राजनीति में दावे, वादे और एलान करना जरूरी घटक माना गया है। चुनाव के आते-आते राजनीतिक मंचों से वादे और आसमानी आश्वासनों के साथ प्रदेश से लेकर देश को संभालने तक का एलान किया जाट है। लेकिन, उनके यह एलान तब हवा हो जाते हैं, जब अखबारों की सुर्खियों में इन्ही राजनेताओं की संतानों के कालिख लगे कारनामों का जिक्र होने लगता है। तब स्वाभाविक रूप से एक विचार हवा में लहराने लगता है कि जिन राजनेताओं से अपनी खुद की संतान नही संभलती, वे प्रदेश और देश क्या संभालेंगे!
इन दिनों अख़बारों के मुख पृष्ठ ऐसे ही कुछ राजनेताओं की संतानों के कारनामों से भरे पड़े हैं। हाल ही में एक खबर चर्चा का विषय बनी कि प्रदेश के एक पूर्व मंत्री तथा शाजापुर से कांग्रेसी विधायक हुकुम सिंह कराड़ा के बेटे रोहिताप सिंह कारडा पर इंदौर के एक कारोबारी और उनके साथियों की कार को टक्कर मारकर जानलेवा हमला करने की कोशिश की गई। इस मामले में पहले तो पुलिस द्वारा इसे गंभीरता से संज्ञान न लेते हुए अज्ञात चालक पर केस दर्ज कर मामले को रफा दफा करने की कोशिश की!
लेकिन, मामला तूल पकड़ने और मीडिया मे उछलने और कार में नशा करते हुए रोहिताप के विडियो सामने आने के बाद पुलिस को उसके विरूद्ध मजबूरी मे ही सही नामजद रिपोर्ट दर्ज करनी पडी। यह हालत तब है जब उसके पिता प्रतिपक्ष के विधायक हैं। यदि वे सत्तारूढ़ पार्टी के किसी नेता का बेटा होता तो उसके खिलाफ शायद ही प्रकरण दर्ज होता।
प्रदेश से ही सटे राजस्थान के जल संसाधन मंत्री महेश जोशी के पुत्र रोहित जोशी को भी दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने की स्याही अभी सूखी नहीं है। एक युवती का आरोप है कि रोहित जोशी ने सोशल मीडिया के माध्यम से उसके साथ दोस्ती गांठी फिर शादी का झांसा देकर जनवरी 21 से अप्रैल 22 तक सवाई माधोपुर, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और जयपुर में अलग-अलग स्थानों पर शारीरिक शोषण कर उसके साथ मारपीट और जान से मारने की धमकी तक दी गई। जबकि, मंत्री के विवाहित पुत्र का कहना है कि उसे हनी ट्रैप में फंसाया जाकर ब्लैकमेल किया जा रहा है।
ऐसा ही एक मामला बड़नगर के कांग्रेस विधायक मुरली मोरवाल के बेटे करण मोरवाल का भी है, जिसने धोखे से एक लड़की का देह शोषण किया और बचने की कोशिश की, पर पकड़ा गया। संयोग से सभी ताजा मामले एक ही राजनीतिक दल के राजनेताओं से जुड़े है। इसलिए दोनों मामलों पर राजनीतिक बयानबाजी आरंभ हो गई। ऐसा हमेशा से होता आ रहा है।
राजनेताओं की संतानों के बहकने और अपने संबंधों का बेजा इस्तेमाल करने का किस्सा कोई नया नहीं है। यह उस जमाने से चला आ रहा है जब राजनेताओं की छवि आज की तरह धूसर नहीं थी। तब भी बगुले की तरह सफेद परिधान पहनने वाले राजनेताओं की राजनीतिक छवि को उनकी संतानों ने ही नुकसान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
ऐसे कई राजनेता हैं जिन्होंने वाकई में देश और प्रदेश के लिए बहुत काम किया और आज भी उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। लेकिन, उनके जीवन में भी कभी ऐसा समय आया, जब उनकी संतानों ने उनके नाम पर कालिख पोत दी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी अपमान का यह दंश तब झेलना पड़ा था, जब उनके छोटे बेटे संजय गांधी ने आपातकाल में सत्ता में अनुचित हस्तक्षेप करते हुए न केवल अपनी मनमानी की, बल्कि अपने कतिपय मित्रों की चाण्डाल चौकडी के साथ मिलकर ऐसे ऐसे कारनामे किए जिनसे इंदिरा गांधी जैसी शख्सियत का सिर शर्म से झुकता रहा।
1977 में जनता पार्टी की लहर में इंदिरा गांधी चुनाव हार गई थीं। उस समय जगजीवन राम प्रधानमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार माने जा रहे थे। कहा जाता है कि जाने-माने नेता जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम सेक्स स्कैंडल में न फंसे होते, तो जगजीवन राम देश के पहले दलित प्रधानमंत्री बन सकते थे। दुर्भाग्यवश 1978 में ‘सूर्या’ नाम की एक पत्रिका में ऐसी तस्वीरें छपी, जिसमें जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम को यूपी के बागपत जिले के एक गांव की एक महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाते हुए आपत्तिजनक स्थिति में दिखाया गया था। इन तस्वीरों ने ही सियासी गलियारे में तूफान ला दिया।
इसके बाद प्रधानमंत्री बने मोरारजी देसाई को लौह पुरुष के समान माना जाता था। वह अपने सिद्धांतों के प्रति अडिग तथा अटल रहते थे। वैसे तो उनकी राजनीतिक छवि बेदाग मानी जाती रही। लेकिन, एक समय ऐसा भी आया जब उनके बेटे कांति देसाई पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने उनकी छवि को धूमिल करने का प्रयास किया। राजदूत एलन नाजरेथ की पुस्तक ‘ए रिंग साइड सीट टू हिस्ट्री’ के कुछ पन्ने इस संदेह को बल देते हैं कि मोरारजी देसाई के बेटे कांति देसाई भारतीय वायुसेना के लिए जगुआर लड़ाकू विमान के 2.2 बिलियन डॉलर के सौदे में अनुचित रूप से शामिल थे।
उत्तर प्रदेश में दबंग राजनेताओं के बेटों की दबंगता के किस्से कम नहीं हैं। वहां के बाहुबली नेता डीपी यादव खुद तो अपनी दबंगई के चलते बदनाम थे , लेकिन उनके बेटे विकास यादव उनसे एक कदम आगे रहे। अपनी बहन के प्रेमी नितीश कटारा की हत्या के आरोप में वे 25 साल की सजा भुगत रहे है। उनकी इस हरकत ने डीपी यादव के राजनीतिक जीवन पर पूर्ण विराम लगा दिया।
ऐसा नहीं कि अनुशासन की दुहाई देने वाली भाजपा कोयले खान में कालिख लगने से बच गई हो। यहां भी कुछ संतानों ने अपने राजनेता पिताओं के राजनीतिक रसूख को कई बार दांव पर लगाया। भाजपा के कद्दावर नेता तथा पूर्व मंत्री प्रमोद महाजन की गिनती बड़े नेताओं में होती रही है। लेकिन, उनके बेटे राहुल महाजन की बदमाशियों ने प्रमोद महाजन को जीते जी ही नहीं, बल्कि मरने के बाद भी बेहद परेशान किया। देश मौजूदा गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा ने लखीमपुर हिंसा में शामिल होकर अपने पिता के सिंहासन को हिला दिया था। मामला अदालत में विचाराधीन है और इसके चलते आज भी अजय मिश्रा की कुर्सी के पाए डगमगाए हुए है। कभी-कभी राजनेताओं की संतानों द्वारा भावावेश या आवेश में उठाए गए कदम से भी राजनेताओं की छबि को ठेस पहुंचती है। देवास विधायक तुकोजीराव पंवार के बेटे विक्रम पवार भी एक प्रकरण में इस कदर घिरे थे कि उन्हें कई दिनों तक भूमिगत होना पड़ा था। इससे उनके परिवार पर बदनामी के छीटे उडे थे। ऐसे में जब राजनेताओं द्वारा अपनी संतानों की कारगुजारी को दर किनार कर देश या प्रदेश संभालने की बात की जाती है तो उनसे पहले अपनी संतानों को संभालने की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही की जाती है।