ई मंडी की बात करो या ऊ मंडी की, भाव भौत तेज हैं भैया …

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जबसे मानसून आया है, सब्जी बड़ी महंगी हो गई है। टमाटर लो या नींबू, खीरा लो या गाजर सब के भाव आसमान छू रहे हैं। कद्दू और लौकी की बात करो या फिर गिलकी, फूल गोभी, पत्ता गोभी की सबके दाम में बरसते पानी में आग सी लगी है। हरी धनिया की तो मानो खुशबू से ही काम चलाने पड़ रहो। दस रुपईया की पचास ग्राम, का करें भैय्या…बिना चटनी के ही काम चलावे की आदत डालवो ज्यादा ठीक है अब तो। कभऊं जुम्मन चच्चा कहत कै ईद के चलतई माल नहीं आ रहो साब। अबै तो सब्जी के दाम मंडी में ही बहुत हाई हैं। हम का करें। वे तो छांटन भी नईं देत और खराब निकरत सो अलग। लै लो साब अबै तो कितऊं दाम कम न मिलें। हमसें जो हो सकै, सो कर दें। उताय रामू के ठेला पे जाकैं सब्जी के दाम पूछे, सो बीस रूपईया के तीन नींबू बता रओ। कछू बोल पाते, इसै पैलेईं बतान लगो कि साहब का करें हम सब्जी की आवक कम और जावक ज्यादा है। ईसैं रेट जान लै रए। और पूरी बारिश में हाल सुधरवे की कौनऊ आस नईंया। धनिया-मिर्ची की आवक भी बहुत कम हो गई, सो पचास रुपया पाव से कम धना नईं पूर रवो। उतईं फल के ठेला पै पहुंचे सो उनके हाल और बुरय। सेव तो दो सौ में भी नईं मिल पा रए और केला, अनार और पपीता लैवौं भी मुश्किल। आमईं हैं जो थोड़ी बहुत राहत दै रए वरना फल खावै की हिम्मत न पर पाए। श्याम फल वालों भी रूआंसों मौं करैं इतनई कै पारव कि साब माल की गारंटी है, पर दाम पे हमाओ कौनऊं वश नईंया।
इतने मैं एक कुर्ता पायजामा वाले भाईसाहब ठेला के पास खडें हो गए। और ताना मारन लगे कि श्याम तुमने फलन के दाम कछु ज्यादई बड़ा दए। मंडी में माल के भाव इतने भी नईंयां, कै आदमी फलन की तरफ देखई न पाए। श्याम भी पुरानौ घाघ। सो नेताजी की तरफ पलट कै देखो और गाल लाल कर कैं बोलों कि गुड्डन भैय्या, जो तो बताओ कै पंचायत और नगरपालिका, नगर परिषद के चुनाव हो गए का। नेताजी समझ गए कि जौ भी हमसे मंडी की चर्चा करवे पै उतारू हो गओ। सो मुस्कराते हुए बोल पड़े कै हां हो गए। पहली बार बरसत पानी में भी चुनाव करवाए सरकार नैं। भोतई मुश्किल के चुनाव हते। जैसे-तैसें निपट गए। श्याम खौं कां चैन, बोलों अबै पूरे कां निपट पाए गुड्डन भैया। अबै तो सुनी कै जिला पंचायत अध्यक्षन, जनपद पंचायत अध्यक्षन कौ चुनाव होवौ बाकी है। गुड्डू भैया ने हूंका भरत बात आगैं बढ़ाई कै नगर पालिका और नगर पंचायत के अध्यक्ष सोऊ बननें हैं श्याम। पर पैलें तो बारी पंचायत की है। श्याम बोल परौ कि सुनो है कै ऊ मंडी के भाव तो सरग छू रऐ ई बार। का जिला पंचायत अध्यक्ष को रूतबा सोई का सरग छुअत है गुड्डन भैया। कभऊं काम नईं परौ सो पतई नईं चलौ कै इतनौ रुतबा रत है जिला पंचायत अध्यक्ष कौ, कै करोड़न न्यौछावर कम परत। गुड्डू भैया कछू खांसन खकारन लगै और रौब दिखान लगे कै श्यामू तैं केरा, पपीता से निकर कैं पंचायत की मंडी में कब से जान लगौ। तै अपनौं काम कर मन लगा कैं। नेतागिरी हम पै छोर दै। तोरो काम तो हम कराऊत हैं न। तोए कौनऊं परेशानी हौन दईं का आज तक। फिर तै हम नेतन खौं बदनाम करैं कौ कौनऊं मौका नईंं छोड़न चाऊंत।
श्यामू फल वालों भी चुप न रै पाओ। वौ भी फल विक्रेता यूनियन को मुखिया है बहुत सालन से। बोल परौ कि गुड्डन भैया इतने गरम काय हो गए। हम सोऊ तुमायई कए से तीस साल से वोट डार रऐ और सबके डरवा भी रए। तुमई बताओ कभऊं धोखा भओ होय तो। गुड्डन भैया भी नरम पर गए। फिर तो श्याम ने जानी। बोल परौ कि और जो बात हम कैरए, कछु अपने मन से नईं हांक रऐ। वे नए सदस्य बने अपने घसीटे। वेई बता रएते। अब गुड्डन भैया की बत्ती जल गई। पूछन लगे कि का बता रओतो वो घसीटा। ससुर पहली बार मेंबर का बन गओ, कछू बात नई पच रई। श्याम बोलो, जोई बता रएते कान में, कै ऊपर वाले ने चाई तो ई बार पिछले चार चुनाव की वसूली भी हो जै और छप्पर फार कैं लक्ष्मी बरसवे बारी हैं। तीन हारन पे मरहम लगई जै एक बार में। बस धीरे-धीरे बोली तेज हो गई श्याम की। बोलो कै घसीटा बता रओतो धीरे से, कि हमने भी ठान लई कै जब तक मन न भरै तब तक बोली टूटन नईं दैनें। फिर श्याम धीरे से बोलौ कै अब हमें का लैनें दैनें। जी की किस्मत में जौ लिखों सो बटोर लेवे। हमें तो बेचने केलई-पपीता। सो बैचत रैं। पर बारिश में ऊ मंडी में जो लक्ष्मी बरस रईं, ऊंखों सुनकै जी तो जरतई है। कै इतें पूरी उमर निकरी जा रई और उतें एकई झटका में वारे-न्यारे।
गुड्डन भैया भी समझ गए कि श्याम की आंखन में धूल नईं झौंकी जा सकत। ईखौं सब खबर पुख्ता लग गई। सो थोडे़ नरम पर कैं बोले कि तौ अगली बार तैं भी लड़ लै मेंबर कौ चुनाव सो सब कूत पर जै कै का होत चुनाव लरवौ। घर, ठेला सब बिक जै और तब भी पूरौ न परै। कै जांगा हाथ फैराने परत और कितनों कर्ज लैने परत, सब गढ़ पर जै। जांगा-जमीन और घर-छप्पर कछू न बचा पै। और मेंबरन खौं पांच साल फिर कछू नई मिलनैं सिवाय फांकामारी के। फिर तो अध्यक्षई की, पांचऊंं उंगरिया घी में डूबी रैनैं। सो तुम जी मंडी की बात कर रए, ऊंमैं कौनऊं हर्ज नईंंयां भैया। तुमसे चाए घसीटे बताएं, चाए कोऊ और। लंबी सांस लै के बोले गुड्डन भैया कि हमाई तो किस्मतई खोटी है वरना चुनाव लर जाते तो ई बारई तो मलाई खावे को मौका हतो। श्याम भी गुड्डन भैया से हमदर्दी जताउत भव बोल परौ कै दुःखी न हो भैया …। ई माथे की लकीरन पै जीके भाग में जितनी लक्ष्मी लिखी है, वौ तौ मिल कैईं रै। ई बार नईं तो अगली बार सई, चुनाव लरौ तो हम सब तौ तुमाय संग हैंईं।
पर मसकरी करत बोलो कि भैया दिल पे हाथ रख कैं बताओ कै कौन सी मंडी के भाव ज्यादा हैं। गुड्डन भैया भी समझ गए कै जौ श्याम भी भौत चालू है। सो बोले सब्जी मंडी कां लगत रे, ईंंखों तौ हर दिन लगनैं। ऊ हिसाब से ईके भाव भौत तेज हैं। अब ऊ मंडी पांच साल में लगत है बड़ी मुश्किल सैं। ई बार तो ऊं सैं भी ज्यादा साल लग गए। सो ऊ मंडी के भावन कौ का कैंने श्याम…। राम-राम अब कछू मेंबरन से मिल कैं आउत। देखत-देखत गुड्डन भैया कौ झक कुर्ता पजामा श्याम की आंखन से ओझल हो गऔ।