बरकरार है होलीमाल का जादू

-लोग वर्ष भर आते-जाते हुए डालते है लकड़ी -किसानों के अनुसार प्रतिदिन एक रोशनी होलीमाल से जटाशंकर तीर्थ तक जाती है

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बागली से कुंवर पुष्पराजसिंह की रिपोर्ट

बागली। जटाशंकर बीट के बांसया वनों में एक स्थान होलीमाल के नाम से प्रसिद्ध है। वन विभाग के अनुसार यह बागली उत्तर सबरेंज में जटाशंकर बीट कक्ष क्रमांक 811 में स्थित है।जिसमें वनों के आसपास निवास करने वाले आदिवासी समुदाय के लोग वर्ष भर गुजरते हुए लकड़ी डालते रहते हैं। होलिका दहन रात्रि को लोक मान्यता है कि निर्जन वनों में स्थित यह होलिका अपने आप ही जल उठती है।

हालांकि वनों और मनुष्य का रिश्ता बड़ा पुराना है और प्राचीन काल से ही पुस्तकों और लोक कथाओं में वन देवी और मनुष्य में मध्य के संबधों पर कथा-कहानियां प्रचलन में है। कई स्थानों पर वनों में देव स्थान मौजूद है जिन्हें लोगों द्वारा बड़ी आस्था से पूजित किया जाता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार मालवा क्षेत्र में जटायू की तपोस्थली के रूप में प्रसिद्ध जटाशंकर तीर्थ से जुड़े हुए वन क्षेत्र अपने आप में खासा महत्व रखते है। जटाशंकर-बोरी मार्ग पर स्थित ग्राम नयाखूंट से लगभग 1 किमी आगे वन में घुसने के लिए एक पगडंडी है।

यहीं से होलीमाल तक पहुंचने का रास्ता आरंभ होता है। आड़ी-तिरछी पगडंडियां, बडे व छोटे, घुमावदार उतार-चढ़ाव और छोटी पहाडियों को पार करने पर मुख्य सडक से लगभग 4 किमी से अधिक दूरी पर होलीमाल नामक स्थान आता है। जहां पर पत्थरों के मध्य लकडियों का एक ढेर एकत्रित है। जटाशंकर सहित नयाखूंट, डेरी-बोरी, डांगराखेडा, बजरंगगढ आदि का आदिवासी समुदाय वनों में ईंधन जूटाने और वनोपज प्राप्ती के समय यहां से गुजरते हुए एक-एक लकड़ी अवश्य डालते हैं और प्रणाम करके निकल जाते हैं। कहा जाता है कि यहाँ पर लकड़ी डालने से कोई भी जंगल में रास्ता नहीं भूलता है।

लोक मान्यता है कि होलिका दहन के दिन रात्रि में लकड़ियों का यह ढेर स्वतः ही अग्नि प्रस्फुटित कर लेता है। जंगलों के मध्य आग लगने से भी जंगलों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है व होलीमाल अपने आप अपशिष्ट लकडियां खींच लेती है। बागली जगदीश मंदिर के पुजारी पंडित सत्यनारायण व्यास ने बताया की उनके दिवंगत भाई ख्याली व्यास वनरक्षक के पद पर रहते हुए जटाशंकर बीट में पदस्थ थे।

वे बताते थे कि जंगलों में गुजरने के दौरान हम भी एक लकड़ी डाल ही देते है। उन्होंने यह भी बताया था कि लगभग 45 वर्ष पूर्व उनके पिताजी स्व. प्रेमीलाल व्यास ने पता लगाने का प्रयास किया लेकिन रात्रि में आंख लग गई व सुबह देखा तो होलिका दहन हो गया था। नयाखूंट के सुनीलकुमार ने बताया कि उसके माता-पिता भी पता करने गए थे लेकिन रात में ही किसी डरावनी वस्तु के कारण वे भाग निकले। जटाशंकर सेवा समिति के नारायणसिंह पाटीदार ने बताया कि बहुत समय से सुना जा रहा है कि यहां पर आग अपने आप जल उठती है।

जटाशंकर मंदिर तक जाती है रोशनी
नयाखूंट निवासी कृषक बाबूलाल पिता सौभागसिंह ने बताया कि होलीमाल से एक रोशनी शाम के समय प्रतिदिन जटाशंकर मंदिर तक जाती है। देखने में आकृति नजर नहीं आती है लेकिन रोशनी दिखाई पडती है। पिछले कई वर्षो से होलीमाल पर स्वतः ही दहन होता आया है। माना जाता है कि होलीमाल के प्रभाव के चलते ही जटाशंकर क्षेत्र के वनो में आग नहीं लगती व नुकसान भी नहीं होता है।
मैं स्वयं जाकर देखूंगा
वन विभाग के एसडीओ अमित सोलंकी ने कहा की मुझे आपके द्वारा ही इस स्थान के बारे में पता चला है। मैं खुद भी वहां जाकर देखना चाहूंगा। यदि लोगों की आस्था उस स्थान को लेकर है तो वहां पहुँचने का सुगम रास्ता भी बनाया जाएगा।