संकल्प, संस्कार, समर्पण और सत्ता सुख से त्याग के धनी रघु की सहजता, सरलता, स्पष्टवादिता प्रेरणादायी है…

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संकल्प, संस्कार, समर्पण और सत्ता सुख से त्याग के धनी रघु की सहजता, सरलता, स्पष्टवादिता प्रेरणादायी है...
राष्ट्र काज और रामकाज में जीवन को आहूत करना किसी साधारण व्यक्ति के वश की बात नहीं है। जो संकल्प लिया, उस पर अडिग रहने का साहस साधारण व्यक्तित्व नहीं कर सकता। संस्कारों के संग जीवन जीने की क्षमता हर किसी में नहीं होती। पार्टी के प्रति समर्पण कर मिसाल बनना एक असाधारण उपलब्धि सहजता से कोई नहीं पा सकता। अवसर मिलने पर भी सत्ता सुख से दूर रहने की हिम्मत करने वाला कोई बिरला ही हो सकता है।
सहजता, सरलता और स्पष्टवादिता को चरितार्थ करने का काम आम इंसान नहीं कर सकता है। यह सब कुछ कर दिखाया भाजपा नेता रघुनंदन शर्मा ने। जिनका जीवन ही प्रमाण है। 75 वर्ष की आयु पूरी करने पर अमृत महोत्सव में कौन-कौन जुटा, किस-किसने तारीफ की, किस-किसने सम्मान किया और किसने क्या उपहार दिया, यह सब बातें रघुनंदन शर्मा के लिए मायने नहीं रखतीं…मायने रखता है अमृत महोत्सव कार्यक्रम के लिए समय निकालकर उपस्थित हुए अपनों के प्रेम से गौरवान्वित होने की अनुभूति।
जिसे बयां किए बिना वह नहीं रहे। 11 लाख की जो सम्मान राशि उपहार में मिली, उसे चार सामाजिक-धार्मिक संगठनों को सौंपकर गौरव अगर कोई महसूस कर सकता है, तो वह रघुनंदन शर्मा ही हैं। खरी-खरी बात कोई मंच से कहने का काम निडरता से कर सकता है, तो वह रघुनंदन शर्मा ही हैं। अमृत महोत्सव में भी खरी-खरी कहने से वह नहीं चूके। पर यदि कार्यकर्ता उस पर अमल करें, तो पार्टी की तरफ उंगली उठाने का दुस्साहस कोई नहीं कर सकता।
रघुनंदन शर्मा ने भले ही अपने बारे में अनुभव साझा किए हों, लेकिन संदेश भाजपा कार्यकर्ताओं को भी है और राष्ट्रहित चाहने वाले राष्ट्रप्रेमियों को भी है। रघुनंदन शर्मा ने कहा कि विधायक बने, तीन साल रहे फिर जनता पार्टी की सरकार चली गई। तब कुशाभाऊ ठाकरे ने नसीहत दी कि सत्ता सुख तो हर कोई हासिल करना चाहता है, तुम आदिवासियों-पार्टी को समर्पित जीवन जियो। और जल लेकर संकल्प कर लिया और फिर कभी विधानसभा चुनाव नहीं लड़े।
पार्टी की सरकार है, शिवराज ने कहा कि कहीं कुछ पद पर बैठ जाएं तो इंकार कर दिया कि निगम-मंडल में बैठने की कोई इच्छा नहीं है। विधायक का चुनाव लड़ने के लिए कहा, तब भी मना कर दिया कि सत्ता सुख की चाह नहीं है। संगठन को जिया, कार्यकर्ताओं को गढ़ा और जनसंघ-भारतीय जनता पार्टी को मजबूत किया। और अब 75 वर्ष पूरा होने पर रामकाज में जुट गए। तब भी प्रदेश अध्यक्ष को कह दिया कि अगर कोई उपयोगिता लगे, तो बेहिचक बुला लेना…बाकी समय रामकाज के लिए है। राम में ही लीन होना है, तो रामकाज करते हुए ही होऊंं।
यह भी कार्यकर्ताओं को संदेश है कि किसी ने धन देने की कोशिश भी की, तब भी नहीं लिया। वरना दो-तीन होटल बनवा लेता। लेकिन ऐसे लोगों को देखा, जो अंतिम दिन तक रजिस्ट्री कराते रहे लेकिन कुछ भी साथ लेकर नहीं जा पाए। और बाद में वही संपत्ति घर में कलह कराती रही। तो सभी कार्यकर्ता गंभीरता से चिंतन-मनन कर लें, जो सत्ता सुख के पीछे पड़े रहते हैं और उसके लिए पार्टी बदलने को भी हर समय तैयार रहते हैं। वह कार्यकर्ता भी अपनी गिरेबान में झांक लें, जिनके जीवन का लक्ष्य ही होटल बनाकर संपन्न बनना है।
यह भी सोच लें कि साथ कुछ नहीं जाना है। यह बात कोई साधारण कार्यकर्ता क्या, सत्ता में पूरा जीवन गुजारने वाला नेता भी नहीं कह सकता कि राष्ट्रकाज और रामकाज को जीवन समर्पित है। रघुनंदन शर्मा कहते हैं कि राष्ट्र काज के लिए पुत्र और परिवार का बलिदान करना पड़े तो भी कर दूंगा। सत्ता और धनलोलुप कार्यकर्ता अगर सिर्फ इस बात को रोज अपनी जुबान पर लाने की हिम्मत भी कर लें, तब भी राष्ट्रप्रेम के प्रति समर्पण का भाव पैदा हो जाएगा।
रघुनंदन शर्मा की स्पष्टवादिता मध्यप्रदेश और पूरे देश ने देखी है। मैंने भी इसका प्रत्यक्ष अनुभव किया है और उनके शब्दों को समय-समय पर लिखा है। जिससे सत्ता के शीर्ष तक हलचल हो जाए, वह सच बात कहने में रघुनंदन शर्मा कभी पीछे नहीं रहे। मैंने उनके व्यक्तित्व की सहजता-सरलता देखी है कि मोदी हों या फिर प्रदेश के किसी जिले का कोई छोटा कार्यकर्ता, रघुनंदन शर्मा के चेहरे के भाव दोनों जगह ही सम रहे। निश्चित तौर से संघ की विचारधारा को आत्मसात कर उसके मुताबिक जीवन को जीने की प्रेरणा भाजपा के कार्यकर्ता रघुनंदन शर्मा से ही ग्रहण कर सकते हैं सत्ता में पदों को जी रहे और पार्टी के छोटे से छोटे यानि सभी कार्यकर्ता। तो समग्र रूप से राष्ट्र और राम को समर्पित जीवन जीने की सीख हर नागरिक रघुनंदन शर्मा के जीवन से ले सकता है।