एक त्रासदी का घृणित सच है “कश्मीर फाइल्स”, विरोध किस बात का ?

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The Kashmir Files
क्या आजाद भारत के कश्मीर में कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार को सामने लाने से परहेज करना चाहिए? क्या जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाने पर हुई राजनैतिक खेमेबाजी जैसी स्थितियां फिल्म “कश्मीर फाइल्स” को लेकर भी होना चाहिए? यह सच्चाई यदि तीस साल बाद फिल्म के जरिए सबके सामने आ रही है, तो विरोध किस बात का? देश की राजनीति का यह दुःखद पहलू है कि जब अतीत के ऐतिहासिक पल फिल्मों के जरिए सामने आते हैं तो सांप्रदायिक और राजनैतिक नजरिए भी सामने आने लगते हैं।
और राजनीति तो अलग-अलग खेमों में बंटी नजर आने ही लगती है। मुद्दे की बात यह है कि क्या सच्चाई छिपाकर सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश की जा सकती है? और फिर क्या सच्चाई कभी छिप पाई है? क्या दिल्ली सल्तनत काल और मुगल काल में बहुसंख्यक प्रजा पर हुए अत्याचारों को कोई झुठला सकता है? क्या अंग्रेजों का समय हिंदू-मुसलमानों दोनों के लिए ही जुल्मों से भरा था, यह सच्चाई सब कबूल नहीं करते? और क्या यह अंग्रेजों की “फूट डालो और राज करो” और हिंदू-मुस्लिम को बांटो और राज करो की नीति का ही खामियाजा आज का हिंदुस्तान नहीं भुगत रहा है कि सांप्रदायिक सौहार्द जैसे शब्द बेवजह ही अस्तित्व में बने हुए हैं?
यह सारे सवाल यूं ही जेहन में नहीं आ रहे हैं। इसके उलट सवाल भी लोगों के जेहन में आकार ले रहे होंगे। इसका मतलब ही यही है कि देश को मतदाताओं के नजरिए से सोच के अलग-अलग खेमों में बांट दिया गया है? और मतदाताओं को यह समझ में आने के बाद भी वह सच को एक नजर से देखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।
अब अगर भोपाल में चार आतंकी किसी समुदाय विशेष से पकड़े गए, तब यह राजनैतिक दलों में अलग-अलग बयानबाजी करने का विषय क्यों नहीं बना? क्योंकि आतंकी राष्ट्रद्रोही और अपराधी हैं, यह सच सबने स्वीकार कर लिया है। और यह सब समझ चुके हैं कि इस मुद्दे पर समर्थन-विरोध जैसी बयानबाजी की कोई गुंजाइश नहीं है। तो फिर “कश्मीर फाइल्स” या अतीत की घटनाओं के सच से कैसा परहेज है? अगर फिल्म को लेकर अलग-अलग बयानबाजी नहीं होती तो शायद यह फिल्म पांचवें दिन सर्वाधिक कमाई का रिकार्ड भी नहीं बना पाती। और फिल्म बनाने वालों का महिमामंडन भी नहीं होता। या फिर फिल्म को टैक्स फ्री करने में सोच विशेष का नजरिया नजर नहीं आता। क्योंकि इससे पहले भी कला फिल्मों और सामाजिक मुद्दों पर बनी फिल्मों को टैक्स फ्री किया गया, तब उन्हें किसी अलग नजरिए से नहीं देखा गया।
अब यह इक्कीसवीं सदी का भारत है। और यह सदी भारत की है। ऐसे में हर भारतवासी को सभी सच स्वीकारते हुए राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत हो “एक भारत-श्रेष्ठ भारत” के निर्माण में सहभागी हो गर्व की अनुभूति करनी चाहिए। त्रासदी के घृणित सच “कश्मीर फाइल्स” फिल्म को देखने और सच को स्वीकारने से गुरेज भी नहीं करना चाहिए। आतंकियों की काली करतूत और खूनी खेल न स्वीकार करने योग्य है और न माफी के काबिल है, पर यह “घृणित सच” दफन भी नहीं किया जा सकता। इससे सीख लेकर सोच को बेहतर जरूर किया जा सकता है।