जनता के भरोसे पर खरी साबित होती रहे सरकार…

110

जनता के भरोसे पर खरी साबित होती रहे सरकार…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग द्वारा मध्य प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र में एक बड़ा फैसला पारित करवाया गया है, जिसके तहत अब जनता सीधे नगरपालिका और नगर पंचायत अध्यक्षों को चुनेगी। इसके साथ ही, प्रतिनिधियों को हटाने वाले ‘राइट टू रिकॉल’ प्रावधान की समयसीमा को भी ढाई साल से बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया है। लोकतंत्र में संशोधन के जरिए व्यवस्था में बदलाव की यह प्रक्रिया बड़ी प्रभावी है। विपक्ष ने इस संशोधन पर यही बात रखी कि भाजपा के समय में ही पहले प्रत्यक्ष चुनाव, फिर अप्रत्यक्ष चुनाव और अब फिर प्रत्यक्ष चुनाव की प्रक्रिया लागू की जा रही है। तो इसके जरिए सवालिया निशान भी लगाया कि आखिर सरकार के मन में क्या है? हालांकि नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने निर्णय में बदलाव के पीछे उस समय कोरोना को मुख्य वजह बताया। और एक बार फिर यह बात विधानसभा में सामने आई कि जिला पंचायत जनपद पंचायत और सभी जगह प्रतिनिधियों के सीधे चुनने की व्यवस्था ही ज्यादा विश्वसनीय और तर्कसंगत है। नगर पालिका संशोधन विधेयक को लेकर मध्य प्रदेश के पूर्व नगरीय प्रशासन मंत्री कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह ने कहा कि यह कोई नया प्रस्ताव नहीं है। साल 1999 में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह प्रस्ताव को लेकर आए थे, बाद में सरकार ने अपने फायदे के लिए इसे बदल दिया था। अब वापस से इस प्रस्ताव को लेकर आए हैं। कांग्रेस की मांग है कि यदि वास्तव में भाजपा चुनाव में खरीद फरोख्त को रोकने का भाव रखती है तो सरकार को जनपद पंचायत, जिला पंचायत और मंडी के चुनाव भी सीधे जनता द्वारा करवाने चाहिए।

तो मूल बात बस इतनी सी है कि मध्य प्रदेश में अब नगरपालिका-परिषद अध्यक्षों का चुनाव जनता सीधे करेगी। इस संबंध में विधानसभा में 2 दिसंबर 2025 को नगर पालिका संशोधन विधेयक 2025 को ध्वनि मत से पास किया गया है। इस बदलाव के बाद, जनता अब सीधे अपने अध्यक्ष का चुनाव करेगी। उम्मीद की जा रही है कि इससे नगरीय निकायों में जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ेगी। हालांकि इस संशोधन विधेयक में ‘राइट टू रिकॉल’ की समय सीमा बढ़ाए जाने को लेकर भाजपा और कांग्रेस सदस्यों में तीखी बहस हुई। जिसके बाद ‘राइट टू रिकॉल’ की समयसीमा को ढाई साल से बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया। दरअसल ‘राइट टू रिकॉल’ का दुरुपयोग होने की आशंकाओं के चलते विपक्ष हमेशा ही सशंकित रहा है। और कहीं न कहीं सत्तापक्ष के लिए यह प्रावधान फायदेमंद साबित होने की गुंजाइश बनी रहती है। ऐसे में नगर

पंचायत और नगर परिषद अध्यक्षों को कम से कम तीन साल का अभय दान तो मिल ही गया है। इसके बाद भले ही जनभावनाओं के तहत या फिर राजनीतिक दुर्भावना के चलते कुर्सी उनका साथ छोड़ दे।

मुख्यमंत्री मोहन यादव की कैबिनेट ने पहले ही इस चुनावी प्रक्रिया को हरी झंडी दे दी थी। फिर नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने विधानसभा में यह बिल प्रस्तुत किया, जिसे सदन ने बहुमत से पास कर दिया। इस संशोधन के बाद, मध्य प्रदेश में 2027 में होने वाले नगरीय निकाय चुनावों में अध्यक्षों के चुनाव की प्रक्रिया अब प्रत्यक्ष प्रणाली से ही पूरी करवाई जाएगी।

विपक्ष यानी कांग्रेस ने बदलाव का विरोध करने के बजाय इसे और बेहतर बनाने के लिए सुझाव दिए क्योंकि अप्रत्यक्ष प्रणाली से नगर पंचायत और नगर परिषद अध्यक्षों के चुनावों में बड़ा खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा था। विपक्ष ने आग्रह किया कि ‘राइट टू रिकॉल’ प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए नियमावली को स्पष्ट और व्यावहारिक बनाया जाए, ताकि जनता को वास्तविक शक्ति मिल सके और दुरुपयोग की गुंजाइश न रहे।

तो उम्मीद यही है कि मोहन सरकार संशोधन विधेयक के जरिए पक्ष विपक्ष सभी के मन के मुताबिक पारदर्शिता पर खरी उतरेगी। और जल्द ही जिला पंचायत, जनपद पंचायत और मंडी के चुनाव भी प्रत्यक्ष प्रणाली के तहत करवाने की पहल होगी। ताकि लोकतंत्र की पारदर्शी चुनाव प्रणाली को लेकर जनता के भरोसे पर प्रदेश की चुनी हुई सरकार खरी साबित होती रहे…।