पूरे प्रदेश को अपनाना चाहिए इंदौर मेयर का ‘नो कार डे’ मंत्र …
इंदौर महापौर पुष्यमित्र भार्गव की ‘नो कार डे’ अपील को इंदौरवासियों का पूरा आशीर्वाद मिला है। इन दिनों प्रदेश में भले ही राजनैतिक दलों की जनआशीर्वाद और जनआक्रोश यात्राएं चल रही हों। पर इंदौर में 22 सितंबर 2023 को मेयर के ‘नो कार डे’ मंत्र को भाजपा, कांग्रेस, न्यायालय, प्रशासन, पुलिस, नगर निगम, उद्योगपतियों और जनसामान्य सभी ने कार को इस दिन बेकार साबित कर पूरा आशीर्वाद दिया। इंदौर की गली से लेकर मुख्यमार्गों तक सभी जगह से आक्रोश पूरी तरह से नदारद था। मेयर पुष्यमित्र भार्गव स्कूटी से निकल पड़े, तो कलेक्टर इलैया राजा टी सिटी बस में सवार होकर कार्यालय पहुंच गए और पुलिस कमिश्नर मकरंद देउस्कर बैग टांगकर साइकिल से ही दफ्तर पहुंच गए। इन सबसे ज्यादा योगदान इंदौर उच्च न्यायालय और जिला न्यायालय के न्यायाधीशों ने दिया, जो बिना दिखावे के दोपहिया वाहनों से अपने दफ्तर पहुंचकर अपने कामकाज में व्यस्त हो गए। और सबसे बड़ा योगदान जनसामान्य का है, जिनके बिना ‘नो कार डे’ की सफलता असंभव थी। वास्तव में इंदौर के निवासी हर सकारात्मक बदलाव को इसी तरह अपना आशीर्वाद देते हैं। इसी वजह से इंदौर जल स्वच्छता, थल स्वच्छता और नभ स्वच्छता में अपना परचम फहरा रहा है। और अब ट्रैफिक की समस्याओं से जल्दी मुक्त होने का मंत्र इंदौरवासियों के हाथ लग गया है। तो लोक परिवहन की पूर्ण उपयोगिता का रास्ता भी समझ में आ गया है। और इससे स्वच्छ प्रदूषणमुक्त वायु यह उद्घोष कर रही है कि यदि प्रिय इंदौरवासियों तुम इस ‘नो कार डे’ मंत्र को सप्ताह में एक बार भी जपना शुरू कर दो, तो तुम्हारी सेहत का आशीर्वाद हम नभ की सौगंध खाकर देने को राजी हैं। वास्तव में इंदौर की तरह प्रदेश की हर निगम महापौर की सोच होती तो मध्यप्रदेश का कोई शहर न बचता, जहां आज इंदौर की तरह ‘नो कार डे’ मंत्र का उच्चारण न सुनाई देता। खैर हर मेयर पुष्यमित्र भार्गव नहीं हो सकता, पर देख-देखकर भी बहुत कुछ ग्रहण किया जा सकता है। जब प्रदेश में सर्वाधिक करीब पांच लाख कारों वाला शहर और प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर एक अपील पर कारमुक्त सड़कों वाला शहर बन सकता है, तो प्रदेश के दूसरे बड़े-छोटे शहर भी ऐसा करके दिखा सकते हैं। और साल में एक बार नहीं, बल्कि सप्ताह में एक बार ‘नो कार डे’ मंत्र का जाप पूरा मध्यप्रदेश कर सकता है। तब फिर बाकी फायदों के अलावा लोन लेकर कार खरीदने की मानसिकता से मुक्त होने की कल्पना भी साकार हो सकेगी। और आर्थिक समृद्धि के जरिए उन जरुरतमंदों की मदद के रास्ते भी खुल जाएंगे, जो मजबूरी में कर्ज लेकर आज परिवार सहित मौत के मुंह में समा रहे हैं। शायद ‘नो कार डे’ के नाम पर मैं भावनाओं में बह गया। चलो वापस ट्रैक पर आता हूं। तो वास्तव में खुली आंखों को इंदौर में ‘नो कार डे’ की सफलता हद से ज्यादा सुकून दे रही है। और ऐसा सुकून पूरे प्रदेश में देखने को आंखें लालायित हैं।
खैर थोड़ा ‘नो कार डे’ के अतीत पर नजर डाल लेते हैं। तो ऐसी शुरुआत सबसे पहले 1973 में तेल संकट के समय पैदा हुई थी। वहीं पर अक्टूबर 1994 में सबसे पहले सार्वजनिक तौर पर एरिक ब्रिटन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय एक्सेसिबल सिटीज सम्मेलन टोलेडो (स्पेन) में अपने भाषण में यह अपील की गई थी। फिर इस विचार का यूरोपीय देशों में विस्तार हुआ और वर्ष 2000 में यूरोपीय आयोग द्वारा यूरोप-व्यापी पहल के रूप में इसे स्थापित किया गया था और इसी साल इसके लिए 22 सितंबर का दिन तय हो गया था। फिर ‘कार फ्री डे’ के रूप में इस विचार का वैश्वीकरण हो गया। 1996 में एक डच एक्शन ग्रुप, ‘पिप्पी ऑटोलोज़ ज़ोंडाग’, का ‘कार फ्री डे’ राष्ट्रीय अभियान बहुत चर्चित रहा। अब दुनिया के 1500 शहरों में दस करोड़ लोग ‘नो कार डे’ के मंत्र पर अमल करते हैं। जकार्ता और तेहरान जैसे कुछ शहरों में साप्ताहिक ‘नो कार डे’ होते हैं। चीन में इस विचार को खास तवज्जो दी गई है। इजरायल में आधिकारिक रूप से ‘कार फ्री डे’ नहीं है, पर ‘योम किप्पुर’ के पालन में हर साल इजरायल में यातायात (आपातकालीन वाहनों को छोड़कर) 24 घंटे से अधिक के लिए बंद कर दिया जाता है। इसमें गाड़ी और सार्वजनिक परिवहन (बस, ट्रेन, टैक्सी, हवाई जहाज आदि) सहित सभी मोटर चालित वाहन शामिल हैं। हिलोनी स्ट्रीम और अन्य धर्मों के साइकिल चालक इसका पूरा लाभ उठाते हैं और सड़कें (धार्मिक इलाकों को छोड़कर) वास्तव में साइकिल मार्ग बन जाती हैं। इजरायल में उस दिन नाइट्रोजन ऑक्साइड द्वारा मापा गया वायु प्रदूषण 99 प्रतिशत कम पाया जाता है। है न आश्चर्य की बात। इसीलिए पूरी दुनिया अब ‘नो कार डे’ या ‘कार फ्री डे’ के पीछे भाग रही है।
तो ‘नो कार डे’ यानि ‘गाड़ी-मुक्त दिवस’ पर लोगों को गाड़ियों के अलावा अन्य माध्यमों से यात्रा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। यह विचार कहता है कि पूरी तरह से कार का उपयोग बंद नहीं कर सकते तो इतना अवश्य करो कि कम से कम कारें सड़कों पर दिखाई दें। इंदौर महापौर पुष्यमित्र भार्गव की भी यही सोच थी, जिसे आशातीत सफलता मिली है और इंदौर के हर नागरिक का, हर राजनेता, प्रशासक, न्यायाधीश, उद्योगपति का पूरा समर्थन मिला है। वास्तव में यह ‘नो कार डे’ अभियान पूरे मध्यप्रदेश में अपनाया जाता, तो इतिहास बन जाता। पर शुरूआत इंदौर से ही सही, पर ऐसा एक साप्ताहिक दिवस या मासिक दिवस तय कर मध्यप्रदेश को एक मिसाल पेश करना चाहिए। पूरे प्रदेश को इंदौर मेयर का ‘नो कार डे’ मंत्र अपनाना ही चाहिए…।