकर ऊपर से इमली की चटनी भी डाल दी गई है।  इसे कई लोग मजे ले लेकर चाटेंगे, कई उल्टियां कर देंगे।