रायबरेली और अमेठी में कांग्रेस सोनिया, राहुल और प्रियंका की साख दांव पर
गोपेन्द्र नाथ भट्ट की विशेष रिपोर्ट
लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में सोमवार को देश की 49 संसदीय सीटों पर होने वाली वोटिंग के लिए विभिन्न दलों के उम्मीदवार मतदाताओं से घर-घर जाकर संपर्क करने में जुटे हुए। इस चरण में छह राज्यों एवं दो केंद्र शासित प्रदेशों के 695 उम्मीद्वारों के भाग्य का फैसला होना हैं। इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, ओडिशा, झारखंड और दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख शामिल है। पांचवें चरण में उत्तर प्रदेश की 14, महाराष्ट्र की 13, पश्चिम बंगाल की सात, बिहार और ओडिशा की पांच-पांच, झारखंड की तीन,जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की एक-एक सीट पर भी इसी चरण में मतदान होना है।
पांचवें चरण में 20 मई को होने वाले 49 सीटों के चुनाव में रायबरेली व अमेठी भी शामिल है। इस चरण में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी,पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला सहित कई बड़े नेताओं की किस्मत दांव पर है लेकिन सभी की नजरें रायबरेली और अमेठी पर टिकी हुई है जहां कांग्रेस पार्टी,सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की साख दांव पर लगी हुई है। साथ ही इन सीटों पर दो पूर्व मुख्यमंत्रियों राजस्थान के अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के भूपेश बघेल की भी अग्नि परीक्षा हो रही है।
पांचवें चरण की वोटिंग से पहले देश के सबसे अधिक 80 सीटों वाले राजनीतिक राज्य उत्तरप्रदेश में चुनावी गर्मी अपने चरम पर है। इसका खास कारण यह बताया जा रहा है कि इंडिया गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के पास इस चरण में हो रहे चुनाव में अभी एक मात्र रायबरेली की सीट ही है। इस सीट पर कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी लंबे समय तक बतौर सांसद प्रतिनिधित्व करती रही लेकिन स्वास्थ्य और अन्य कारणों से अब वे यहां से चुनाव नही लड़ रही तथा राजस्थान से राज्य सभा सांसद निर्वाचित होकर फिर से संसद पहुंच गई है।रायबरेली सीट से कांग्रेस ने रणनीतिक व्यूह रचना के तहत सोनिया गांधी के स्थान पर यहां से राहुल गांधी को चुनाव लडा रही है। हालांकि राहुल गांधी केरल के वायनाड सीट से भी फिर से सांसद प्रत्याक्षी है,जहां मतदान पहले ही हो चुका है।
रायबरेली के साथ ही गांधी परिवार से जुड़ी एक और सीट अमेठी पर भी सभी की निगाहें है। भले ही अमेठी से गांधी परिवार को कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ रहा, लेकिन यहां गांधी परिवार के नजदीकी कांग्रेस प्रत्याक्षी किशोरी लाल शर्मा की जीत-हार भी सीधे गांधी परिवार के खाते में जाएगी।
ये दोनों ही सीट गांधी परिवार की मानी जाती है।भाजपा के अश्वमेघ यज्ञ अभियान के बावजूद रायबरेली में सोनिया गांधी लगातार चुनाव जीत रही थी लेकिन इसके बगल वाली अमेठी सीट का पिछले चुनाव में सियासी रंग बदल गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को भाजपा की फायर ब्रांड नेता केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने हरा दिया था। इस तरह गांधी परिवार के इस अभेद्य दुर्ग अमेठी में पहली बार भगवा फहराया था। पिछली हार के बाद दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीता है की तर्ज पर इस बार राहुल गांधी अमेठी के बजाय रायबरेली सीट से चुनावी लड़ रहे है। राहुल गांधी का मुकाबला भाजपा के पुराने नेता दिनेश प्रताप सिंह से है। अमेठी सीट पर स्मृति ईरानी के खिलाफ कांग्रेस से गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले किशोरी लाल शर्मा चुनाव लड़ रहे हैं। इन दिनों सीटों के चुनाव परिणाम उत्तर प्रदेश में मृत प्रायः कांग्रेस के राजनीतिक भविष्य के लिए अहम है। इसलिए यहां गांधी परिवार के तीनों स्तंभ सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इस बार के चुनाव अभियान में जयपुर के बाद सोनिया गांधी करीब पांच साल बाद रायबरेली में चुनावी मंच पर चढ़ी और जनता से भावुक अपील की कि मैं अपना बेटा रायबरेली की जनता को सौपंती रही हूं। वैसे 2014 की मोदी लहर में भी कांग्रेस ने रायबरेली नहीं हारी थी और पिछले 2019 के चुनाव में भी यहां से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में सोनिया गांधी ही चुनाव जीती थी। लेकिन पूरे उत्तरप्रदेश में 80 लोकसभा सीटों में से यह एक मात्र कांग्रेस सीट थी जिस पर पार्टी चुनाव जीती थी। एक वक्त था जब अविभाजित यूपी की सभी 75 सीटों पर कांग्रेस का परचम फहरा करता था लेकिन कालांतर में कांग्रेस उत्तर प्रदेश से और साथ साथ केंद्र की सरकार से भी ओझल होती गई। इस बार भाजपा का शीर्ष नेतृत्व चाहता है कि यू पी में कांग्रेस और इंडी गठबंधन को एक भी सीट नहीं मिले।
हालांकि रायबरेली सीट का इतिहास देखें तों पाएंगे कि पिछले 72 वर्षों के इतिहास में 66 वर्षों तक यहां कांग्रेस के सांसद ही चुने जाते रहे हैं। यहां अब तक हुए 20 चुनाव में 17 बार कांग्रेस को जीत मिली है और 72 साल में गांधी परिवार से 7 सदस्य सांसद का चुनाव लड़े जिनमें 5 सदस्य सांसद बने है। पिछले 20 वर्षों से रायबरेली की जनता ने सोनिया गांधी को अपना सांसद चुना है,लेकिन एक चुनावी फैक्टर ऐसा भी है, जिसने कांग्रेस की चिंता को बढ़ा दिया है। रायबरेली में कांग्रेस का लगातार घटता वोट बैंक और भाजपा का बढ़ता ग्राफ कांग्रेस की चिंता का मुख्य कारण है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार रायबरेली में 2009 में सोनिया गांधी को 72.23 प्रतिशत वोट मिले थे,जबकि बीजेपी को सिर्फ 3.82 प्रतिशत ही वोट मिले थे। तब भाजपा और कांग्रेस के मध्य जीत के वोटों का अंतर 68.43 प्रतिशत था।इसके बाद 2014 के चुनाव में सोनिया गांधी को 63.80 प्रतिशत वोट ही मिले और भाजपा का मत प्रतिशत बढ़ कर 21.05 प्रतिशत हो गया यानी कांग्रेस को 8.43 प्रतिशत मतों का नुकसान हुआ था और भाजपा को 17.23 प्रतिशत वोट का लाभ मिला था। साथ ही दोनों पार्टियों के वोट का अंतर भी घटकर 42.75 प्रतिशत हो गया। वर्ष 2019 के चुनाव में सोनिया गांधी को और भी कम 55.78 प्रतिशत वोट ही मिले और भाजपा के पक्ष में 38.35 वोट पड़े यानी कांग्रेस को 8.02 प्रतिशत वोटों का नुकसान हुआ और भाजपा को 17.3 फीसदी मतों का फायदा हुआ। साथ ही जीत हार का अंतर भी घटकर 17.43 फीसदी ही रह गया। अब अहम बात ये है कि रायबरेली में पिछली बार बीजेपी 17.43 फीसदी वोट के अंतर से हारी है और लगातार दो चुनाव में उसके 17 प्रतिशत से ज्यादा वोट बढ़ते जा रहें है।
रायबरेली एवं अमेठी सीट की प्रतिष्ठापूर्ण सीटों पर कांग्रेस की साख को बचाने के लिए कांग्रेस आलाकमान ने दो पूर्व मुख्यमंत्रियों को चुनाव लड़ाने का जिम्मा दिया है। रायबरेली सीट पर छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल को सीनियर ऑब्जर्वर बनाया है, तो अमेठी जैसी मुश्किल सीट पर राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भेजा गया है। दोनों को विशेष कर गहलोत को बड़ा रणनीतिकार और राजनीति का जादूगर माना जाता है।
अमेठी में पिछली बार राहुल गांधी की स्मृति ईरानी से हुई पराजय को देखते हुए इस बार कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदली है। पहली राहुल गांधी अब अमेठी छोड़कर रायबरेली से चुनाव लड़ रहे है। हालांकि अमेठी का रण छोड़कर राहुल गांधी ने एक साथ कई निशाने साधने की की कोशिश की हैं। इसके पीछे कांग्रेस की एक सोची-समझी रणनीति नजर भी बताई जाती है। अमेठी और रायबरेली में प्रत्याशी चयन को लेकर बने सस्पेंस पर अंतिम क्षणों में पर्दा उठा तथा राहुल गांधी खुद रायबरेली चले गए और अमेठी से किशोरी लाल शर्मा को मैदान में उतार दिया गया। किशोरी लंबे समय से गांधी परिवार के करीबी है। कांग्रेस माया सचिव प्रियंका गांधी और पूर्व सी एम अशोक गहलोत ने यहां पर चुनाव प्रचार एवं प्रबंधन का पूरा जिम्मा संभाल रखा है। प्रियंका गांधी ने अमेठी और रायबरेली में चुनाव प्रचार के लिए 10 दिन से अधिक समय तक रह का अपने अथक प्रयास किए है।करीब 300 कार्यकर्ताओं की एक टीम ने अमेठी में तथा 350 के कार्यकर्ताओं की टीम ने रायबरेली में दिन रात काम किया है। ये टीम्स प्रति दिन 20-22 नुक्कड़ सभाएं, जनता तक कांग्रेस का प्रचार, जनसभा, रोड-शो आदि करने की योजना बना कर काम करती थी। राजनीति के चाणक्य अशोक गहलोत ने भी राजस्थान से अपने विश्वसनीय नेताओं की पूरी टीम को अमेठी में बुला कर संसदीय क्षेत्र के चप्पे चप्पे को छान मारने में कोई कसर बाकी नहीं रखी ऐसा बताया जा रहा है। इसके बावजूद इन दोनों ही सीटों पर समाजवादी कार्यकर्ताओं का समर्थन हासिल करना सबसे अहम फेक्टर हैं क्योंकि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ रही हैं।
रायबरेली की पांच में से चार विधानसभा सीट समाजवाद पार्टी के पास है। ऐसे में समाजवादी अगर मन से कांग्रेस के लिए वोट देते हैं और 2022 के विधानसभा चुनाव का परिणाम दोहराते है,तो यह कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित होगा। क्योंकि खुद कांग्रेस तो उन चुनाव में चार सीटों पर तीसरे नंबर पर रही थी। वहीं अमेठी लोकसभा सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें आती हैं। इसमें तिलोई, सैलून,जगदीशपुर, गौरीगंज और अमेठी शामिल हैं। पिछले 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को यहां तीन सीटों और समाजवादी पार्टी को दो सीटों पर ही कामयाबी मिली थी तथा कांग्रेस सिफर रही थी। यानि यहां पर भी कांग्रेस पूरी तरह इंडी गठबंधन की सहयोगी पार्टी सपा के समर्थन पर ही निर्भर है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार भी अपनी सभी चुनावी सभाओं में राहुल गांधी को नई दिल्ली का और अखिलेश यादव को लखनऊ का शहजादा कह कर जोरदार हमला बोला है। लेकिन राहुल अखिलेश की सियासी कैमिस्ट्री इस बार बेहतर नहर आई है । वे सिर्फ चुनावी रैलियों के मंच पर ही नहीं बल्कि जमीनी स्तर भी मिल कर चल रहे है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने चुनावी तपिश के साथ ही अपने कार्यकर्ताओं को भी हिदायत दी कि उत्तर प्रदेश में जिन लोकसभा सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है, वहां इस तरह पूरी ताकत लगाएं कि मानों सपा का उम्मीदवार ही चुनावी मैदान में हैं। उनकी यह हिदायत गांधी परिवार के गढ़ माने जाने वाले रायबरेली और अमेठी में जमीनी स्तर पर नजर भी आई है, जहां कांग्रेस को जिताने के लिए लाल टोपी पहने सपा समर्थक पूरे दमखम के साथ जुटे। वहीं, अखिलेश यादव ने खुद भी सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ रायबरेली और अमेठी में कांग्रेस के लिए सभाएं की। यहां 34 प्रतिशत से अधिक अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग हैं और मुकाबला दिलचस्प रहने की उम्मीद है। अमेठी में 20 फीसदी अल्पसंख्यक , 18 फीसदी ब्राह्मण, 12 फीसदी क्षत्रिय मतदाता हैं। सबसे अधिक 34 प्रतिशत ओबीसी और 26 फीसदी दलित वोटर्स हैं।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि जातियों का यह खेल इस बार किस पर भारी पड़ सकता है।