लक्ष्य राष्ट्र को विश्व गुरू बनाने का…

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कौशल किशोर चतुर्वेदी की ख़ास खबर 

बात चाहे राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की हो या फिर विदेश नीति या रक्षा नीति की, मोदी और उनकी सरकार का लक्ष्य एक ही है और वह है भारत का गौरव लौटाना। भारत को महान राष्ट्र और विश्व गुरू के रूप में स्थापित करना। साथ ही वसुधैव कुटुम्बकम के भाव के साथ विश्व में भारत के प्राचीन वर्चस्व को वापस लौटाना। यही मूल भाव था केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कुशाभाऊ ठाकरे जन्म शताब्दी व्याख्यानमाला के तहत राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 विषय पर संबोधन का।
शाह ने यह भी साफ किया कि मोदी सरकार सुनियोजित लक्ष्य के साथ आगे कदम बढ़ाती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर भी यही प्रक्रिया अपनाई गई।
चाहे लक्ष्य ड्रॉप आउट को जीरो पर लाने का हो या फिर वर्ल्ड क्लास शैक्षणिक मंच तैयार करने के लिए 100 संस्थानों में 33 हजार करोड़ के निवेश का हो। परिणाम भी सामने 35 संस्थान ने विश्व रैंकिंग में अपना स्थान बना लिया और यह भरोसा कि भले ही गृह मंत्री हों, लेकिन जो भी व्यक्ति राष्ट्र को महान बनाने की सोच रखे, उसे शिक्षा नीति पर स्पष्ट राय रखनी ही पड़ेगी।
बच्चों में महान बनने का भाव पैदा करने के लिए प्राथमिक शिक्षा के स्तर से अपनी भाषा में सोचने और धारणाएं विकसित करने की प्रक्रिया को अपनाना पड़ेगा ताकि विदेशी भाषा बच्चों को कुंठित न कर सके। वहीं विदेशी भाषा के प्रभाव के कारण जहां भारत के टेलेंट का पांच फीसदी ही उपयोग हो पा रहा है, इसकी जगह अपनी भाषा का प्रयोग हुआ तो टेलेंट का सौ फीसदी उपयोग संभव होगा और पांच फीसदी टेलेंट में देश जहां दुनिया को अपना लोहा मनवा रहा है, तो सौ फीसदी टेलेंट के उपयोग से राष्ट्र खुद-ब-खुद महान और विश्व गुरू बन जाएगा।
परिणाम की जल्दबाजी नहीं, पर भरोसा है कि 25 साल में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का यह पौधा वटवृक्ष बनकर देश और दुनिया को छाया देगा तो शिक्षा के लिए दुनिया भारत की तरफ ही देखेगी।
लब्बोलुआब वही कि राष्ट्र दुनिया में अपनी पताका फहराएगा। और यह सब संभव होगा, मोदी के कारण। अब तक अंग्रेजों के प्रभाव में बनी शिक्षा नीतियां ही देश के शैक्षणिक पिछड़ेपन की जिम्मेदार हैं। आरोप यह कि कुछ शिक्षा नीति तो दस्तावेज बनकर ही दफन हो गईं। तो जो नहीं कहा, वह यह कि अब तक सत्ता में रही कांग्रेस ही देश के नौनिहालों की कुंठा, हताशा और निराशा की जिम्मेदार है।
यह तो रहा शाह का एक पाठ, जो विपक्ष के उन आरोपों की परवाह ही नहीं करता जो महंगाई, बेरोजगारी वगैरह वगैरह आरोप लगाकर यह उम्मीद कर रहे हैं कि 2024 में मतदाता मोदी-शाह को ठिकाने लगाने पर उतारू हैं। बल्कि इसके उलट यह सुखद विश्वास कि आगामी पच्चीस साल सत्ता में मोदी-शाह का दल ही राज करेगा। 2024 में चार सौ प्लस लाकर ही सरकार बनाएंगे।
तो दूसरा पाठ कुशाभाऊ के बहाने कार्यकर्ताओं को भी सिखा दिया। पहला तो यह कि कुशाभाऊ मध्यप्रदेश के ही नहीं, बल्कि गुजरात के भी थे। दूसरा कुशाभाऊ जिस रास्ते पर कार्यकर्ताओं को चलाते थे, उस पर खुद भी चलते थे। संदेश यही कि दोहरा आचरण करने से कार्यकर्ता बचें और कार्यकर्ताओं में सीएम से लेकर पन्ना प्रमुख तक सब शामिल हैं।
कुशाभाऊ का पार्टी के प्रति समर्पण का उदाहरण कि वह बीमारी के दौर में झाबुआ के किसी स्थान पर पहुंच गए। शाह ने मुखर होकर पूछ लिया तो बताया कि यही इच्छा है कि मध्यप्रदेश में एक बार फिर सरकार बने। तो विनम्रता और सरलता का उदाहरण कि पैर में सूजन होने की वजह से जूते नहीं पहन सकते थे।
संघ की शाखा में ऐसे पहुंचे तो स्वयंसेवक ने अंदर जाने से मना कर दिया। तब कुशाभाऊ वापस लौट गए। अगर प्रभाव दिखाते तो स्वयंसेवक की क्या मजाल थी, लेकिन यही विनम्रता, सरलता और सहजता की सीख कुशाभाऊ से मिलती है और कार्यकर्ताओं को यही भाव अपनाना चाहिए।
तीसरा पाठ यह कि बात भले ही शिक्षा की हो, लेकिन राजनैतिक संदेश जरूर दिया जाता रहे। अमित शाह ने मंच पर पहुंचकर पहले प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा को संबोधित किया और फिर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को। फिर विष्णुदत्त शर्मा की तारीफ की और फिर बाद में शिवराज की। सिलसिला यूं चला कि समझ लें लोग कि संगठन का काम बेहतर है और विष्णुदत्त शर्मा की कार्यशैली शाह को प्रभावित कर रही है।
संगठन और विष्णु की खुशी के लिए यह फीलगुड है। तो शिवराज से भी कह दिया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में हिंदी में डॉक्टरी-इंजीनियरिंग की पढ़ाई की शुरुआत शिवराज ने करवाई है। पूरी पढ़ाई हिंदी में संपन्न हो तो मुझे जरूर बुलाना। यानि कि सरकार और संगठन दोनों फीलगुड में रहें पर यह समझने की भूल कतई नहीं करना कि शाह-मोदी को कुछ खबर नहीं है। तो कुशाभाऊ धार जिले से थे, राजा भोज की प्रतिमा सीएम ने शाह को भेंट की और भोजशाला की मां सरस्वती की प्रतिमा विष्णुदत्त शर्मा ने भेंट की।
मायने निकालने के लिए सब स्वतंत्र हैं। तो मध्यप्रदेश में शाह के मंच पर तीन कुर्सी का होना, जिन पर शाह, शिवराज और वीडी शर्मा मंच पर रहे और बाकी सब मंत्री-पदाधिकारी मंच के सामने। यानि कि संदेश साफ है कि अब चुनावी साल आ रही है, सो सब अपनी-अपनी मर्यादा में रहें।
सरकार का लक्ष्य राष्ट्र को विश्व गुरू बनाने का है, तो प्रदेश और देश में सत्ता में बने रहने का भी है। संगठन के काम पर मुहर लग गई है। सरकार की अभी खुलकर तारीफ करने की जरूरत नहीं है, जब वक्त की नजाकत होगी तब सोच, विश्लेषण, तर्क, स्मृति, निर्णय लेने की क्षमता और क्रियान्वन, समीक्षा जैसे मापदंडों से सरकार की उपलब्धियां भी गिनाने में देर नहीं करेंगे…।