21वीं सदी और जन सहयोग की बढ़ती पूछ परख …

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21वीं सदी कई मायनों में बहुत अलग दिखने वाली है जैसे उर्जा का सवाल है तो सौर ऊर्जा का महत्व बढ़ रहा है. स्वास्थ्य की बात है तो योगा के प्रति लोगों का रुझान दिखने लगा है. पर्यावरण संरक्षण का महत्व लोगों को समझ में आने लगा है. ठीक इसी तरह जन सहयोग की पूछ परख भी 21वीं सदी में बढ़ रही है और लोग तो ठीक सरकारें भी समझ गई हैं कि बिना जन सहयोग के ना तो विकास कार्य पूरे हो सकते हैं और ना ही सामाजिक उत्तरदायित्व की पूर्ति हो सकती है.
SHIVRAJ JI
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 24 मई को हाथ ठेला लेकर भोपाल की सड़कों पर नजर आएंगे. उद्देश्य यही है की आंगनवाड़ी के बच्चों के लिए जन सहयोग से खिलौनों का संग्रह किया जाए. मंशा यही है कि जन-जन को यह समझ में आ जाए कि समाज के सभी वर्गों का स्तर ऊपर उठाने का काम बिना उनके संभव नहीं है. सिर्फ सरकारी स्तर पर हर कार्य संपन्न नहीं किया जा सकता है. हाल ही में जब मुख्यमंत्री जैत गौरव दिवस के दिन देश की जनता को समझा रहे थे कि कुपोषण दूर करने के लिए सामाजिक सहभागिता के तहत अन्न का दान कर आंगनबाड़ी को समृद्ध किया जाए.


बच्चों की पढ़ाई के लिए सामाजिक उत्तरदायित्व के साथ सहभागिता की जाए या फिर गरीब बच्चियों की शादी के लिए समाज पहले की तरह सहयोग करने की दिशा में कदम आगे बढ़ाए. इन सब के मूल में यही है कि सिर्फ सरकार के भरोसे ना रहा जाए बल्कि जन सहभागिता के साथ आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश का सपना साकार किया जाए. और इसी दिशा में अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भोपाल की सड़कों पर आंगनवाड़ी में पढ़ने वाले छोटे-छोटे बच्चों की खुशी के लिए खिलौनों का संग्रह करने के जरिए एक संदेश पूरे देश को दे रहे हैं और मध्य प्रदेश के लोगों को भी जागरूक कर रहे हैं.


 यह बात नहीं है कि सरकार आंगनवाड़ी के बच्चों के लिए खिलौने नहीं खरीद सकती. अभी तक महिला बाल विकास विभाग खिलौने खरीद कर आंगनबाड़ी केंद्र तक पहुंचाता ही रहा है लेकिन सामाजिक सरोकार से बेहतर परिणाम मिले तो इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता. वैसे यदि कहा जाए तो तस्वीर बड़ी साफ है की सरकारों की अर्थव्यवस्था अब इतनी मजबूत नहीं है कि हर छोटे-बड़े काम को सरकारी खजाने से पूरा किया जा सके. सरकार खजाने की पूर्ति के लिए भी आमजन पर ही निर्भर है यदि प्रदेश को तो क्यों ना सीधे जनता को ही सामाजिक सरोकारों से जोड़ने की प्रक्रिया पर आगे बढ़ा जाए. जनता जब सहभागी बनती है तब बेहतर परिणामों की संभावना खुद-ब- नजर आने लगती है.


सहभागी लोकतंत्र उस प्रक्रिया का नाम है जो किसी राजनैतिक प्रणाली के संचालन एवं निदेशन में लोगों की भरपूर सहभागिता पर जोर देती है। वैसे ‘लोकतंत्र’ का आधार ही ‘लोक’ है और सभी लोकतंत्र साझेदारी पर ही आधारित हैं. किन्तु फिर भी ‘सहभागी लोकतंत्र’ सामान्य सहभागिता के बजाय कहीं अधिक सहभागिता की बात करती है. सहभागिता से लोगों के कदम बढ़ें तो कोई भी मंजिल दूर नहीं होती. शायद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यह समझ गए हैं और इसीलिए इस दिशा में कदम आगे बढा रहे हैं.