लाल किले की प्राचीर से जीवंत हुआ ‘विक्रमादित्य’ का गौरव काल …

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लाल किले की प्राचीर से जीवंत हुआ ‘विक्रमादित्य’ का गौरव काल …

कौशल किशोर चतुर्वेदी

जय महाकाल…विक्रम, विक्रम, विक्रम…महानाट्य विक्रमादित्य के मंचन में यह शब्द भारत की राजधानी दिल्ली के लाल किला परिसर में 12 अप्रैल 2025 को गूंजे, तब मंच के सामने दर्शक दीर्घा में पहली पंक्ति में बैठे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के चेहरे पर गर्व की अनुभूति साफ दिख रही थी। इसके अगले ही दृश्य में शक शासक की हार और महाराज विक्रमादित्य की जयकार से मंच गूंज गया। तब महानाट्य का पहली बार दिल्ली लाल किला परिसर में मंचन का साक्षी बने सभी दर्शकों का मस्तक गर्व से ऊंचा था। इनमें उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़, मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल, दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता, केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत भी शामिल थे। महानाट्य के दिल्ली के लाल किला में मंचन से मध्यप्रदेश और मालवा के गौरवशाली इतिहास और सांस्कृतिक विरासत के भारतीय क्षितिज पर विस्तार का नया दौर शुरू हो गया है। इस विस्तार में विक्रमादित्य से प्रेरित होने की मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सोच भी शामिल है। दरअसल उज्जैन की पावन धरती पर 2000 के दशक की शुरुआत की एक अनोखी सांस्कृतिक पहल की शुरूआत “सम्राट विक्रमादित्य महामंचन” के रूप में हुई थी। यह महानाट्य मंचन केवल एक ऐतिहासिक पात्र का स्मरण नहीं था, बल्कि एक ऐसे युग की पुनर्प्रतिष्ठा थी जिसे भारतीय संस्कृति, न्याय, और नीति का प्रतीक माना जाता है। इस मंचन की सबसे रोचक बात यह रही कि इसमें स्वयं डॉ. मोहन यादव ने सम्राट महेन्द्रादित्य (विक्रमादित्य के पिता) की भूमिका को जीवंत किया था। और अब विक्रमादित्य महानाट्य के मंचन से विक्रमादित्य का गौरव काल मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने पर राष्ट्रीय राजधानी से पूरे देश में जीवंत हो उठा है।

नाटक की शुरुआत विक्रम के जन्म पर दरबार में बधाई नृत्य से होती है। तो उसके बाद शकों के आक्रमण और पराधीनता का दृश्य सामने आता है। बाद में विक्रमादित्य का उद्भव और शकों की हार संग विक्रम युग दर्शकों को बांधने में सफल रहता है। नाटक में महाराज विक्रमादित्य की वीरता, न्याय, धार्मिक आस्था, साहित्यिक-सांस्कृतिक वैभव, प्रजा सेवक के रूप में कर्तव्यपरायणता और समाज सुधारक राजा का भाव आदि सभी को बेहतर तरीके से सफलतापूर्वक मंचित किया गया। विक्रमादित्य के समय के संस्कृत की सर्वाधिक लोकप्रिय दो कथा-श्रृंखलाएं हैं वेताल पंचविंशति या बेताल पच्चीसी (“पिशाच की 25 कहानियां”) और सिंहासन-द्वात्रिंशिका (“सिंहासन की 32 कहानियां” जो सिहांसन बत्तीसी के नाम से भी विख्यात हैं)। इन दोनों संदर्भों को भी महानाट्य के जरिए सफलतापूर्वक मंचित किया गया। तो विक्रमादित्य के अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के जरिए 21वीं सदी में केंद्र की मोदी सरकार में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से राम मंदिर निर्माण का जिक्र कर गणतंत्र, राजतंत्र से लोकतंत्र तक ‘विक्रमादित्य भाव’ का संदेश दे दिया गया। तो विक्रमादित्य ने विक्रम संवत का प्रवर्तन 57 ईसापूर्व में शकों को हराने के बाद किया था। उन्होंने उत्तर भारत पर अपना शासन व्यवस्थित किया था। उनके पराक्रम को देखकर ही उन्हें महान सम्राट कहा गया और उनके नाम की उपाधि कुल 14 भारतीय राजाओं को दी गई। विक्रम संवत् की शुरुआत और ‘विक्रमादित्य’ के सिंहासनारोहण के भव्य दृश्य और दरबार में बधाई नृत्य के मंचन के साथ ही महानाट्य की प्रस्तुति संपन्न हुई। वास्तव में महानाट्य का मंचन मन को मोहने वाला रहा।

विक्रमादित्य (शासनकाल 57 ईसा पूर्व – 19 ईस्वी) के साम्राज्य की राजधानी उज्जैन थी। राजा विक्रमादित्य नाम, ‘विक्रम’ और ‘आदित्य’ के समास से बना है जिसका अर्थ ‘पराक्रम का सूर्य’ या ‘सूर्य के समान पराक्रमी’ है। विक्रमादित्य ने नाम के अनुरूप यह चरितार्थ किया है। धन्वन्तरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, खटकरपारा, कालिदास, वेतालभट्ट (बेतालभट्ट), वररुचि और वराहमिहिर उज्जैन में विक्रमादित्य के राज दरबार का अंग थे। यह विक्रमादित्य के “नवरत्न” कहलाने वाले नौ विद्वान थे। कहा जाता है कि नौ रत्नों की परम्परा सम्राट विक्रमादित्य से ही शुरू हुई थी।

तो सम्राट विक्रमादित्य के साहित्य, न्याय दर्शन और सांस्कृतिक मूल्यों को नयी पीढ़ी तक पहुंचाने की दिशा में यह महानाट्य सफल हो। डॉ. मोहन यादव का अपने पुराने सांस्कृतिक अभियान को उत्थान के एक नए सोपान पर ले जाने का संकल्प साकार हो। सम्राट विक्रमादित्य के जीवन और दर्शन पर आधारित यह महानाट्य लाल किले जैसे ऐतिहासिक स्थल पर मंचित होकर राष्ट्रीय गौरव और सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्स्थापित कर सांस्कृतिक उत्थान का नया आयाम स्थापित करे। यह अभियान केवल उज्जैन या मध्यप्रदेश तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे भारत में सांस्कृतिक चेतना की लौ जलाकर भारतीय अस्मिता का उत्सव बने। और लाल किले की प्राचीर से जीवंत हुआ ‘विक्रमादित्य’ का गौरव काल … राष्ट्र और मध्यप्रदेश राज्य में सुशासन के रूप में पुन: जीवंत हो…।