मानव की सबसे बड़ी और अद्भुत खोज ईश्वर है…

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मानव की सबसे बड़ी और अद्भुत खोज ईश्वर है…

“अपने अंतिम साक्षात्कार में उन्होंने कहा था, यद्यपि मैं नास्तिक हिंदू हूं पर तार्किक दृष्टि से जब देखता हूं, तो यह पाता हूं कि मानव की सबसे बड़ी और अद्भुत खोज ईश्वर है”।
लाहौर में जन्मे, मद्रास में पढ़े और अमेरिका में रहकर भारत का नाम रोशन करने वाले विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक की यह स्वीकारोक्ति हर इंसान को प्रेरित करने वाली है। यह वैज्ञानिक थे सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर (19 अक्टूबर 1910- 21 अगस्त 1995)। वह विख्यात भारतीय-अमेरिकी खगोलशास्त्री थे। भौतिक शास्त्र पर उनके अध्ययन के लिए उन्हें विलियम ए. फाउलर के साथ संयुक्त रूप से सन् 1983 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला था। चन्द्रशेखर सन् 1937 से 1995 में उनके देहांत तक शिकागो विश्वविद्यालय में कार्य करते रहे। उनका जन्म लाहौर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा मद्रास में हुई। 18 वर्ष की आयु में चंद्रशेखर का पहला शोध पत्र `इंडियन जर्नल ऑफ फिजिक्स’ में प्रकाशित हुआ। मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की उपाधि लेने तक उनके कई शोध पत्र प्रकाशित हो चुके थे। उनमें से एक `प्रोसीडिंग्स ऑफ द रॉयल सोसाइटी’ में प्रकाशित हुआ था, जो इतनी कम उम्र वाले व्यक्ति के लिए गौरव की बात थी। एस॰ चंद्रशेखर का परिवार वैज्ञानिकों के परिवार के रूप में प्रसिद्ध है।
24 वर्ष की अल्पायु में सन् 1934 में ही उन्होंने तारे के गिरने और लुप्त होने की अपनी वैज्ञानिक जिज्ञासा सुलझा ली थी। उन्होंने अपना मौलिक शोध पत्र भी प्रस्तुत कर दिया था कि सफेद बौने तारे एक निश्चित द्रव्यमान प्राप्त करने के बाद अपने भार में और वृद्धि नहीं कर सकते। अंतत वे ब्लैक होल बन जाते हैं। ऑक्सफोर्ड में उनके गुरु सर आर्थर एडिंगटन ने उनके इस शोध को प्रथम दृष्टि में स्वीकार नहीं किया और उनकी खिल्ली उड़ाई। पर वे हार मानने वाले नहीं थे। वे पुनः शोध साधना में जुट गए और आखिरकार, इस दिशा में विश्व भर में किए जा रहे शोधों के फलस्वरूप उनकी खोज के ठीक पचास साल बाद 1983 में उनके सिद्धांत को मान्यता मिली। परिणामत: भौतिकी के क्षेत्र में वर्ष 1983 का नोबेल पुरस्कार उन्हें तथा डॉ॰ विलियम फाऊलर को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया।
27 वर्ष की आयु में ही चंद्रशेखर की खगोल भौतिकीविद के रूप में अच्छी धाक जम चुकी थी। उनकी खोजों से न्यूट्रॉन तारे और ब्लैक होल के अस्तित्व की धारणा कायम हुई, जिसे समकालीन खगोल विज्ञान की रीढ़ माना जाता है।खगोल भौतिकी के क्षेत्र में डॉ॰ चंद्रशेखर, चंद्रशेखर सीमा यानी चंद्रशेखर लिमिट के लिए बहुत प्रसिद्ध हैं। चंद्रशेखर ने पूर्णतः गणितीय गणनाओं और समीकरणों के आधार पर `चंद्रशेखर सीमा’ का विवेचन किया था और सभी खगोल वैज्ञानिकों ने पाया कि सभी श्वेत वामन तारों का द्रव्यमान चंद्रशेखर द्वारा निर्धारित सीमा में ही सीमित रहता है।
यद्यपि अपनी खोजों के लिये डॉ॰ चंद्रशेखर को भारत में सम्मान तो बहुत मिला, पर 1930 में अपने अध्ययन के लिये भारत छोड़ने के बाद वे बाहर के ही होकर रह गए और लगनपूर्वक अपने अनुसंधान कार्य में जुट गए। चंद्रशेखर ने खगोल विज्ञान के क्षेत्र में तारों के वायुमंडल को समझने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया और यह भी बताया कि एक आकाश गंगा में तारों में पदार्थ और गति का वितरण कैसे होता है। रोटेटिंग प्लूइड मास तथा आकाश के नीलेपन पर किया गया उनका शोध कार्य भी प्रसिद्ध है।अनेक पुरस्कारों और पदकों से सम्मानित डॉ॰ चंद्रा का जीवन उपलब्धियों से भरपूर रहा। वे लगभग 20 वर्ष तक एस्ट्रोफिजिकल जर्नल के संपादक भी रहे। डॉ॰ चंद्रा नोबेल पुरस्कार प्राप्त प्रथम भारतीय तथा एशियाई वैज्ञानिक सुप्रसिद्ध सर चंद्रशेखर वेंकट रामन के भतीजे थे। सन् 1969 में जब उन्हें भारत सरकार की ओर से पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें पुरस्कार देते हुए कहा था, यह बड़े दुख की बात है कि हम चंद्रशेखर को अपने देश में नहीं रख सके। पर मैं आज भी नहीं कह सकती कि यदि वे भारत में रहते तो इतना बड़ा काम कर पाते।
डॉ॰ चंद्रा सेवानिवृत्त होने के बाद भी जीवन-पर्यंत अपने अनुसंधान कार्य में जुटे रहे। बीसवीं सदी के विश्व-विख्यात वैज्ञानिक तथा महान खगोल वैज्ञानिक डॉ॰ सुब्रह्मण्यम् चंद्रशेखर का 22 अगस्त 1995 को 84 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से शिकागो में निधन हो गया। उनकी मृत्यु से भारत को अवश्य धक्का लगा क्योंकि आज जब हमारे देश में `जायंट मीटर वेव रेडियो टेलिस्कोप’ की स्थापना हो चुकी है, तब इस क्षेत्र में नवीनतम खोजें करने वाला वह वैज्ञानिक चल बसा जिसका उद्देश्य था- भारत में भी अमेरिका जैसी संस्था `सेटी’ (पृथ्वीतर नक्षत्र लोक में बौद्धिक जीवों की खोज) का गठन। हालांकि भारत वैज्ञानिक उपलब्धियों के मामले में अब गगन को छू रहा है। पर ईश्वर की खोज को अद्भुत स्वीकारने वाला वह नास्तिक भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक चंद्रशेखर की जगह कोई और नहीं ले सकता…।