2023 की सबसे बड़ी खगोलीय आतिशबाजी दिखेगी 14 दिसंबर को, 120 प्रति घंटे की दर से होगी टूटते तारे वाली उल्का वृष्टि

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2023 की सबसे बड़ी खगोलीय आतिशबाजी दिखेगी 14 दिसंबर को, 120 प्रति घंटे की दर से होगी टूटते तारे वाली उल्का वृष्टि

*संभागीय ब्यूरो चीफ चंद्रकांत अग्रवाल की खास रपट*

नर्मदापुरम/इटारसी। आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. शशि भूषण पांडे ने बताया कि यह खगोलीय घटना यूं तो बुधवार की रात से शुरू हो गई है। पर गुरुवार,14 दिसंबर की रात यह चरम पर होगी। उल्काई आतिशी में उत्तरी गोलार्ध की सर्वाधिक आकर्षक खगोलीय घटना है। जिसका खगोल प्रेमियों को बेसब्री से इंतजार रहता है। जेमिनिड्स उल्कावृष्टि 3200 फेथॉन नामक धूमकेतु के मलबे के कारण होती है। इस बार होने जा रही आसमानी आतिशबाजी का नजारा खास रहने की उम्मीद है। टूटते तारे कही जाने वाली इस आतिशी खगोलीय घटना को 120 प्रति घंटे की दर से देखा जा सकता है। गुरुवार की रात यह घटना चरम पर रहेगी। आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. शशि भूषण पांडे ने बताया कि यह खगोलीय घटना वैसे तो आज बुधवार की रात से शुरू हो गई है। उल्काई आतिशी में उत्तरी गोलार्ध की सर्वाधिक आकर्षक खगोलीय घटना है। जिसका खगोल प्रेमियों को बेसब्री से इंतजार रहता है। जेमिनिड्स उल्कावृष्टि 3200 फेथॉन नामक धूमकेतु के मलबे के कारण होती है।

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*इन कारणों से देखने को मिलता है आतिशी नजारा*

फेथॉन 524 दिन में सूर्य का एक चक्कर लगाता है, जो सूर्य व बुध के बीच से होकर गुजरता है। पृथ्वी के करीब से जाते समय ढेर सारा धूल व उल्काओं को धरती के मार्ग पर छोड़ जाता है और जब पृथ्वी उल्काओं के बीच होकर गुजरती है तो उल्काओं के पृथ्वी के वातावरण से टकराने के कारण जल उठती हैं और आतिशी नजारा देखने को मिलता है। जेमिनीड उल्काएं मिथुन तारामंडल से आती हुई प्रतीत होती हैं। जिस कारण इस शॉवर का नाम जेमिनिड्स (मिथुन) से जोड़ा गया है। मिथुन तारामंडल क्षेत्र के सभी दिशाओं में चमकती उल्काई बारिश नजर आएगी।

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*धूल कणों से भरा है अंतरिक्ष*

अंतरिक्ष धूल कणों से भरा हुआ है। जिस कारण जलती उल्काओं को अक्सर देखा जा सकता है। सामान्य अंधेरी रात में किसी अंधेरी जगह से प्रति घंटे 10 जलती उल्काओं का आकर्षक नजारा देख सकते हैं । मगर अधिक संख्या में देखने के लिए वर्ष में कुछ ही रातों को अवसर मिलता है। उनमें से जेमिनिड शॉवर की रात सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। सितारों के टूटने के बारे में तो आपने देखा, सुना और पढ़ा होगा. क्या हो अगर सैकड़ों सितारे एक साथ टूट कर गिरने लगें. वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसा ही हैरान करने वाला दावा किया है. उत्तराखंड के नैनीताल स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) के वैज्ञानिक डॉ. वीरेंद्र यादव ने दावा किया है कि इसी माह दिसंबर की 13 तारीख से शुरू होकर 14 दिसंबर की रात को चरम पर होगी बड़े पैमाने पर तारों की यह बारिश.आसमान में हर घंटे 100 से 150 तारे टूटेंगे.नैनीताल स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) के वैज्ञानिक डॉ. वीरेंद्र यादव के अनुसार, इस खगोलीय घटना का नाम ‘जेमिनीड उल्कापात’ है. डॉ. यादव बताते हैं कि प्रक्रिया नवंबर से शुरू हुई है जो 24 दिसंबर तक जारी रहेगी.

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*वास्तविक तारों से नहीं है इसका कोई संबंध*

 

इस खगोलीय घटना को ‘टूटते तारों’ के नाम से भी पहचाना जाता है. हालांकि, वास्तविक तारों से इस घटना का कोई सीधा संबंध नहीं है. यह आसमान में गुजरते उल्काओं का जलता हुआ मलबा भर है. इन्हें धरती से देखने पर तारे टूटने जैसा एहसास होता है.वातावरण के घर्षण से मलबा जलता है। वैज्ञानिकों ने बताया है कि जब धूमकेतु का मलबा पृथ्वी के मार्ग पर आ जाता है तो वह पृथ्वी के वातावरण के सम्पर्क में आकर जलने लगता है. इससे आसमान में आतिशबाजी जैसा नजारा देखने को मिलता है. यह खगोलीय घटना पृथ्वी से महज 100 से 120 किमी की ऊंचाई पर होती है. टूटते तारों का यह अद्भुत नज़ारा क्षण भर के लिए ही नजर आता है और पलक झपकते ही ओझल भी हो जाता है।

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*तारामंडल के नाम पर रखा जाता है नाम*

एरीज के वैज्ञानिक डॉ. यादव के अनुसार, उल्कापात का नाम आमतौर पर उस तारामंडल या नक्षत्र के नाम पर रखा जाता है, जहां से यह आता है. इसी आधार पर जेमिनीड उल्कापात का नाम मिथुन राशि यानि जेमिनी तारामंडल के नाम से जाना जाता है। वहीं नर्मदापुरम जिले की विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने मीडियावाला को बताया कि ठंड भरी रात में उल्‍का वर्षा गुरूवार 14 दिसंबर की रात्रि बेहद खास होने वाली है। शाम 7 बजे के पहले ही दूज के पतले हंसियाकार चंद्रमा के अस्‍त होने के बाद अंधेरे पूर्वी आकाश में जेमि‍नीड उल्‍का बौछार के दिखने की शुरूआत होगी। आकाश की इस प्राकृतिक आतिशबाजी की जानकारी देते हुये नेशनल अवार्ड प्राप्‍त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने बताया कि यह वर्ष की सबसे शानदार उल्का वर्षा होगी,जिसमे प्रति घंटे लगभग 120 से 150 तक उल्काओं को देखने की संभावना रहगी। यह उल्‍का 35 किमी प्रति सेकंड के वेग से नीचे आते दिखेगी। सारिका ने बताया कि इसे देखने के लिये शहर की रोशनी या स्ट्रीट लाइट से काफी दूर के क्षेत्र में जाकर किसी छत या साफ मैदान पर लॉन कुर्सी या दरी पर लेट कर अथवा बैठ कर पूर्वी आसमान से देखने की शुरूआत करें।अंधेरे मे लगभग 30 मिनिट के बाद आपकी आंखे अनुकूल हो जायेंगी और आपको कुछ अंतराल पर उल्‍कायें दिखाई देने लगेंगी । यह बौछार रात भर चलेगी इसलिये धैर्य रखें । इसे देखने के लिये अलग से कोई यंत्र की आवश्‍यक्‍ता नहीं होती है।सारिका ने बताया कि जेमि‍नीड उल्‍का बौछार का नाम जेमिनी तारामंडल से लिया गया है क्‍योंकि उल्‍का बौछार की मिथुन तारामंडल के सामने से ही होती दिखती है । जेमि‍नीड उल्‍कापात उल्‍कापिंड 3200 फैथान के कारण होता है । जब पृथ्‍वी इसके द्वारा छोड़ी गई धूल से होकर गुजरती है तो धूल एवं चटटान हमारे वायुमंडल के ऊपरी भाग के संपर्क मे आकर जल जाती है, जो हमे उल्‍का बौछार के रूप मे दिखाई देती है।