
योडलिंग के सम्राट: खंडवा से बॉम्बे तक किशोर कुमार का अद्भुत सफर
(किशोर कुमार पुण्यतिथि विशेष 13 अक्टूबर 2025)
– राजेश जयंत
आवाज़ जो आज भी गूंजती है…
वो सिर्फ गायक नहीं थे, वो एक युग थे। वो सुरों के जादूगर, मस्ती के बादशाह, और भावनाओं के बेमिसाल शिल्पकार थे। 13 अक्टूबर 1987 वही दिन जब संगीत का पंछी खामोश हो गया, लेकिन उसकी गूंज आज भी हर दिल में बसती है। किशोर कुमार- एक नाम, जो हर मूड में, हर दौर में, हर दिल की धड़कन में बसता है।

**खंडवा से बॉम्बे तक: एक सपने की उड़ान**
4 अगस्त 1929, मध्यप्रदेश के खंडवा में जन्मे ‘आभास कुमार गांगुली’ को कौन जानता था कि यही लड़का एक दिन भारत की आत्मा की आवाज़ बनेगा। बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्मे किशोर अपने तीनों भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। बड़े भाई अशोक कुमार पहले से ही सिनेमा के सितारे थे, और उन्हीं की राह पर चलते हुए आभास बन गए किशोर कुमार- एक ऐसा नाम जिसने फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया।

**गायकी की कोई तालीम नहीं- बस जुनून था**
किशोर दा ने कभी संगीत की औपचारिक शिक्षा नहीं ली। लेकिन जब वो गाते थे, तो लगता था जैसे खुद संगीत उनके भीतर से बह रहा हो। 1948 में खेमचंद प्रकाश ने उन्हें फिल्म “जिद्दी” में पहला मौका दिया- देव आनंद पर फिल्माया गया वो गीत आज भी इतिहास का हिस्सा है। लेकिन असली पहचान उन्हें मिली उनके सिग्नेचर “योडलिंग” स्टाइल से एक ऐसा अंदाज़ जिसने उन्हें बाकी सब से अलग बना दिया।

**चलती का नाम गाड़ी: टैक्स बचाने की योजना से बनी क्लासिक कॉमेडी**
किशोर कुमार का हास्यबोध बेमिसाल था। कहते हैं, उन्होंने फिल्म “चलती का नाम गाड़ी” सिर्फ टैक्स बचाने के लिए बनाई थी- सोचा अगर फिल्म फ्लॉप हुई तो नुकसान में टैक्स कम लगेगा। लेकिन किस्मत देखिए, यह फिल्म हिट्स की गाड़ी बन गई! इस क्लासिक में अपने भाइयों अशोक और अनूप कुमार के साथ उनकी कॉमिक टाइमिंग आज भी बेमिसाल मानी जाती है।
*“हे तलवार, दे दे मेरे आठ हजार…”- एक किस्सा जो बन गया किस्सा-ए-किशोर**
किशोर दा के किस्से उतने ही मशहूर हैं जितने उनके गाने। जब एक निर्माता ने मेहनताना नहीं दिया, तो हर सुबह वो उसकी कोठी के बाहर खड़े होकर असली तलवार लेकर गाते- “हे तलवार, दे दे मेरे आठ हजार…” यह था उनका विरोध भी, और मनोरंजन भी। किशोर दा के जीवन में कला और मस्ती का यही अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
**आराधना’ ने बदल दी तकदीर**
1968 की आराधना फिल्म ने किशोर दा को शिखर पर पहुंचा दिया। एस.डी. बर्मन की बीमारी के चलते जब आर.डी. बर्मन ने किशोर को मौका दिया, तो उनके गाए “मेरे सपनों की रानी” और “रूप तेरा मस्ताना” जैसे गीतों ने उन्हें अमर कर दिया। इस फिल्म ने मोहम्मद रफी और किशोर कुमार के युग को एक नया मोड़ दिया, अब किशोर दा हर हीरो की आवाज़ बन चुके थे।
**हाफ टिकट’ में खुद से डुएट गाने वाला इंसान*”
किशोर दा के अंदर एक पूरा थिएटर बसता था। “आके सीधी लगी दिल पे जैसे कटरिया” गीत में उन्होंने खुद ही पुरुष और महिला दोनों आवाज़ों में गाया। किसी को यकीन ही नहीं हुआ कि पूरा गाना एक ही व्यक्ति ने गाया है! यह केवल गाना नहीं, बल्कि मनोरंजन की कला का जादू था।
**चार शादियां, चार कहानियां- और एक अधूरी प्रेमगाथा मधुबाला के नाम**
किशोर कुमार की निजी ज़िंदगी भी किसी फिल्म से कम नहीं रही।
पहली शादी अभिनेत्री रूमा घोष से हुई- दोनों के बीच मतभेद बढ़े और रिश्ता टूट गया।
फिर उनकी ज़िंदगी में आईं मधुबाला, जो पहले से ही दिल की बीमारी से जूझ रहीं थीं। “झुमरू” और “हाफ टिकट” के दौरान दोनों का प्यार परवान चढ़ा और उन्होंने 1960 में शादी कर ली। लेकिन 1969 में मधुबाला का निधन हो गया- वह किशोर दा के जीवन का सबसे दर्दनाक अध्याय था।
इसके बाद उन्होंने अभिनेत्री योगिता बाली और फिर लीना चंद्रावरकर से शादी की। लीना के साथ उनका रिश्ता उनके अंतिम सांसों तक कायम रहा।
**2678 गाने, 88 फिल्में — और अनगिनत दिलों में जगह**
किशोर कुमार ने 110 से अधिक संगीतकारों के साथ करीब 2678 गाने गाए। सिर्फ आर.डी. बर्मन के साथ उन्होंने 563 अमर गीत रिकॉर्ड किए। न्यू दिल्ली, मुसाफिर, दूर का राही, मिस्टर एक्स इन बॉम्बे, बढ़ती का नाम दाढ़ी जैसी फिल्मों में उन्होंने अपने अभिनय से भी दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया।

**एपिलॉग: अमर हैं किशोर दा**
किशोर कुमार चले गए, लेकिन उनकी आवाज़ आज भी ज़िंदा है- हर रेडियो, हर याद, हर दिल में।
वो जब गाते थे, तो लगता था जैसे ज़िंदगी खुद सुरों में ढल गई हो- “ज़िंदगी एक सफर है सुहाना…”
और सच में, किशोर दा ने इसे जी कर दिखा दिया।
किशोर कुमार सिर्फ एक नाम नहीं- वो एक एहसास हैं, जो हर धुन में, हर मुस्कान में, हर दिल की धड़कन में गूंजता रहेगा।





