

असमय का अंधेरा…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
अंधेरे से किसी को
भला क्या एतराज हो सकता है…
रात लिखी ही है
अंधेरे के नाम
जैसे सुबह, दोपहर, शाम
दिन के नाम…
पर बहुत कचोटता है
यह असमय का
दिन का अंधेरा।
इस कविता के भाव कम शब्दों में और गागर में सागर भरने वाले हैं। जीवन का पूरा दर्शन इसमें समाया हुआ है। इस कविता के शीर्षक को ही अपने पहले काव्य संग्रह का शीर्षक बनाकर सुरेश गुप्ता ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया है। अर्चना और मनु को समर्पित इस काव्य संग्रह में 89 पन्नों में 67 कविताएं समाई हैं। ज्यादातर कविताएं छोटी और कुछ बड़ी भी हैं। छोटी कविताएं मन को छूने वाली है और बड़ी कविताएं भी संतुष्टि देने वाली हैं। जैसा कि ध्रुव शुक्ल जी ने पुस्तक और कवि के बारे में अपने भाव प्रकट किए हैं कि नौकरी से निवृत्ति के कई वर्ष बाद सुरेश की इन कविताओं को पढ़ने का अवसर आया उनके मन में भी प्रकाशन का सहज उत्साह जगा और अब उनका कविता संग्रह पाठकों को निमंत्रित कर रहा है। वास्तव में सुरेश गुप्ता जी जनसंपर्क विभाग में लंबे समय तक कार्य करते हुए सभी की नजर में कड़क मिजाज अफसर की छवि ही बनाए रहे। निश्चित तौर से कड़क मिजाज के पीछे कोमल हृदय की अनुभूति भी सभी ने की होगी। पर यह शायद ही कोई जानता हो कि उनके कोमल हृदय में एक हुनरमंद कवि भी बसता है।
जैसा कि अपनी बात रखते हुए सुरेश गुप्ता जी लिखते हैं कि इसमें प्रकाशित कविताएं पिछले चार दशक में मेरे मन के भाव हैं। भाव भी जो एक जनसंपर्क अधिकारी बतौर गाहे बगाहे नोटपेड के हासिये या पीछे के पृष्ठ पर लिखे थे। वर्ष 2023 में सेवानिवृत्ति नजदीक आते इन नोटपेडों के विनष्टीकरण के दौरान इन सर्वथा विस्मृत भावों पर ध्यान गया। उन्हें संकलित करने के दौरान कार्यालय में वरिष्ठ कवि-पत्रकार संपादक श्री सुधीर सक्सेना जब आए तो उन्होंने हठात कहा- “अच्छा तो आप कविता भी करते हैं, यह तो हमें पता ही नहीं था”। सुधीर भाई का यह कथन इस संग्रह के प्रकाशन की पृष्ठभूमि का बायस बना और है। वह यह भी स्पष्ट करते हैं कि इसमें प्रकाशित कविताएं पिछले चार दशक में मेरे मन के भाव हैं। और यह अनुरोध भी करते हैं कि अब जब यह संग्रह प्रकाशित हो रहा है तो बस इतना ही कि समय हो तो इसे पढ़िएगा जरूर। तो सुरेश गुप्ता जी की बात को आगे बढ़ाते हुए मैं यह भरोसा दिला सकता हूं कि उनके अनुरोध पर ही सही जो भी इस काव्य संग्रह को पढ़ेगा, उसे बार-बार उनकी कविताओं के भावों को पढ़ने का मन जरूर करेगा।
काव्य संग्रह में ‘उसकी बात ही कुछ और थी’ (मनोज पाठक के लिए) या महेंद्र का ना होना… जैसी कविताएं दोस्तों के प्रति उनके भावों की अंजलि बनकर प्रेम और प्रेरणा से भर देती हैं। उनका बचपन जहां बीता वह खिलचीपुर भी कविता बन पाठकों के मन मस्तिष्क पर अपनी मनोरम स्थाई छवि अंकित करता है। ‘बचपन’ ‘खिलचीपुर अब वैसा तो नहीं’ और ‘गाड़गंगा 1-2’ कविताएं कवि के मन को बचपन में और खिलचीपुर ले जाती हैं। ‘मां’, ‘पिता की कुर्सी’ और ‘पिता का आईना’ कविताएं कवि के भावों और सोच का समृद्ध प्रतिबिंब हैं।
अब ‘रास्ता’ शीर्षक कि इस कविता को ही देख लीजिए, ‘कुछ पा लिया, कुछ छूट गया, जो छूटा उसमें, वह रास्ता भी रहा, जो तुम तक जाता था।’
और ‘जगह’ शीर्षक से यह कविता ‘बच्चे ने कागज की नाव में, कागज के पेड़ और पहाड़ रख, मारकर फूंक, तैराया नाव को पानी में, तो धरती पर न सही, पानी में बना दी, हवा, पेड़ और पानी के लिए जगह।’
छोटी-छोटी है दो कविताएं वास्तव में सुरेश गुप्ता जी की वृहद सोच, सरोकार और भावों का रेखांकन करती हैं। और इसी तरह उनका पूरा काव्य संग्रह पाठक को अलग-अलग आयाम पर विस्तार देता है। काव्य संग्रह की हर कविता अपने आप में कुछ कहती है और विशेष बात यह है कि पाठक भी उसे बराबरी से महसूस करता है।
तो सुरेश गुप्ता का यह पहला काव्य संग्रह ‘असमय का अंधेरा’ उन्हें कवि के रूप में नई पहचान दे रहा है। इसमें उनका दीर्घकालिक अनुभव और भावों की परिपक्वता एक साथ नजर आते हैं। नोटपेड पर लिखे अलग-अलग समय में अलग-अलग विषय पर उनके भाव पाठक को भी एकाकार कर भावनाओं से भर देते हैं। तो जरूर सुरेश गुप्ता के काव्य संग्रह ‘असमय का अंधेरा’ को पढ़कर ही अपनी जिज्ञासा की पूर्ति कर संतुष्टि पाई जा सकती है।