‘विनेश’ के नाम पर राजनैतिक विद्वेष की पराकाष्ठा…

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‘विनेश’ के नाम पर राजनैतिक विद्वेष की पराकाष्ठा…

वैसे तो विनेश फोगाट पहले से ही चर्चित नाम रहा है। पर ओलंपिक में जाने और अच्छा परफार्म कर फाइनल तक का सफर तय करने के साथ ही वजन के आधार पर फाइनल में उसे अयोग्य घोषित करने पर जितनी ज्यादा चर्चा विनेश की हो रही है, उतनी चर्चा शायद तब नहीं होती जबकि वह गोल्ड या सिल्वर मैडल ही जीत लेती। हद तो विनेश के नाम पर राजनैतिक विद्वेष की पराकाष्ठा की हो गई है। विद्वेष भी ऐसा मानो सत्ता में बैठा पक्ष ओलंपिक के फाइनल तक उस खलनायक की भूमिका में था, कि आखिर उसने विनेश को डिसक्वालिफाई कराने के लिए साजिश करने के लिए ही तीसरी बार सत्ता हासिल की थी। और दूसरा राजनैतिक धड़ा जो वह कुछ भी करने में समर्थ नहीं था कि विनेश को ओलंपिक तक पहुंचाने में कुछ योगदान कर सकता, लेकिन फाइनल में डिसक्वालिफाई होने पर सत्ताधारी राजनैतिक दल और खासकर मुखिया को कटघरे में खड़ा करने में बदले की भावना की पराकाष्ठा ही कर डाली। तो राजनीति भी अब राजनैतिक दलों तक सीमित नहीं, बल्कि खिलाड़ी भी उसी तरह से व्यवहार करते नजर आ रहे हैं।
इंडियन बॉक्सर विजेंद्र सिंह को ही ले लें तो उनका कहना है कि “जब भी कभी ओलंपिक में वजन मापा जाता है तो खिलाड़ी को एक-दो घंटे का वक्त दिया जाता है कि आपका वजन कम कर लीजिए। यहां तक कि हम लोग तो इतने ट्रेंड होते हैं कि रात भर में 1 किलो तक भी चाहें तो कम कर सकते हैं। मैने तीन ओलंपिक्स देखे हैं, लेकिन ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। ये तो सीधा सीधा भारत को गोल्ड रोकने का षडयंत्र है। पूरे हिंदुस्तान को विनेश के साथ खड़े होना चाहिए। विनेश को वक्त दिया जाना चाहिए था।” तो सवाल यह उठता है कि क्या पूरा हिन्दुस्तान विनेश के साथ खड़ा नहीं है? क्या विनेश को लेकर हिंदुस्तान आधा-आधा बंट गया है? वहीं दूसरे खिलाड़ी बजरंग पूनिया स्वीकारते हैं कि विनेश को वजन घटाने में बहुत तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है।
प्रसिद्ध किसान नेता राकेश टिकैत ने एक्स पर लिखा है कि “यह एक बेहद दु:खद खबर है कि देश की बेटी को कोई अखाड़े के मैदान में नहीं हरा पाया लेकिन साजिश के अखाड़े में हरा दिया गया है। देश का मैडल आज राजनीति का शिकार हो गया। यह देश इस दिन को कभी नहीं भूल सकता।”
तो नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने अलग ही अंदाज में विनेश को एक्स पर बधाई देते हुए लिखा कि ‘एक ही दिन में दुनिया की तीन धुरंधर पहलवानों को हराने के बाद आज विनेश के साथ-साथ पूरा देश भावुक है। जिन्होंने भी विनेश और उसके साथियों के संघर्ष को झुठलाया, उनकी नीयत और काबिलियत तक पर प्रश्नचिन्ह खड़े किए, उन सभी को जवाब मिल चुका है। आज भारत की बहादुर बेटी के सामने सत्ता का वो पूरा तंत्र धराशाई पड़ा था, जिसने उसे खून के आंसू रुलाए थे। चैंपियंस की यही पहचान है, वो अपना जवाब मैदान से देते हैं।’ उन्होंने आगे कहा कि बहुत शुभकामनाएं विनेश। पेरिस में आपकी सफलता की गूंज, दिल्ली तक साफ सुनाई दे रही है।समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसे विनेश की मानसिक जीत बताते हुए बधाई दी। उन्होंने कहा, ‘महान खिलाड़ी विनेश फोगाट की खेल में ही नहीं ये उनके लिए बहुत बड़ी मानसिक जीत भी है। फाइनल में पहुंचने पर उन्हें और देश के सच्चे खेल प्रेमियों को हार्दिक बधाई। फाइनल में जीत के लिए अनंत शुभकामनाएं।’
पर दु:खद यह रहा कि यह फाइनल नहीं हो सका। इससे हर भारतीय को आघात पहुंचा होगा। ओलंपिक खेल नियमों के चलते ही विनेश के 150 ग्राम ज्यादा वजन ने भारत को यह काला दिन देखने पर मजबूर किया। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी विनेश की विजय को राष्ट्र की महत्वपूर्ण उपलब्धि स्वीकार करते हुए बधाई दे चुके थे। पर लग ऐसा ही रहा है कि वास्तव में विनेश के फाइनल में न पहुंच पाने में खलनायक की भूमिका मोदी ने ही निभाई है। अब कम से कम ऐसी सोच रखना भी राजनैतिक द्वेष की पराकाष्ठा ही माना जा सकता है। जब विनेश सहित सभी पहलवान संघर्ष कर रहे थे, तब देश ने बृजभूषण सिंह का समर्थन कतई नहीं किया था। ऐसे में उम्मीद यही है कि खिलाड़ियों की जीत-हार पर राजनेताओं को खेलभावना से ही टिप्पणी करना चाहिए। ऐसी टिप्पणी में राजनीति की द्वेषपूर्ण गंध नहीं आनी चाहिए। इसे किसी भी तरह से खेल और खिलाड़ियों के हित में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। खिलाड़ी बजरंग पूनिया ने विनेश के वजन कम न होने पर चिंता जताई थी। मोदी ने पीटी ऊषा को ओलंपिक समिति के सामने विरोध दर्ज कराने को निर्देशित किया था। पर अंतत: फाइनल में विनेश के न खेल पाने में हर भारतीय दु:खी है। और ‘विनेश’ के नाम पर राजनैतिक विद्वेष की पराकाष्ठा ने हर भारतीय का सिर शर्म से झुका दिया है…।