भोपाल में प्रातःकाल भ्रमण में सप्ताह के मेरे साथी हैं प्रोफ़ेसर उमेश जो मेरे और प्रमोद गुप्ता जी के साझे मित्र हैं और उनकी संगत में ही ये मुझे प्रातः भ्रमण के लिए मिल पाये हैं । उमेश जी के साथ सप्ताह में एक या दो दिन हम भोपाल के विभिन्न स्थानों में घूमते हैं और इस दौरान ही प्रोफ़ेसर साहब के साथ विभिन्न विषयों पर वार्ता होती है जो कई बार गपशप का आधार बन जाती है । कल सुबह जब हम ऐसे ही भ्रमण में साथ थे तो बंसल चौराहे से बावड़िया की ओर जाने वाले रास्ते पर चलते हुए उमेश बोले “ कभी ये सड़क पतली गली सी सुनसान पड़ी रहती थी और आज नयी बसावट की सबसे खूबसूरत सड़क है , इसके आसपास की ज़मीनों की क़ीमतों में ऐसा इजाफ़ा हुआ है कि पूछो न , लगता है ज़मीन का भी भाग्य होता है । उमेश कहने लगे भोपाल की कई लोकेशन ऐसी हैं जहाँ पहले बड़ा खुला खुला सा था , लोगों ने बड़े शौक़ से मकान बनवाये , बाद में वहीं सामने इतने अतिक्रमण हो गए और ऐसे ऐसे लोग बस गए , कि अब किराए से भी मकान उठने में दिक़्क़त आने लगी है । मैंने कहा आप सही कह रहे हो , जब मैं इंदौर पदस्थ हुआ तो कटनी का एक परिवार जो हमारा पड़ोसी था , हमसे मिलने आया । पराये शहर में जब कोई अपना मिल जाए तो निश्चित ही एक अलग ख़ुशी मिलती है , हम सब बड़े प्यार से मिले । बातों बातों में उन्होंने कहा कि वे साकेत के आसपास मकान ढूँढ रहे हैं । कारण पूछने पर कहने लगे बच्चों की शादी करनी है और सिंधी कालोनी में गलियाँ इतनी सकरीं हैं कि बड़ी गाड़ियाँ आ नहीं पाती , इसलिए अच्छे रिश्ते नहीं आ पा रहे हैं ।
मुझे याद आया कि ज़मीनों के साथ साथ शहर का भी शायद भाग्य होता है । इंदौर में ही पदस्थापना के दौरान जब सरकारी कामकाज के सिलसिले में बुरहानपुर का दौरा लगा तो मुझे कुछ ऐसा ही भान हुआ था ।
बुरहानपुर जिसकी भव्यता के प्रसार का सिरा महाभारत कालीन यदुवंशियों तक जाता है और मध्य काल में मुग़ल भी ये जान गए थे कि दक्षिण के सैन्य अभियान का द्वार यही है । इसी कारण जहांगीर से ले कर औरंगजेब तक मुग़ल शहजादे यहाँ गवर्नर नियुक्त किये जाते थे । कहते हैं शाहजहां और उसकी प्रिय बेगम मुमताज को ये जगह बेहद पसंद थी , और बुरहानपुर में ही “आहुखान” में उसके मृत शरीर को तब तक रखा गया जब तक कि उसके लिए ताजमहल का निर्माण नहीं हो गया । शाहजहां को ये जगह इतनी पसंद थी कि जब उसे यहाँ से हटा कर कांधार का गवर्नर बनाया गया तो उसने नई जगह जाने से इंकार कर दिया , आज भी हममे से कुछ बिगड़ैल अफसर ऐसी हरकतें करते हैं । इन मुग़ल कालीन शासकों के अलावा यहाँ भक्ति काल के प्रसिद्द कवि रहीम भी बीस वर्षों से अधिक रहे । रहीम ने बुरहानपुर के लिए अंडर ग्राउंड वाटर सिस्टम आधारित पेयजल व्यवस्था का प्रबंध किया था जो बुरहानपुर के अलावा ईरान में ही थी और उस पर भी मज़ेदार बात ये कि इस सिस्टम से आज भी बुरहानपुर के लोग पानी पी रहे हैं जबकि ईरान में यह सिस्टम अब ख़राब हो गया है ।
बुरहानपुर की इस प्रसिद्धि की दो वजहें थीं पहली तो यही की स्ट्रेजिक रूप से दक्षिण के अभियान के लिए यही मुफ़ीद जगह थी इसीलिए इसे दक्षिण का द्वार भी कहते हैं , दूसरी ये कि उस समय बंदरगाह सूरत में था और ताप्ती के सहारे पूरा माल बुरहनपुर से सूरत उतरता था , वस्त्र उद्योग के लिए प्रसिद्ध बुरहानपुर उसके अलावा भी अनेक क़िस्मों की जिंसों के व्यापार का प्रमुख केंद्र था । पर समय का चक्र ऐसा घुमा कि क्या कहें । कपड़े के व्यवसाय के लिए प्रसिद्द इसके कारीगरों को इंग्लैंड की मशीन निर्मित वस्त्र प्रणाली ने बहुत चोट पहुचाई । इसके बाद अगला कुठाराघात तब हुआ जब बजाय सूरत के अंग्रेजों ने मुम्बई के बंदरगाह को निर्यात के लिए अधिक उपयुक्त पाया और सूरत से अटूट बंधन में बंधे बुरहानपुर के व्यवसाय की कमर टूट गयी । रेलवे लाइन डालने के बाद जंक्शन चुनने में खंडवा को प्राथमिकता मिली और शनै शनै इन सब कारणों से शासकों की निगाहों का मरकज़ ये शहर बुलंदियों से उतरता चला गया । हालाँकि अब फिर मध्यप्रदेश की सरकार के अनूठे प्रयासों से बुरहानपुर पुनः प्रगति के सोपान तय कर रहा है ।