सिंग्रामपुर से ‘महिला अपराध मुक्ति संग्राम’ का बिगुल फूंके सरकार…
बुंदेलखंड और महाकौशल की आन-बान-शान रानी दुर्गावती की याद में सिंग्रामपुर में कैबिनेट बैठक का आयोजन कर डॉ. मोहन यादव की सरकार बेहतर कदम उठा रही है। इस बहाने ही सही प्रदेश की युवा पीढ़ी को रानी दुर्गावती का व्यक्तित्व और सोच की एक झलक ही मिलेगी, तब भी सरकार की बड़ी उपलब्धि होगी। रानी दुर्गावती, राष्ट्र प्रेम और महिला सशक्तिकरण की प्रतीक थीं। सरकार यदि रानी दुर्गावती के प्रति वास्तव में सम्मान प्रदर्शित करना चाहती है, तब सिंग्रामपुर से ‘महिला अपराध मुक्ति संग्राम’ का बिगुल फूंका जाना चाहिए। ताकि मध्यप्रदेश महिला सशक्तिकरण का पर्याय बन देश के नक्शे पर अपना विशिष्ट स्थान बना सके। तब ही रानी दुर्गावती के प्रति सम्मान का सही बोध हो सकेगा। और तभी सुशासन का संदेश जन-जन तक पहुंचेगा और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सरकार का यश और सम्मान भी बढ़ेगा।
रानी दुर्गावती के जन्म के पांच सौ साल पूरे होने पर सरकार “श्रीअन्न प्रोत्साहन की एक नई योजना” का शुभारंभ कर रही है। इसमें वर्ष 2024-25 में कोदो-कुटकी उत्पादक किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके लिए मोटे अनाज की फसलों का उत्पादन करने वाले किसानों की राज्य सरकार मदद करेगी। निश्चित तौर पर सरकार का यह कदम सराहनीय है। श्री अन्न के प्रोत्साहन के प्रति केंद्र की मोदी सरकार भी संकल्पित है। डॉ. मोहन यादव का यह कदम उसी दिशा में है। तो मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का भाव यह भी है कि हम अपने अतीत के उन सभी गौरवाशाली महापुरुषों और वीरांगनाओं को याद करें जिनसे हमारा देश और प्रदेश गौरवान्वित हुआ है। रानी दुर्गावती ने देश की उस समय की कठिन परिस्थितियों में न केवल सुशासन बल्कि वीरता की भी बड़ी मिसाल पेश की। दुश्मनों से मुकाबला किया, जब मौका मिला तो देश पर अपने आपको कुर्बान कर दिया। ऐसे भाव हर नागरिक के मन में जगह बना लें, तब ही रानी दुर्गावती को याद करना सार्थक हो पाएगा। और उसके लिए भागीरथी प्रयासों की ही दरकार है।
खैर आज यानि 5 अक्टूबर को रानी दुर्गावती के 500 साल पूरे होने पर हम उनके बारे में थोड़ा स्मरण कर लें। रानी दुर्गावती (5 अक्टूबर 1524 – 24 जून 1564) ने गोंडवाना की रानी के रूप में 1550-1564 तक शासन किया था। उन्होंने गोंडवाना के राजा संग्राम शाह के बेटे राजा दलपत शाह से विवाह किया । अपने बेटे वीर नारायण के नाबालिग होने के दौरान उन्होंने 1550 से 1564 तक गोंडवाना की रीजेंट के रूप में काम किया। उन्हें मुख्य रूप से मुगल साम्राज्य के खिलाफ गोंडवाना की रक्षा करने के लिए याद किया जाता है। मुगलों से हाथों अपमानित होने की जगह 24 जून 1564 को अपना खंजर निकालकर खुद को मार रानी शहीद हो गईं। शहादत दिवस (24 जून 1564) को “बलिदान दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
रानी ने कहा था कि अपमानजनक जीवन जीने की तुलना में सम्मानपूर्वक मरना बेहतर है। सम्मान का यही भाव अगर जन-जन के मन में घर कर जाए, तब भी महिलाओं के प्रति अपराध का खात्मा हो सकता है और राष्ट्रभक्ति, सुशासन और अपनापन जैसे भाव गौरव से भर सकते हैं…।