Thai CatFish Mangur is banned in India: महाराष्ट्र में मिली कैंसर फैलाने वाली मछली
महाराष्ट्र में ठाणे जिले के ब्रीडिंग फॉर्म से 3 टन प्रतिबंधित मांगुर मछली बरामद की गई. इसे थाई कैटफिश के नाम से जाना जाता है.
यह कार्रवाई महाराष्ट्र मत्स्य विभाग ने की है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस मछली को साल 2000 में बैन कर दिया था. यह मछली 3 से 5 फीट तक होती है. भारत में प्रतिबंधित यह मछली गंदे पानी और दलदली इलाकों में पाई जाती है और कैंसर का खतरा भी बढ़ाती है.
भारत में प्रतिबंध के बावजूद इसे क्यों बेचा जा रहा है, इससे कितनी तरह का खतरा है.
मांगुर भारत में प्रतिबंधित क्यों?
भारत में थाई फिश मांगुर को पालने पर प्रतिबंध है क्योंकि यह अन्य मछलियों को खा जाती है. इससे भारत में मत्स्य पालन प्रभावित हो रहा था, इसलिए साल 2000 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इसे पालने पर प्रतिबंध लगा दिया था.
एक रिसर्च में भारत की मूल मछली की प्रजातियों की आबादी 70 फीसदी तक घटने के लिए इसे जिम्मेदार बताया गया था. रिसर्च में दावा किया गया था कि ये मछली जलीय इकोसिस्टम पर नकारात्मक असर लाती है. इसके अलावा मत्स्य पालन करने वाले पालक उनकी आबादी को बढ़ाने के लिए सड़ा-गला मांस खिलाते थे. जिससे पानी दूषित होने के बाद इसका बुरा असर दूसरी मछलियों पर भी पड़ता था.
:मांगुर मछली बहुत तेजी से विकसित होने मछलियों में से एक है. मांगुर मछली को लोग बड़े चाव से खाते भी है. अधिकांश लोगो को मालूम नहीं है. कि Mangur machli भारत में प्रतिबंधित है|प्रजाति को थाईलैंड में विकसित किया गया है. इसीलिए इसे थाई मांगुर के नाम से जाना जाता है| mangur machli माँसाहारी होता है. ये मछली किसी भी जीव का मांस खा सकता है| विदेशी थाई Mangur Machli नदी, नाले, कीचड़, और तालाबो में पाए जाने वाले मछली है. यह मछली किसी भी तरह के पानी या दलदल में जिन्दा रह सकती है. वही दुसरे मछली ऐसे कीचड़ या दलदल जगह पर जिन्दा नहीं रह पाते है| क्योंकि उनको ऑक्सीजन की कमी हो जाती है.
प्रतिबंध के बावजूद भारत में क्यों हो रही खेती?
भारत में इस प्रतिबंध होने के बावजूद देश के कई राज्यों में इसे पाला जा रहा है. महाराष्ट्र, उत्तराखंड समेत कई राज्यों में इसे बरामद किया जा चुका है. अब समझते हैं कि प्रतिबंध के बावजूद इसे क्यों पाला जाता है. दरअसल, यह पालकों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होती है. इसकी लम्बाई 5 फीट तक होती है. एक मछली का वजन 3 से 4 किलो तक पहुंचने में मात्र 2 से 3 महीने लगते हैं.
खास बात है कि इन मछलियों को पालने में बहुत अधिक देखरेख की जरूरत नहीं पड़ती. ये गंदे पानी में भी खुद को जिंदा रखने में सक्षम होती हैं. यह फास्ट ब्रीडिंग प्रजाति है, यानी यह तेजी से बड़ी संख्या में अपनी आबादी को बढ़ाती है. इससे सीधे तौर पर पशुपालकों का फायदा होता है.
कैंसर की वजह बनती है
कई रिसर्च रिपोर्ट्स में दावा किया गया किया था है कि मांगुर को खाने से कैंसर हो सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि इसका वैज्ञानिक नाम क्लेरियस है. गंदे पानी में रहने और सड़ा-गला मांस खाने के कारण इसमें लेड की मात्रा अधिक पाई जाती है. जो कैंसर की वजह बन सकती है. इसके साइडइफेक्ट यहींं तक ही सीमित नहीं है. यह कई तरह के संक्रमण की वजह भी बन सकती है.
कम समय और कम लागत में इसकी अधिक आबादी बढ़ने के कारण यह अधिक मुनाफा देती है. इसलिए पालक इसे पालना पसंद करते हैं. पिछले कुछ सालों में मांगुर मछली की बड़ी खेप उत्तर प्रदेश, उड़ीसा और महाराष्ट्र से बरामद की गई है.
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