
इंदौर प्रदूषित जल संकट पर हाईकोर्ट सख्त, शहरी प्रशासन की खामियां उजागर, मौतों का आंकड़ा 10 पहुंचा
सीएम यादव ने इंदौर पहुंचकर मरीजों से भेंट की
के. के. झा की विशेष रिपोर्ट
इंदौर। आठ बार देश का सबसे स्वच्छ शहर चुना जा चुका इंदौर इस समय अपने अब तक के सबसे गंभीर नागरिक संकट से जूझ रहा है। दूषित पेयजल के कारण 10 लोगों की मौत और 100 से अधिक लोगों के अस्पताल में भर्ती होने की घटना ने न केवल आम नागरिकों को झकझोर दिया है, बल्कि इंदौर नगर निगम (आईएमसी) की कार्यप्रणाली और शहरी प्रशासन के दावों पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
मामले की गंभीरता को देखते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार से दूषित पेयजल प्रकरण पर विस्तृत रिपोर्ट तलब की है और सभी प्रभावित मरीजों को निःशुल्क उपचार उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं। हाईकोर्ट की यह सख्ती सुरक्षित पेयजल जैसी बुनियादी नागरिक सुविधा में हुई भारी चूक को रेखांकित करती है।
यह जलजनित बीमारी का प्रकोप मुख्य रूप से भागीरथपुरा और आसपास के क्षेत्रों में सामने आया है। प्रारंभिक जांच में आशंका जताई जा रही है कि सीवरेज का पानी पेयजल पाइपलाइनों में मिल जाने से लोगों को गंभीर रूप से दस्त और उल्टी की शिकायत हुई। शहर के कई सरकारी और निजी अस्पतालों में अभी भी नए मरीज सामने आ रहे हैं और स्वास्थ्य विभाग को अलर्ट मोड पर रखा गया है।
प्रकरण पर प्रतिक्रिया देते हुए नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने व्यवस्था में खामियां स्वीकार की हैं और सुधारात्मक कार्रवाई का भरोसा दिलाया है। वहीं मुख्यमंत्री मोहन यादव, जो इंदौर के प्रभारी मंत्री भी हैं, ने स्थानीय अस्पताल पहुंचकर मरीजों से मुलाकात की, मृतकों के परिजनों को अनुग्रह सहायता राशि देने की घोषणा की और लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
हालांकि इस घटना ने नागरिकों और शहरी मामलों के विशेषज्ञों के बीच कई तीखे सवाल खड़े कर दिए हैं—
जब इंदौर लगातार स्वच्छता रैंकिंग में शीर्ष पर रहा, तो दूषित पानी समय रहते कैसे नहीं पकड़ा गया?
बदबूदार और गंदे पानी की शुरुआती शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
और नगर निगम की जल गुणवत्ता निगरानी प्रणाली में जवाबदेही किसकी है?
शहरी विशेषज्ञों का मानना है कि इंदौर की स्वच्छता उपलब्धियां मुख्यतः ठोस अपशिष्ट प्रबंधन तक सीमित रहीं, जबकि पेयजल की गुणवत्ता, पाइपलाइन की नियमित जांच और रियल-टाइम मॉनिटरिंग जैसे बुनियादी पहलुओं पर अपेक्षित गंभीरता नहीं दिखाई गई। इस त्रासदी ने दिखावटी शहरी सफलता और वास्तविक नागरिक सुरक्षा के बीच खतरनाक अंतर को उजागर कर दिया है।
हाईकोर्ट की निगरानी में जांच आगे बढ़ रही है। ऐसे में इंदौर के सामने अब केवल पाइपलाइन सुधारने या दोषियों को दंडित करने की नहीं, बल्कि जनविश्वास बहाल करने और यह साबित करने की बड़ी चुनौती है कि एक “स्वच्छ शहर” वास्तव में सुरक्षित और रहने योग्य शहर भी हो सकता है।



