पाखंड और स्वछंदता से राजनीति में पतन के खतरे

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पाखंड और स्वछंदता से राजनीति में पतन के खतरे

महात्मा गाँधी अकारण पारदर्शिता और स्पष्टवादिता पर जोर नहीं देते थे | सामाजिक जीवन में धूर्तता और पाखंड से तात्कालिक स्वार्थ सिद्ध हो सकते हैं , लेकिन दूरगामी हित गड़बड़ा जाते हैं | लेकिन ऐसा लगता है कि कुछ राजनैतिक पार्टियां और उनके नेता सत्ता की शक्ति के पाने और फिर उसके उपयोग से मनमानी की जल्दबाजी में आदर्शों और सिद्धांतों को तिलांजली देते जा रहे हैं | इसी कारण कांग्रेस पार्टी के नेता एक के बाद एक नई मुसीबत में फंस रहे हैं | जमीन लेने , फंड जुटाने , एन जी ओ या ट्रस्ट को कंपनी की तरह उपयोग करने के आरोपों पर कानूनी फंदा मजबूत हो रहा है | चालीस साल पहले इंदिरा गाँधी प्रतिभा प्रतिष्ठान के कारण न केवल मुख्यमंत्री ए आर अंतुले मुसीबत में पड़े थे , कांग्रेस पार्टी और श्रीमती इंदिरा गांधी प्रधान मंत्री रहते हुए बहुत परेशान हुई थीं | इस अनुभव के बावजूद अब कांग्रेस पार्टी एन जी ओ की श्रेणी में ट्रस्ट बनाकर और फिर नियम विरुद्ध चीन सहित विदेशी फंड लेने और पार्टी , प्रकाशन संस्थान के नाम पर जमीन – बिल्डिंग के सौदों को लेकर संकट में आ गई है | भारत सरकार भी बहुत सतर्कता से छानबीन करके धीमी गति से कार्रवाई कर रही है | इसी कड़ी में पहला झटका राजीव गाँधी फॉउंडेशन को विदेशी फंडिंग लेने के लाइसेंस के दुरूपयोग के गंभीर मामले के साथ लाइसेंस को रद्द करके दिया गया है |

 गरीबों की सहायता , शिक्षा , स्वास्थ्य , रोजगार आदि क्षेत्रों में सामाजिक आर्थिक कार्यों के लिए राजीव गाँधी फाउंडेशन और राजीव गाँधी चेरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना पर किसीको आपत्ति नहीं हो सकती थी | इंदिरा गाँधी मेमोरियल ट्रस्ट की गतिविधियों पर पहले किसी ने आपत्ति नहीं उठाई | प्रारंभिक वर्षों में इन संस्थानों में कुछ अनुभवी समर्पित लोग भी थे | लेकिन बाद में सोनिया गाँधी , राहुल और प्रियंका गाँधी तथा उनके कुछ करीबी लोगों ने इन संस्थानों के लिए फंड जुटाने में विभिन्न स्रोतों का उपयोग शुरु कर दिया और सामाजिक सहायता कार्यों का सिलसिला ढीला कर दिया | पहले राव राज में मनमोहन सिंह ने तो  वित्त मंत्री के नाते 1991 – 92 के बजट में सीधे राजीव गाँधी फॉउंडेशन के लिए 100 करोड़ रुपए देने का प्रावधान कर दिया था | तब प्रतिपक्ष ने भारी हंगामा किया और तब फॉउंडेशन ने पिछले दरवाजे का इस्तेमाल कर कह दिया कि सरकार स्वयं इस धनराशि को उनके बताए कार्यों पर खर्च कर दे | लेकिन जब मनमोहन सिंह प्रधान मंत्री बने , तो विभिन्न मंत्रालयों और पब्लिक सेक्टर संस्थानों  से सीधे फॉउंडेशन को ही हर साल करोड़ों रुपया दिया जाता रहा | पराकाष्ठा यह रही है कि विदेशी संस्थाओं के अलावा चीन सरकार से भी बड़ी रकम फॉउंडेशन के लिए ले ली गई | मनमोहन राज में तो कोई सरकारी मंत्रालय या एजेंसी विदेशी फंडिंग पर उंगली नहीं उठा सके | लेकिन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार आने पर जब एन जी ओ के पंजीकरण वाले सैकड़ों संगठनों की जांच पड़ताल हुई और नियमों के उल्लंघन एवं विदेशी फंडिंग के दुरुपयोग के मामले सामने आए , तो 2006 से 2009 के बीच  चीन से मिले चंदे सहित राजीव गाँधी फॉउंडेशन भी कटघरे में आ गया है | आरोप इसलिए गंभीर हो गया क्योंकि उसी अवधि में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के बीच भी समझौते हुए | मजेदार बात यह है कि मनमोहनसिंह भी इस फॉउंडेशन के ट्रस्टी भी हैं | ऐसा भी नहीं कि सरकार ने हड़बड़ी और आगामी विधान सभा चुनावों के कारण फॉउंडेशन और गाँधी परिवार के सदस्यों पर कार्रवाई शुरु की हो | लगभग दो वर्षों से गृह मंत्रालय , आय कर विभाग , इंफोर्स्मेंट डायरेक्ट्रेट और सी बी आई ऐसे एन जी ओ के कामकाज और विदेशी फंडिंग की गहराई से जांच पड़ताल कर रही थी |

सरकारी रिकार्ड्स केअनुसार मोदी सरकार आने से पहले  विभिन्न श्रेणियों में करीब 40 लाख  एन जी ओ रजिस्टर्ड थे  | इनमें से 33 हजार एन जी ओ को लगभग 13 हजार करोड़ रुपयों का अनुदान मिला था | मजेदार तथ्य यह है कि 2011 के आसपास देश के उद्योग धंधों के लिए आई विदेशी पूंजी 4 अरब डॉलर थी , जबकि एन जी ओ को मिलने वाला अनुदान 3 अरब डॉलर था | ऐसे संगठनों द्वारा विदेशी  धन के दुरुपयोग  की जांच पड़ताल उस समय से सुरक्षा एजेंसियां कर रही थी | निरंतर चलने वाली पड़ताल से ही यह तथ्य सामने आने लगे कि  कुछ संगठनों द्वारा नक्सल प्रभावित इलाकों में आदिवासियों की सहायता के लिए खर्च के दावे – कथित हिसाब किताब गलत साबित हुए | भाजपा सरकार आने के बाद जांच के काम में तेजी आई और सरकार ने करीब 8875 एन जी ओ को विदेशी अनुदान नियामक कानून के तहत विदेशी फंडिंग पर रोक लगा दी | साथ ही 19 हजार फर्जी एन जी ओ की मान्यता रद्द कर दी | बताया जाता है कि लगभग 42 हजार एन जी ओ के कामकाज की समीक्षा पड़ताल हो रही है | गृह मंत्रालय ने यह आदेश भी दिया है कि भविष्य में दस विदेशी संगठनों के अनुदान भारत आने पर उसकी जानकारी सरकार को दी जाए |

 गाँधी परिवार के सदस्यों को सत्ता के लम्बे अनुभव रहे हैं , फिर भी पहले हेराल्ड अख़बार के लिए यंग इंडियन  निजी कंपनी बनवाकर क़ानूनी लड़ाई में उलझ गए हैं | यह भी तथ्य है कि हेराल्ड अख़बार के नाम पर कई राज्यों में रियायती दरों पर सरकारी जमीन लेकर कई बिल्डिंग बनी हुई हैं और वहां अख़बार नहीं निकलता और बिल्डिंग व्यवसायिक कंपनियों को किराए पर दी हुई हैं | यह मामला अदालत ही तय करेगा | लेकिन फॉउंडेशन के लिए विदेशी फंडिंग का मामला गंभीर आपराधिक नियम कानूनों में फंसने वाला है | इस तरह के कार्य निश्चित रूप से समाज सेवा की आड़ में नियमों के विरुद्ध धनार्जन और दुरुपयोग कहे जाएंगे |  यह भी तथ्य है कि चीन , पाकिस्तान ही नहीं कुछ अन्य देशों की संस्थाएं , एजेंसियां , कंपनियां भारत की आर्थिक राजनीतिक , सामाजिक सफलताओं में बाधाएं डालने के लिए सदैव    सक्रिय रही हैं | वे भारत में साम्प्रदायिक और आतंकवादी तत्वों को किसी न किसी रुप में सहायता देकर कठपुतली की तरह इस्तेमाल करती हैं |   इसलिए  यह एक पार्टी , संस्था  और नेताओं की बात नहीं है | समाज सेवा , धर्म संस्कृति के नाम पर कई संस्थाएं , एन जी ओ इस तरह के गैर क़ानूनी गतिविधियों में संलग्न हैं | यह पाखंड नहीं तो क्या कहा जाएगा ?  कश्मीर से केरल या पूर्वोत्तर से गोवा तक ऐसे मामले सामने आए हैं | इन संस्थानों से जुड़े लोग स्वतंत्रता के नाम पर स्वछंदता अपना रहे हैं | गैर क़ानूनी फंडिंग के अलावा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से चुनी हुई सरकार के विरुद्ध अनर्गल आरोपबाजी , आंदोलन एवं गतिविधियों को बढ़ा रहे हैं | इसलिए सरकार को भी अपनी जांच पड़ताल और कार्रवाई में तेजी लाकर अदालत से निर्णय करवाना चाहिए |

( लेखक आई टी वी नेटवर्क इण्डिया न्यूज़ और डैणक आज समाज के सम्पादकीय निदेशक हैं )

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।