डबल इंजन सरकार वाले राज्यों में विभाग वितरण का केंद्रीय फार्मूला…
मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ तीनों राज्यों में 2023 दिसंबर में नई डबल इंजन सरकारों का गठन हुआ है। डबल इंजन सरकार वाले राज्यों में विभाग वितरण का केंद्रीय फार्मूला लगभग एक जैसा ही देखने को मिला है। सबसे पहले तो तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री का चयन चौंकाने वाला रहा, तो दो-दो उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति और मंत्रिमंडल गठन में चौंकाने वाले नामों की भरमार ने यह साफ कर दिया कि अब सब तय ऊपर से ही होना है। और कार्यशैली भी किस तरह की होगी, यह भी ऊपर वाले ही तय करेंगे। इस नई व्यवस्था में मुख्यमंत्री को सर्वाधिक ताकत दी गई है। अभी तक मुख्यमंत्री के पास सामान्य प्रशासन, विमानन जैसे विभाग रहते थे। अब डबल इंजन सरकार की नई व्यवस्था में मुख्यमंत्री को इनके अलावा भी गृह एवं जेल, खनिज, जनसंपर्क सहित दस-दस बड़े भारी भरकम विभागों की कमान सौंपी गई है। मुख्यमंत्री के नाम का चयन सबसे पहले छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय, फिर मध्यप्रदेश में डॉ. मोहन यादव और इन सबसे चौंकाने वाला नाम राजस्थान में भजनलाल शर्मा का था। इसके बाद विभाग वितरण से यह साफ हो गया है कि उत्तर प्रदेश की तरह डबल इंजन वाली सरकारों में सर्वाधिक जोर कानून व्यवस्था पर रहने वाला है। और मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में कानून व्यवस्था का जिम्मा मुख्यमंत्री के कंधों पर ही है। उद्देश्य यही कि कानून व्यवस्था के मामले में कोई कोताही अब बर्दाश्त नहीं होगी। साथ ही प्रदेश में गृह मंत्री बनकर खुद को नंबर दो पद पर काबिज करने का भूत अब किसी के सिर पर सवार होने का मौका भी किसी को नहीं देना है। तो अपराधियों के सफाए में एनकाउंटर जैसे मामलों में बढोतरी पर आश्चर्य करने की कोई बात नहीं होगी। अपराध के मामले में घोषित तौर पर “जीरो टॉलरेंस की पॉलिसी” जल्दी ही इन राज्यों को भी उत्तर प्रदेश की तरह ही राष्ट्रीय पटल पर चर्चा में ला सकती है। और इसका समर्थन करने की मजबूरी सभी राज्यों में विपक्ष के नेता की भी रहेगी। और इस व्यवस्था में सर्वाधिक आफत तो अब पुलिस पर पड़ने वाली थी कि किसकी सुनें और किसकी नहीं, इसलिए यह महकमे मुख्यमंत्री के नाम दर्ज कर केंद्रीय नेतृत्व सुनियोजित तरीके से आगे बढ़ा है।
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विभाग वितरण में समानता देखी जाए तो मुख्यमंत्री को सामान्य प्रशासन विभाग, गृह, जेल, उद्योग नीति एवं निवेश, जनसंपर्क, खनिज,लोकप्रबंधन, प्रवासी भारतीय एवं अन्य विभाग जो मंत्रियों के पास नहीं हों आदि मुख्यमंत्री को सौंपे गए हैं। तो एक उप मुख्यमंत्री को वित्त, वाणिजयकर, योजना, आर्थिक एवं सांख्यिकी आदि विभाग और दूसरे उप मुख्यमंत्री को लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, चिकित्सा शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई है। लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, चिकित्सा शिक्षा विभाग एक ही मंत्री को सौंपकर स्वास्थ्यगत जिम्मेदारी का बोझ एक ही व्यक्ति के कंधों पर डाला गया है। इन दोनों ही राज्यों में नगरीय विकास एवं आवास, संसदीय कार्य की जिम्मेदारी एक मंत्री को सौंपे गए हैं। पंचायत एवं ग्रामीण विकास, श्रम को एक ही मंत्री के खाते में दर्ज किया गया है तो स्कूल शिक्षा और परिवहन एक ही मंत्री को दिया गया है। लोक निर्माण विभाग और राजस्व विभाग को अलग-अलग मंत्री को सौंपा गया है। तो लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, जल संसाधन, किसान, कल्याण एवं कृषि,महिला एवं बाल विकास,खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण और खेल एवं युवा कल्याण जैसे विभाग अलग-अलग मंत्री के हवाले किए गए हैं।
कुल मिलाकर अब जो सोचा जा रहा है, वही सामने भी आ रहा है। और डबल इंजन की सरकारों में सरकार की कार्यशैली भी एक जैसी दिखने वाली है। और जिस तरह मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में मोदी के चेहरे और केंद्र सरकार की जनहितैषी योजनाओं को जीत का प्रमुख आधार माना गया है, यही पैटर्न अब आदर्श बनने वाला है। भाजपा शासित राज्यों में शासन करने का फार्मूला एक जैसा रहेगा, भले ही मुख्यमंत्री कोई भी हो। इस पैटर्न के बाद मुख्यमंत्री वैल्यू एडीशन के आधार पर अपना कद बढ़ाने के लिए स्वतंत्र रहेगा। डबल इंजन सरकार वाले राज्यों में विभाग वितरण का केंद्रीय फार्मूला तो यही साबित कर रहा है। अब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के सामने केंद्रीय पैटर्न में अपनी लकीर बड़ी खींचने की चुनौती है।