झूठ बोले कौआ काटे! मोदी का अमोघ अस्त्र, ठगा-ठगा सा विपक्ष

झूठ बोले कौआ काटे! मोदी का अमोघ अस्त्र, ठगा-ठगा सा विपक्ष

नारी शक्ति वंदन कानून के अमोघ अस्त्र से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘इंडिया’ गठबंधन का किला 2024 के पहले ही ध्वस्त कर दिया। 27 वर्षों से कुछ दलों के किंतु-परंतु में अटका हुआ था यह कानून। मोदी सरकार ने अपनी चौंकाने वाली शैली में नए कलेवर के साथ विपक्ष को न केवल दो तिहाई बहुमत से संसद में पारित करने को विवश कर दिया अपितु सारा क्रेडिट भी ले लिया। तीन तलाक कानून सहित महिलाओं की बेहतरी के लिए किये गए मोदी सरकार के प्रयासों का चमत्कार लोग 2014 और 2019 में देख चुके हैं।

महिला आरक्षण विधेयक नई संसद में पारित हुआ पहला विधेयक भी है। हालांकि, असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने महिला आरक्षण विधेयक के विरोध में वोट किया। इस कानून से लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% रिजर्वेशन लागू किया जाएगा। लोकसभा की 543 सीटों में से 181 महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। ये रिजर्वेशन 15 साल तक रहेगा। इसके बाद संसद चाहे तो इसकी अवधि बढ़ा सकती है। यह आरक्षण निर्वाचन प्रक्रिया से होकर आने वाले जनप्रतिनिधियों के लिए लागू होगा। अर्थात्, यह राज्यसभा और राज्यों की विधान परिषदों पर लागू नहीं होगा।

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हालांकि, कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने महिला आरक्षण पर 27 साल पुरानी कोशिश का जिक्र करते हुए एक तरफ श्रेय लेने की कोशिश की तो दूसरी तरफ उन्होंने कहा कि एससी-एसटी और ओबीसी वर्ग की महिलाओं को इसमें लाभ दिए बिना ये पहल कारगर नहीं होगी। उन्होंने कहा कि सरकार को तुरंत जातीय जनगणना कर करवाकर इन वंचित वर्गों के लिए भी इस बिल में आरक्षण का प्रावधान किया जाए। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने भी संसद में बहस के दौरान कहा कि ओबीसी आरक्षण के बिना महिला आरक्षण बिल अधूरा है।

समाजवादी पार्टी की सदस्य डिंपल यादव ने भी विधेयक में पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान करने की मांग की। वहीं, शिरोमणि अकाली दल नेता हरसिमरत कौर बादल ने लोकसभा में सत्तारूढ़ भाजपा पर तीखा हमला बोला और उस पर महिलाओं के लिए आरक्षण विधेयक लाकर देश की महिलाओं को गुमराह करने का आरोप लगाया।

केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बहस के दौरान कहा कि परिसीमन को लेकर सवाल खड़ा किया जा रहा है। परिसीमन के सेक्शन 8 और 9 में ये कहा गया है कि संख्या देकर ही निर्धारण होता है। इन तकनीकी चीजों में हम जाएंगे तो आप चाहते हैं कि ये बिल फंस जाए। लेकिन हम इस बिल को फंसने नहीं देंगे। सुप्रीम कोर्ट ने तय किया है कि महिला आरक्षण का विषय हॉरिजॉन्टल भी है और वर्टिकल भी है। अब तुरंत तो परिसीमन, जनगणना नहीं हो सकती। आप कह रहे हैं कि तुरंत दे दीजिए।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि महिला आरक्षण विधेयक का पारित होना भारत की संसदीय यात्रा में स्वर्णिम क्षण है। इससे देश की मातृशक्ति का जो मिजाज बदलेगा और जो विश्वास पैदा होगा वो देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने वाली अकल्पनीय शक्ति बनकर उभरेगा। ये मैं अनुभव करता हूं। दूसरी ओर, राज्यसभा में चर्चा के दौरान उपराष्ट्रपति और सदन के सभापति जगदीप धनकड़ की सीट पर महिला सांसदों को बैठने का अवसर बी मिला, जिसमें सपा सांसद जया बच्चन भी थीं।

झूठ बोले कौआ काटेः

संसद में गतिरोध के लंबे इतिहास के बाद महिला आरक्षण विधेयक पेश होने पर पीएम मोदी ने कहा कि ‘शायद भगवान ने इसके लिए मुझे चुना है।’ इतिहास पर दृष्टिपात करें तो पहली बार 1974 में महिलाओं की स्थिति का आकलन करने वाली समिति ने महिला आरक्षण के मुद्दे को उठाया। महिला आरक्षण विधेयक का उथल-पुथल भरा विधायी इतिहास तो 27 साल पहले, 1996 में शुरू हुआ, जब एच. डी. देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली सरकार ने इसे पेश करने की पहल की। 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रहते हुए नीतीश कुमार और शरद यादव ने महिला आरक्षण बिल का विरोध किया था।

महिला आरक्षण बिल 2010 में मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल के दौरान पेश किया गया था तो जदयू के शरद यादव, राजद के लालू प्रसाद यादव और सपा के मुलायम सिंह यादव (दिवंगत) ने विधेयक पर कड़ी आपत्ति जताई थी। शरद यादव विरोध करते हुए राज्यसभा के वेल में चले गए और बिल फाड़ दिया। उन्होंने कहा कि बाल कटाने और स्टाइल करने वाली महिलाएं गांव की महिलाओं का प्रतिनिधित्व कैसे कर सकती हैं?

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दरअसल, ‘इंडिया’ गठबंधन के अधिकांश दल (कांग्रेस, राजद, जदयू, सपा, एनसीपी, झामुमो समेत द्रमुक और अन्य) जातीय जनगणना की मांग लंबे समय से करते रहे हैं। ‘इंडिया’ गठबंधन की बैठकों में भी इस पर चर्चा हो चुकी है कि किन मुद्दों पर भाजपा सरकार और एनडीए गठबंधन को घेरा जा सकता है। उनमें जातीय जनगणना अहम है। 28 दलों के गठबंधन को ऐसा लगता है कि जातीय जनगणना की मांग करने और महिला आरक्षण बिल में एससी-एसटी, अल्पसंख्यक और ओबीसी महिलाओं को कोटा के अंदर कोटा देने की मांग करने से समाज का बड़ा वोट बैंक उसकी तरफ उसकी तरफ आ सकता है।

आलोचकों का तर्क है कि यह विधेयक मौजूदा लैंगिक असमानता को कायम रख सकता है क्योंकि महिलाओं को केवल योग्यता के आधार पर प्रतिस्पर्धा करने वाला नहीं माना जा सकता है। वे यह भी दावा करते हैं कि यह कवायद राजनीति के अपराधीकरण और आंतरिक पार्टी लोकतंत्र की कमी जैसे अधिक महत्वपूर्ण चुनाव सुधार मुद्दों से ध्यान हटाती है। यही नहीं, संसदीय सीटों का आरक्षण मतदाताओं की पसंद को महिला उम्मीदवारों तक सीमित कर देता है।

अनेक संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि महिला आरक्षण विधेयक को 50 प्रतिशत राज्य विधानसभाओं की मंजूरी की जरुरत नहीं है। अर्थात्, संसद से पारित होने और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह विधिवत कानून ही माना जाएगा। अब अगली प्रक्रिया नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के रूल्स को नोटिफाई करना होगा। इसके बाद जनगणना का काम शुरू होगा। उसके बाद परिसीमन आयोग लोकसभा और विधानसभा परिसीमन का काम पूरा करेगा। जनगणना और परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद महिला आरक्षण कानून लागू हो जाएगा। इसलिए, 2024 चुनाव तक तो ऐसा हो पाना संभव नहीं है।

आंकड़े बताते हैं कि वर्तमान लोकसभा में, 82 महिला सदस्य चुनी गईं, जो कुल 543 सदस्यों में से 15 प्रतिशत से भी कम हैं। सरकार द्वारा संसद के साथ साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, राज्यसभा में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगभग 14 प्रतिशत है। भारत में सभी राज्य विधानसभाओं में महिला सदस्यों (विधायकों) के लिए स्थिति और भी खराब है, राष्ट्रीय औसत 9% दयनीय है। इसलिए, भले ही इस कवायद के विधायी नतीजे तुरंत देखने को न मिलें, लेकिन चुनावी नतीजों पर इसके प्रभाव से इन्कार नहीं किया जा सकता।

पिछले लोकसभा चुनाव के बाद हुए अध्ययन में 50 प्रतिशत महिलाओं के मोदी और भाजपा को वोट देने के निष्कर्ष सामने आए। कांग्रेस को 23 प्रतिशत और अन्य के पक्ष में 27 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया। इस चुनाव में महिलाओं का मतदान 67.18 प्रतिशत तथा पुरुषों का उससे कम 67.01 प्रतिशत था। 2022 तक महिला वोटरों की संख्या में 5.2 और पुरुष वोटरों में 3.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। फिलहाल महिला वोटर 46.1 करोड़ और पुरुष वोटर 49 करोड़ हैं।

समावेशी शासन और लैंगिक समानता को आगे बढ़ाने के लिए भारतीय राजनीति में महिलाओं के लिए आरक्षण आवश्यक है, यह देखते हुए कि नगर निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षण प्रभावी रहा है। इस बात के साक्ष्य हैं कि महिलाओं ने सामाजिक मिथकों को तोड़ दिया है, पुरुषों की तुलना में अधिक पहुंच योग्य हो गई हैं, शराब के प्रभुत्व को नियंत्रित किया है, पीने के पानी जैसी सार्वजनिक वस्तुओं में महत्वपूर्ण निवेश किया है, खुद को अभिव्यक्त करने के बेहतर तरीके खोजने में अन्य महिलाओं की सहायता की है, भ्रष्टाचार कम किया है, पोषण परिणामों को प्राथमिकता दी है। अब पीएम मोदी के लिए नारी शक्ति वंदन कानून 2024 में गेमचेंजर सिद्ध होता है तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं।