खाद के साथ 80 करोड़ की टैगिंग सामग्री का मामला पहुंचा विधानसभा, थाने में कम्प्लेन पर एक्शन नहीं

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खाद के साथ 80 करोड़ की टैगिंग सामग्री का मामला पहुंचा विधानसभा, थाने में कम्प्लेन पर एक्शन नहीं

भोपाल: प्रदेश में खाद कम्पनियों द्वारा किसानों को यूरिया और डीएपी खाद खरीदते समय सल्फर और कीटनाशक जबरन खरीदने पर मजबूर किया जा रहा है। इस टैगिंग में किसान लुट रहे हैं और 80 करोड़ रुपए के पेस्टीसाइड्स और कीटनाशक टैगिंग के जरिये बेच चुके हैं लेकिन कृषि विभाग के अधिकारी कोई एक्शन नहीं ले रहे हैं। यह मामला अब विधानसभा भी पहुंचा है और चित्रकूट विधायक ने इसको लेकर विधानसभा के जरिये सरकार का ध्यानाकर्षित किया है। दूसरी ओर विन्ध्य में कई जगह टैगिंग में लूट कर रही चंबल फर्टिलाइजर के अफसरों के विरुद्ध थाने में भी शिकायत की गई है।

केंद्र सरकार ने निर्देश हैं कि यूरिया और डीएपी या सुपर फास्फेट खाद की खरीदी के समय किसानों को कोई अन्य कीटनाशक या सल्फर खरीदने के लिए दबाव नहीं बनाया जा सकता है। खाद के साथ पेस्टिसाइड की टैगिंग किए जाने पर प्रतिबंध है और ऐसा करने वालों पर कार्यवाही के आदेश हैं। गेहूं उत्पादक जिलों में किसानों को कीटनाशक या सल्फर लेने पर ही खाद देने का दबाव बनाया जाता है। वैसे तो पूरे प्रदेश में इस तरह का खेल चल रहा है लेकिन विन्ध्य क्षेत्र के रीवा, सीधी, सतना, सिंगरौली में इसको लेकर काफी शिकायतें हैं। इसमें सबसे आगे चंबल फर्टिलाइजर कम्पनी का नाम है। इसके साथ ही नेशनल फर्टिलाइजर लिमिटेड, इंडियन पोटास लिमिटेड समेत अन्य कम्पनियां शामिल हैं।

कांग्रेस विधायक ने दिया है ध्यानाकर्षण प्रस्ताव
विधायक नीलांशु चतुर्वेदी ने खाद कम्पनियों द्वारा किसानों पर टैगिंग के जरिये की जा रही जबरन वसूली के मामले में विधानसभा में ध्यानाकर्षण का प्रस्ताव भी दिया है। इसमें कहा गया है कि किसानों के साथ डीलरों पर भी खाद के साथ अन्य सामग्री जैसे कीटनाशक, पेस्टीसाइड्स, जिंक युक्त उत्पाद, नैनो यूरिया आदि लेने के लिए दबाव डाला जाता है। इसके बाद डीलर किसानों पर दबाव बनाते हैं क्योंकि ऐसा न करने पर कम्पनी डीलरशिप खत्म करने की धमकी देती है। ऐसे में किसान लुटने को मजबूर होता है। चतुर्वेदी ने कहा है कि चंबल फर्टिलाइजर कम्पनी के सतना जिले के एक डीलर इसी प्रताड़ना के चलते अस्पताल में भर्ती हैं। विधायक ने कहा है कि जिला विपणन संघ सतना के गोदाम से भी किसानों को अन्य अतिरिक्त सामग्री लेने के लिए बाध्य किया जाता है। इससे आर्थिक नुकसान उठा रहे किसानों में भारी आक्रोश है।