मंदिर जहां कालसर्प दोष के निवारण के लिए दूर-दूर से आते हैं भक्त

जानिये देवपथ शिव मंदिर के बारे में, जिसका उल्लेख नर्मदा पुराण में भी है

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मंदिर जहां कालसर्प दोष के निवारण के लिए दूर-दूर से आते हैं भक्त

बड़वानी से सचिन राठौर की रिपोर्ट

बड़वानी-बोधवाड़ा का वो मंदिर जहां कालसर्प दोष के निवारण के लिए दूर-दूर से आते है भक्त, मध्यप्रदेश में उज्जैन और ओंकारेश्वर के ज्योतिर्लिंग का महत्व और मंदिर को हर कोई जानता है पर हम आपको ऐसे शिव लिंग के बारे में बता रहे हैं जिसका उल्लेख नर्मदा पुराण में भी हैं। जिसे देवपथ शिव मंदिर कहते है। पौराणिक मान्यता अनुसार देवताओं ने स्वयं इस मंदिर में शिवलिंग स्थापित किया। यहां से भगवान विष्णु की नर्मदा परिक्रमा प्रांरम्भ होकर यही समापन हुआ था। मंदिर रुद्रयन्त्र पर स्थापित हैं। यह मंदिर बड़वानी के नर्मदा तट के समीप बड़वानी व धार जिले के मध्य बोधवाड़ा में है

बड़वानी- हम आपको बड़वानी और धार जिले के मनावर के पास स्थित पौराणिक महत्व के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में आपने शायद ही कभी सुना हो। हालांकि इस मंदिर को लेकर कई जानकारी उपलब्ध हो पाई है जो इस मंदिर की महत्ता को बताने के लिए काफी है।

हम बात कर रहे हैं धार जिले के मनावर से लगभग 30 किमी दूर व बड़वानी से मात्र 10 किलोमीटर स्थित एक छोटे से गांव बोधवाडा की। यहां स्थित है देवपथ मंदिर देवप्रतिलिंग या देवपथ मंदिर के नाम से इलाके में मशहूर इस मंदिर को लेकर तरह-तरह की जानकारियां मिलती हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर में स्थित शिवलिंग को स्वयं देवताओं ने स्थापित किया था और यहीं से मां नर्मदा की परिक्रमा शुरू की थी।

देखिये वीडियो: क्या कह रहे हैं, महेंद्र यादव-

साथ ही बोधवाडा में एक या दो नहीं इस मंदिर के कुल 12 लिंग स्थापित हैं जिनमें से दो इस मंदिर में हैं। यहां कालसर्प दोष और पितृदोष का निवारण करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। बोधवाड़ा का देवपथ महादेव मंदिर वैसे तो अब नर्मदा के बैकवॉटर में छिपता नजर आता है लेकिन पहले इस मंदिर तक पहुंचना आसान था। नर्मदा तट पर बने इस मंदिर को लेकर अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं। वैसे यहां लगी एक पट्टिका के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 12वीं सदी में हुआ था और 18वीं सदी में इसका जीर्णोद्धार हुआ। बोधवाड़ा के देवपथ महादेव मंदिर में अभी तक मूल स्थान पर ही प्रतिमा है। पुराणों के अनुसार कहा जाता है कि समुद्र मंथन के बाद देवताओं और दानवों के बीच युद्ध हुआ। इससे अलग भगवान शिव मंथन से निकले विष का पान कर मैकाल पर्वत पर जा पहुंचे थे। दावा है कि यह देश का एकमात्र मंदिर है, जिसकी स्थापना रूद्र यंत्र और श्रीयंत्र पर हुई है और इसके गुंबद में बीसा यंत्र है। कहा जाता है कि मंदिर में नजर आने वाला शिवलिंग कुल 12 फीट का है और इसका 11 फीट का हिस्सा जमीन में दबा हुआ है। देवपथ मंदिर अर्थात देवताओं के रास्ते का सूचक इस मंदिर के बाहर रूद्रयंत्र जिसके 36 कोण हैं। शास्त्रों और वेदों के अनुसार एक-एक कोण मे देवता विद्यमान है। साथ ही चारों ओर द्वारपाल भी विराजित है, प्रत्येक कोण एक-एक करके 36 दिनों मे खुलते हैं। मंदिर के मुख्य पुजारी के अनुसार, इसी स्थान पर से देवताओं ने नर्मदा परिक्रमा शुरू की थी और इसका वर्णन नर्मदा पुराण में मिलता है।

श्रीयंत्र पर बना ऐसा मंदिर पूरे भारत में कहीं नहीं है। इस जगह पर 12 लिंग है जिनमें से 9 नर्मदा के बीच पानी में हैं। दो मंदिर में और एक शिवलिंग गांव में रहने वाले मांगीलाल नामक व्यक्ति के घर में स्थापित है। हालांकि, इसकी जानकारी नहीं मिल सकी कि ऐसा क्यों है।

पुजारी का कहना था कि इस मंदिर में लोग कालसर्प दोष निवारण, पितृदोष निवारण के लिए दूर दूर से लोग यहां आते हैं। यह मंदिर रुद्र महायंत्र के रूप में निर्मित है, जबकि शिवलिंग के ऊपर गुंबद का आकार श्री यंत्र पर बना है।

देखिये वीडियो: क्या कह रहे हैं, तोताराम यादव (पुजारी)-

 

देखिये वीडियो: क्या कह रहे हैं, डॉ सुहास यादव (शिव भक्त)-